हेरिटेज मदिरा की ब्रांडिंग की तैयारी, IIT दिल्ली के शोध के आधार पर काम शुरू
आदिवासियों द्वारा महुआ के पेड़ पर लगने वाले फल एकत्रित किए जाएंगे और उन्हें वन विभाग खरीदेगा। बदले में उन्हें वनोपज का दाम दिया जाएगा।
धार, प्रेमविजय पाटिल। महुआ के फल से बनने वाली शराब को बाजार में लाने का मन तो मध्य प्रदेश सरकार एक साल पहले ही बना चुकी थी। कोरोना की वजह से इसमें देरी हो गई, लेकिन अब इसकी ब्रांडिंग की तैयारी शुरू हो गई है। ट्राइबल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (ट्राइफेड) ने आइआइटी दिल्ली से इस पर रिसर्च करवाई थी। इसमें पाया गया कि इसमें कई पोषक तत्व हैं और यह नुकसानदायक नहीं है। 250 मिलीलीटर की 100 बोतलें तैयार करवाकर मार्केट सर्वे भी किया गया, जिसे पसंद किया गया। अब इसे बाजार में पेश करने की तैयारी की जा रही है। इसका नाम 'न्यूट्री बेवरेज' होगा।
मप्र सरकार के मंगलवार को टॉस्क फोर्स के गठन के बाद हेरिटेज मदिरा प्रोजेक्ट को गति मिल सकती है। बताया जा रहा है कि आदिवासियों द्वारा महुआ के पेड़ पर लगने वाले फल एकत्रित किए जाएंगे और उन्हें वन विभाग खरीदेगा। बदले में उन्हें वनोपज का दाम दिया जाएगा। इसके पीछे मकसद यह है कि प्रदेश के आदिवासियों की परंपरागत दक्षताओं को ध्यान में रखते हुए उनकी आजीविका को बेहतर बनाया जाए।
आइआइटी दिल्ली ने बताया महुआ शराब को पोषक
ट्राइफेड के मप्र के क्षेत्रीय अधिकारी जगन्नाथ सिंह शेखावत ने हमारे सहयोगी अखबार 'नईदुनिया' को बताया कि आइआइटी दिल्ली से कराई गई रिसर्च में पाया कि महुआ के माध्यम से यदि पेय पदार्थ बनाया जाता है तो वह नुकसानदायक नहीं है, बल्कि इसका पौष्टिक महत्व भी है। इसी के आधार पर हम भविष्य में 'न्यूट्री बेवरेज' के नाम से उसका प्रोडक्शन करना चाहते हैं। हालांकि, इसमें आबकारी विभाग से लेकर अन्य कई लाइसेंस की प्रक्रिया पूरी करना होगी।
आदिवासी व्यावसायिक, उपयोग नहीं कर सकते
मप्र आबकारी अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत प्रदेश के अधिसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को महुआ की शराब बनाने को लेकर छूट प्रदान की गई है। इसके तहत प्रति व्यक्ति साढ़े चार लीटर शराब रख सकता है, लेकिन इसका व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता। साथ ही विवाह व अन्य आदिवासी संस्कृति के समारोह के अवसर पर 45 लीटर तक यह शराब बनाई व रखी जा सकती है।
जयस ने कहा- इसका फायदा नहीं मिलेगा
जय आदिवासी संगठन (जयस) से जुड़े तथा मनावर से कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने इस योजना का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को रोजगार देने के लिए दूसरे कदम उठाने चाहिए। आदिवासी अंचल में महुआ के पेड़ बचे ही नहीं हैं।