ताकतवर हैं हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जानिए क्यों है यह पद..
नृपेंद्र मिश्र को प्रमुख सचिव बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख एके डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है। 1
नई दिल्ली। नृपेंद्र मिश्र को प्रमुख सचिव बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख एके डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है। 1968 बैच के आइपीएस डोभाल आइबी अधिकारी के रूप में कई साहसिक कारनामों को अंजाम देने के लिए जाने जाते हैं। वे एक मात्र ऐसे सिविल अधिकारी हैं, जिन्हें वीरता के लिए सेना में दिए जाने वाले दूसरे सबसे बड़े सम्मान कीर्ति चक्र से सम्मानित किया जा चुका है।
सामान्य कद-काठी के डोभाल का करियर करिश्माई कामयाबियों से भरा है। पाकिस्तान में छह साल तक काम कर चुके डोभाल को सीमा पार पलने वाले आतंकवाद की अच्छी जानकारी है। उन्होंने पूर्वोत्तर में मिजो नेशनल आर्मी में सेंध लगाकर मिजोरम समस्या को खत्म करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। यही नहीं, 1989 में जब ऑपरेशन ब्लैक थंडर के जरिये स्वर्ण मंदिर में छिपे उग्रवादियों को बाहर निकालने की कार्रवाई शुरू हुई तो डोभाल उस वक्त उग्रवादियों के बीच हरमंदिर साहब के अंदर मौजूद थे। डोभाल की कामयाबियों की सूची में आतंक से जूझ रहे पंजाब और जम्मू-कश्मीर में कामयाब चुनाव कराना भी शामिल है। 1999 में कंधार विमान अपहरण कांड के दौरान आतंकियों से बातचीत में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद सबसे पहले अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने सृजित किया था। पहले एनएसए ब्रजेश मिश्रा थे। एनएसए समय के साथ ताकतवर पद बनता गया है। वह राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रत्येक पहलू पर निगाह रखता है और उस बारे में प्रधानमंत्री को सलाह देता है। पहले प्रमुख खुफिया एजेंसियां सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती थीं। अब ये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को रिपोर्ट करती है।
- ब्रजेश मिश्रा के बाद इस महत्वपूर्ण पद को क्रमश: जेएन दीक्षित, एमके नारायणन और शिवशंकर मेनन ने संभाला। इनमें से केवल नारायणन पुलिस सेवा से थे, शेष विदेश सेवा के अधिकारी थे।
- इंटेलीजेंस ब्यूरो और रॉ सरीखी एजेंसियां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को ही रिपोर्ट करती हैं। एनएसए प्रधानमंत्री को अंतरराष्ट्रीय मसलों पर भी सलाह देता है। इसके अलावा पड़ोसी देशों से सीमा विवाद सुलझाने की प्रक्रिया में भी उसकी भूमिका होती है। आम तौर पर वह विदेशी दौरों में भी प्रधानमंत्री के साथ होता है।
- अजीत डोभाल उत्तराखंड के पौड़ी जिले के धीड़ी गांव के हैं। उनके पिता सेना में मेजर थे और दादा पुरोहित का काम करते थे।
- अजीत 1968 बैच केकेरल कैडर के आइपीएस अफसर हैं। वह 2005 में इंटेलीजेंस ब्यूरो के निदेशक पद से रिटायर हुए। वह कुछ समय के लिए कर्नाटक सरकार के सुरक्षा सलाहकार भी रह चुके हैं।
- अभी तक वह विवेकानंद केंद्र की ओर से स्थापित किए गए विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के निदेशक थे। 69 वर्षीय डोभाल कीर्ति चक्र पदक विजेता हैं।
- 1988 में स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को निकाल बाहर करने केलिए चलाए गए ऑपरेशन ब्लैक थंडर में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
- उनकी ख्याति एक दक्ष खुफिया अधिकारी की रही है। मिजोरम समस्या सुलझाने में उनका खासा योगदान रहा। वह कश्मीर और पंजाब में उन दिनों सक्रिया रहे जब इन राज्यों में उग्रवाद चरम पर था।
- कांधार कांड से चर्चित भारतीय विमान के अपहरण संकट को हल करने में भी उनकी भूमिका थी। वह बंधकों की सुरक्षित रिहाई के लिए कांधार भी गए थे।
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