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कोरोना वायरस को नाक के बाहर ही रोकने की तैयारी, इसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कसी कमर

कोरोना संकट से निपटने के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने एक कोर ग्रुप का गठन किया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 08 Apr 2020 07:57 PM (IST)Updated: Wed, 08 Apr 2020 07:57 PM (IST)
कोरोना वायरस को नाक के बाहर ही रोकने की तैयारी, इसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कसी कमर
कोरोना वायरस को नाक के बाहर ही रोकने की तैयारी, इसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कसी कमर

अरविंद पांडेय। नई दिल्ली। कोरोना के खतरे से लोगों को बचाने की कोशिशों के बीच भारतीय वैज्ञानिक अब एक ऐसा लोशन तैयार करने में जुटे है जो कोरोना वायरस को नाक के रास्ते शरीर के अंदर के दाखिल होने से रोकेगा। इसे नाक के अंदर लगाना होगा। ऐसे में इस लोशन को डाक्टरों सहित अस्पतालों में काम करने वाले कर्मियों के लिए काफी अहम माना जा रहा है, जो कोरोना के खतरे के बीच काम रहे है।

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जैल लोशन के जरिए वायरस को शरीर की कोशिकाओं से जुड़ने से रोकना 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की मदद से फिलहाल इस प्रोजेक्ट पर आइआइटी बाम्बे का जैव विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग तेजी से काम कर रहा है। इसे शुरूआती चरण में काफी सफलता भी मिली है। फिलहाल यह काम दो चरणों में काम किया जा रह है। इनमें पहला इस जैल लोशन के जरिए वायरस को शरीर की कोशिकाओं से जुड़ने से रोकना है।

वायरस को निष्क्रिय करने की जरूरत

हालांकि इसके बाद भी यह वायरस सक्रिय बना रहेगा। ऐसे में इसे निष्क्रिय करने की जरूरत होगी। वहीं दूसरे चरण में इनमें ऐसे जैविक अणु शामिल करने की योजना है, जिससे डिटर्जेट की तरह वायरसों को फंसाकर निष्क्रिय किया जाएगा। दोनों ही चरणों पर तेजी से काम किया जा रहा है।

नाक के रास्ते से वायरस प्रवेश करता है, मास्क लगाने के बाद भी खतरा बना रहता है

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा के मुताबिक कोरोना से संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा मौजूदा समय में नाक के रास्ते वायरस के प्रवेश से है। क्योंकि इसके जरिए वह सीधे गले और बाद में फेफड़े तक पहुंच जाता है। मास्क लगाने के बाद भी यह वायरस इतना सूक्ष्म होता है, कि इससे खतरा बना रहता है।

कोरोना से निपटने सीआईएसआर ने तैयार किया कोर ग्रुप, सौंपा जिम्मा

कोरोना संकट से निपटने के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने एक कोर ग्रुप का गठन किया है। जिसमें प्रमुख प्रयोगशालाओं से जुड़े आठ निदेशकों को शामिल किया है। इस दौरान सभी को अलग-अलग जिम्मेदारी भी दी गई है। साथ ही हर दिन प्रत्येक निदेशक से प्रगति की भी जानकारी ली जा रही है।

सीएसआईआर की 38 प्रयोगशालाओं में कोरोना से लड़ने के लिए काम चल रहा है

वैसे तो देश भर में सीएसआईआर की कुल 38 प्रयोगशालाएं हैं। जहां कोरोना से लड़ने के लिए बडे स्तर पर काम चल रहा है। लेकिन इन कामों को पांच कैटेगरी में शामिल करने इस पर पैनी निगरानी भी की जा रही है। ताकि जल्द रिजल्ट मिल सकें। फिलहाल जिन आठ निदेशकों को इस कोर ग्रुप में रखा गया है, उनमें डिजिटल तथा आण्विक निगरानी का जिम्मा आइजीआइबी के निदेशक डा अनुराग अग्रवाल को, टेस्टिंग किट तैयार से जुड़े काम का जिम्मा सीसीएमबी के निदेशक डा राकेश मिश्रा को, दवाओं के विकास का जिम्मा आइआइसीटी के निदेशक डॉ एस चंद्रशेखर को सौंपा गया है। इसी तरह अस्पतालों के लिए सहायक उपकरण तैयार करने का जिम्मा नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरी के निदेशक डॉ जितेंद्र जे जाधव को और निजी सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति का जिम्मा इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पेट्रोलियम के निदेशक डॉ अंजन रे को सौंपा गया है। वहीं इस पूरे ग्रुप का समन्वयक आइआइआइएम के निदेशक डॉ राम ए विश्वकर्मा को बनाया गया है।


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