सूर्य की मैग्नेटिक फील्ड की अब हो सकेगी सटीक मैपिंग, विज्ञान ने पहली बार पाई सफलता
डॉ. कारक ने ‘दैनिक जागरण’ को बताया कि यह पहली बार है जब विज्ञानी सूर्य के बाहरी वातावरण (कोरोना मंडल) में ग्लोबल मैग्नेटिक फील्ड (सौर चुंबकीय क्षेत्र) की माप लेने में सफल रहे हैं।
हिमांशु अस्थाना, वाराणसी। सूर्य की बाह्य परत (कोरोना) में होने वाले परिवर्तनों के कारण उत्पन्न सौर विकिरणों और विस्फोटों से धरती को पहुंचने वाली क्षति का पूर्वानुमान अब पहले से सटीक और आसान होगा। दुनिया के अलग-अलग देशों के खगोल विज्ञानियों की टीम ने सूर्य की मैग्नेटिक फील्ड की मैपिंग पद्धति विकसित करने में सफलता पाई है। आइआइटी-बीएचयू के खगोल विज्ञानी डॉ. बिद्या बिनय कारक भी इस टीम का हिस्सा हैं।
डॉ. कारक ने ‘दैनिक जागरण’ को बताया कि यह पहली बार है जब विज्ञानी सूर्य के बाहरी वातावरण (कोरोना मंडल) में ग्लोबल मैग्नेटिक फील्ड (सौर चुंबकीय क्षेत्र) की माप लेने में सफल रहे हैं। प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका ‘द साइंस जर्नल’ में सात अगस्त को इस सफलता पर विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ है। डॉ. कारक ने कहा कि इस खोज के बाद सूर्य के बाह्य वातावरण पर उत्पन्न हलचल और उसके कारण धरती पर होने वाली हानिकारक खगोलीय घटनाओं की सटीक जानकारी प्राप्त करते हुए इनका पूर्वानुमान लगाना आसान होगा।
यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज अधिकांश कार्य सेटेलाइट आधारित प्रणाली पर निर्भर हैं, मोबाइल के जीपीएस से लेकर रक्षा, कृषि और यातायात तक। कोरोना की हलचल से उत्पन्न विकिरणों से सेटेलाइट संचालन में कई बार तकनीकी बाधा आती है। अब सटीक मापन से इससे समय रहते बचा जा सकेगा। वहीं, अंतरिक्ष यात्रियों को भी खतरनाक विकिरणों की चपेट में आने से बचाया जा सकेगा।
डॉ. कारक ने बताया कि कोरोना दरअसल प्लाज्मा की तरह एक लिजलिजी परत होती है, जिसमें इलेक्ट्रॉन्स की सघनता कम या अधिक होने पर सौर विस्फोट होते हैं और विकिरण उत्र्सिजत होते हैं। इनका प्रभाव सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र (ग्लोबल मैग्नेटिक फील्ड) सहित समूचे सौर मंडल पर पड़ता है। सूर्य के चारों ओर की मैग्नेटिक फील्ड के 35 हजार किमी से 2 लाख 50 हजार किलोमीटर तक के अत्यंत प्रभावी दायरे की अब मैपिंग की जा सकेगी। नियर इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी इमेजिंग से इसका चित्र भी लिया जा सकेगा।
कोरोना मंडल से उत्र्सिजत होने वाले विकिरणों का अध्ययन मैग्नेटो सिस्मोलाजी विधि से किया गया है। वहीं इस शोध में कोरोनल मल्टी-चैनल पोलरीमीटर यंत्र का भी प्रयोग किया गया है, जो कि अमेरिका के हाई एल्टीट्यूड ऑब्जर्वेटरी में स्थापित है। 1989 कनाडा के क्यूबेक में जो दुर्दांत खगोलीय घटना (ब्लैक आउट) हुई, उसमें इन्हीं विस्फोटों की भूमिका थी। सारे इलेक्ट्रिकग्रिड और बड़े-बड़े बिजली के ट्रांसफार्मर जल गए थे। अब ऐसी घटनाओं के प्रति सजग रहा जा सकेगा।
डॉ. विद्या विनय कारक ने बताया कि इससे पूर्व दुनिया को सोलर मैग्नेटिक फील्ड के बारे में जानकारी तो थी, मगर कोई निश्चित माप न होने से इस क्षेत्र में अध्ययन पूर्णत: बाधित था। पहली बार इसमें सफलता पाई गई है।