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नौकरशाही में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की तैयारी, हर साल 150 IAS नहीं दे रहे अपनी संपत्ति का विवरण

केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हर साल लगभग डेढ़ सौ आइएएस अधिकारी अपनी संपत्ति का विवरण नहीं दे रहे हैं। वेबसाइट पर नाम उजागर करने समेत उन पर दबाव बनाने के लिए अब तक जो उपाय अमल में लाए जा रहे हैं वे अपर्याप्त सिद्ध होते दिखे।

By TilakrajEdited By: Published: Tue, 09 Aug 2022 11:28 AM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2022 11:28 AM (IST)
नौकरशाही में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की तैयारी, हर साल 150 IAS नहीं दे रहे अपनी संपत्ति का विवरण
कुछ समय पहले सरकार ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर सख्त रवैया अपनाते हुए उन्हें समय पूर्व ही सेवानिवृत्त कर दिया था

लालजी जायसवाल। पिछले वर्ष केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों में कार्यरत सभी आइएएस अधिकारियों को अपनी संपत्ति का विवरण देने तथा उसका स्रोत बताने के लिए कहा गया था, जिसके माध्यम से उनके परिवार के किसी सदस्य ने कोई संपत्ति खरीदी हो। अगर किसी अधिकारी ने परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति के नाम पर कोई अचल संपत्ति खरीदी है, तो उसका भी विवरण देना था। लेकिन इस संबंध में लोकसेवकों की उदासीनता ने सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। बहरहाल, कई अधिकारियों का कहना है कि संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करना व्यावहारिक रूप से ठीक नहीं है। हालांकि नौकरी करने वाले तक तो ठीक है, लेकिन उनके परिवार की संपत्ति की जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए।

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उल्लेखनीय है कि पब्लिक सर्वेट यानी लोकसेवक की भर्ती लोक सेवा आयोग करता है और नियुक्ति के उपरांत ये राज्यों में अपनी सेवाएं देते हैं। लेकिन सेवक जब अपना सेवक धर्म भूलकर जनता का मालिक बन जाते हैं, तब उन पर कठोर नियंत्रण जरूरी हो जाता है। बता दें कि नौकरशाही एक शक्ति संपन्न संस्था है और शक्ति सदैव सीमा का उल्लंघन करती है। लोकाचार में यह माना भी जाता है कि शक्ति भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। इसीलिए प्रशासन पर नियंत्रण बाबत अनेक नियम, विनियम, अधिनियम तथा लोकसेवक आचरण संहिता बनाया गया है। उसी आचार संहिता में कहा गया है कि लोकसेवक किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं रखेगा, किसी प्रकार का व्यापार नहीं करेगा, अगर उसके परिवार का कोई सदस्य व्यापार करता है तो उसकी जानकारी साझा करेगा, अपने संपत्ति का विवरण प्रस्तुत करेगा आदि।

दबाव डालने के लिए किए जा रहे उपाय

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हर साल करीब डेढ़ सौ आइएएस अफसर अपनी संपत्ति का वार्षिक विवरण नहीं दे रहे हैं। ऐसे में उनके नाम संबंधित वेबसाइट पर डाले जाते हैं और विजिलेंस क्लीयरेंस रोकने का प्रविधान किया गया है, लेकिन ये उपाय असरदार नहीं हो रहे हैं। अब सरकार ने नए और कड़े उपाय तलाशने शुरू कर दिए हैं। इस बाबत सुझाव भी मांगे जा रहे हैं जिसमें प्रोन्नति रोकने से लेकर महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां नहीं करने जैसे प्रविधानों पर भी विचार किया जा रहा है।

सांच को आंच क्या

लोकसेवकों के मात्र निजी जीवन में ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक जीवन में भी मूल्यों और उनकी नैतिकता का संकलन होना अनिवार्य है, क्योंकि अधिकारी लोकसेवक के साथ समाज का आदर्श व्यक्ति भी होता है जिससे लोग प्रेरणा लेते हैं। लेकिन वहीं यदि अधिकारी अगर भ्रष्ट और धन कुबेर बनने की लालसा रखता हो तो समाज में गलत संदेश जाता है। इसलिए लोकसेवक को अपनी छवि साफ-सुथरी रखनी चाहिए। लेकिन चिंता की बात है कि कार्मिक मंत्रलय के दस्तावेजों के अनुसार पिछले साल 158 आइएएस अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का विवरण ही नहीं दिया। जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या 146 तथा 2019 में 128 थी। इनमें 64 अफसर ऐसे थे, जिन्होंने लगातार दो साल और 44 अफसरों ने तो लगातार तीन साल तथा 32 अफसरों ने तीन साल से भी अधिक समय से संपत्ति का वार्षिक विवरण नहीं दिया है। इनमें सबसे अधिक मध्य प्रदेश कैडर के आइएएस अधिकारी हैं। सरकार की ओर से जारी की गई संबंधित रिपोर्ट के अनुसार जिन आइएएस अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का विवरण नहीं दिया है उनमें 32 मध्य प्रदेश कैडर, 16 उत्तर प्रदेश, 14 पंजाब तथा 12 ओडिशा कैडर के हैं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है कि अफसर संपत्ति का ब्यौरा देने से भयभीत हो रहे हैं? रिपोर्ट में कहा गया कि बड़ी संख्या में आइएएस अधिकारी हर साल अचल संपत्ति रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे हैं। यह बात प्रणाली में गहरी खराबी की ओर इशारा करती है। बहरहाल अब जब इन अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी, तो निश्चित ही यह एक नजीर बनेगा जो प्रशासन की स्वच्छता के लिए जरूरी साबित होगा।

लचर व्यवस्था

संपत्ति का विवरण देने बाबत हाल में कोई नियम नहीं बनाया गया है। नौकरशाहों के लिए अचल संपत्ति का विवरण देने के ये नियम कार्मिक मंत्रालय ने दशकों पहले ही तैयार किए थे। लेकिन विवरण की सूचनाओं के प्रकार में कई बार बदलाव किए गए। इसके बावजूद इसका शत प्रतिशत क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। इस नियम को लागू करने के जरिये प्रशासन में सुधार और पारदर्शिता लाना था। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद प्रभावी तरीके से यह व्यवस्था लागू नहीं हो पा रही है। बता दें कि देश में करीब छह हजार आइएएस अधिकारी कार्यरत हैं। ऐसे में प्रशासन को मजबूत, पारदर्शी और जवाबदेह बनाना जरूरी हो जाता है, क्योंकि अगर एक आम व्यक्ति अनुचित कार्य करता है तो केवल परिवार या उसके कुटुंब तक उसका दुष्प्रभाव पड़ता है, किंतु अगर एक प्रशासनिक अधिकारी अनुचित कार्य अथवा भ्रष्ट आचरण करता है तो उसका प्रभाव समूचे समाज पर पड़ता है, क्योंकि वह समाज का प्रतिबिंब होता है।

दंड का प्रचार प्रसार

कुछ समय पहले सरकार ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर सख्त रवैया अपनाते हुए उन्हें समय पूर्व ही सेवानिवृत्त कर दिया था। वास्तव में यह सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए, भ्रष्टाचार को कम करने की ओर इंगित करता है। प्रतिवर्ष कई हजार सरकारी अधिकारी दंडित होते हैं, किंतु उनके नामों और कारनामों का सही तरह से मीडिया और इंटरनेट मीडिया में न प्रदर्शित करने के कारण लोगों में इसके प्रति जागरूकता की कमी है कि सरकारी नौकरी में अधिकारी दंडित भी होते हैं। वास्तव में लोगों की मानसिकता बन चुकी है कि सरकारी नौकरी पूर्णतया सुरक्षिति प्रकार की है। लिहाजा अगर दंडित अधिकारियों को उचित रूप से उनके नाम और कारनामे को प्रचारित किया जाए तो लोकसेवक शायद अपना भ्रष्ट रवैया बदल सकते हैं। लगातार प्रशासन की जवाबदेहिता को बदलने की कोशिश की जाती रही है, किंतु यह अभी भी अपने उचित स्तर को नहीं प्राप्त कर सका है। इसलिए नौकरशाही को चाहिए कि वह लोकहितवादी तथा जन कल्याणकारी भावना को प्राथमिकता दे। साथ ही नौकरशाही में प्रवेश के तरीकों तथा प्रशिक्षण में भी परिवर्तन करने की जरूरत है। प्रवेश के समय मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए, ताकि इनकी मनोस्थिति का पता चल सके। इससे देश के निचले स्तर से भ्रष्टाचार नियंत्रित होगा तथा देश में समरसता व राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होगी। साथ ही सुशासन की अवधारणा को मजबूती प्रदान करने के लिए ई-गवर्नेस को बढ़ावा देना होगा, जिसके लिए सरकार प्रयासरत भी है।

संपत्ति का विवरण नहीं देने वाले आइएएस अधिकारियों के विरुद्ध केंद्र सरकार कड़े प्रविधान बनाने की तैयारी कर रही है। दरअसल केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हर साल लगभग डेढ़ सौ आइएएस अधिकारी अपनी संपत्ति का विवरण नहीं दे रहे हैं। वेबसाइट पर नाम उजागर करने समेत उन पर दबाव बनाने के लिए अब तक जो उपाय अमल में लाए जा रहे हैं, वे अपर्याप्त सिद्ध होते दिख रहे हैं, लिहाजा सरकार अब और कड़े निर्णय ले सकती है। ऐसे में इस मसले से संबंधित विविध पक्षों को समझा जाना चाहिए।


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