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सजा की दुआ की, कुबूल हुई तो खामोश हो गए

बीते 17 साल से लालू प्रसाद को सजा दिलाने की फरियाद करने वाले लोग इन दिनों अचानक खामोश हो गए हैं। चारा घोटाले की जांच की याचिका दाखिल करने वाली जमात बड़ी संतुलित प्रतिक्रिया दे रही है-'यह न्यायिक प्रकिया का एक पड़ाव है।' इस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया की जरूरत नहीं है। सधी प्रतिक्रिया में इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि किसी वक्तव्य से लालू प्रसाद के पक्ष में सहानुभूति का माहौल न बन जाए!

By Edited By: Published: Thu, 03 Oct 2013 09:49 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2013 12:27 PM (IST)
सजा की दुआ की, कुबूल हुई तो खामोश हो गए

पटना [जागरण ब्यूरो]। बीते 17 साल से लालू प्रसाद को सजा दिलाने की फरियाद करने वाले लोग इन दिनों अचानक खामोश हो गए हैं। चारा घोटाले की जांच की याचिका दाखिल करने वाली जमात बड़ी संतुलित प्रतिक्रिया दे रही है-'यह न्यायिक प्रकिया का एक पड़ाव है।' इस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया की जरूरत नहीं है। सधी प्रतिक्रिया में इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि किसी वक्तव्य से लालू प्रसाद के पक्ष में सहानुभूति का माहौल न बन जाए! यहां तक कि भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी तक 'बोया पेड़ बबूल..' का निर्गुण पाठ कर रहे हैं।

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घोटाले की जांच की मांग वाली याचिका की पैरवी करने वाले वरीय अधिवक्ता पीके शाही इन दिनों राज्य सरकार में मंत्री हैं। उन्होंने कोर्ट के फैसले पर मुंह ही नहीं खोला। इस प्रकरण में शाही की चर्चा दूसरे संदर्भ में भी हुई। लालू प्रसाद और उनकी पार्टी के दूसरे नेता रांची स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत के न्यायाधीश पीके सिंह को बदलने की मांग कर रहे थे। मांग का आधार यह कि जज और पीके शाही में रिश्तेदारी है। खैर, लालू की फरियाद नहीं सुनी गई। राजद के लोग तो यहां तक बोल गए कि महाराजगंज की हार से नाराज शाही बदला ले रहे हैं। शाही ने उस समय भी ऐसे आरोपों से इंकार किया था।

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इधर भाजपा का रुख बदला हुआ है। वह अब चारा घोटाला मामला को नया एंगल दे रही है। मोदी और रविशंकर प्रसाद मांग कर रहे हैं कि लालू के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू सांसद शिवानंद तिवारी को जांच के दायरे में लाकर मुकदमा शुरू किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने लालू प्रसाद को दोषी करार देने पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी। वे भाजपा की मांग पर भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहे। बहरहाल शिवानंद तिवारी किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। तिवारी के मुताबिक वे तो उसी दिन से अपनी संलिप्तता की जांच की मांग कर रहे हैं, जिस दिन आरोप लगाया गया था।

वस्तुत: प्रतिक्रिया में कंजूसी की इकलौती वजह यह नहीं है कि इससे लालू प्रसाद के समर्थक गोलबंद हो सकते हैं। असल में चारा घोटाले की संरचना सर्वदलीय थी। संयोग से अदालत ने जिन लोगों को दोषी करार दिया है, वे भी सर्वदलीय स्वरूप का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। लालू प्रसाद और विद्यासागर निषाद राजद के नेता हैं। ध्रुव भगत भाजपा से जुड़े हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र और डॉ. जगदीश शर्मा जदयू खेमे के हैं। डॉ. मिश्र की जिस सिफारिशी चिट्ठी को सजा का आधार बनाया गया है, वह उस समय की है, जब डॉ. मिश्र कांग्रेस में थे। इसलिए कांग्रेस भी खामोशी में ही भलाई समझती है।

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