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Post-COVID Syndrome: कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद भी रहें सतर्क, ये तकलीफें आई सामने; पढ़े एक्सपर्ट की राय

मुंबई के कंसल्टेंट रीजेनरेटिव साइंसेज के डॉ. बी.एस. राजपूत ने बताया कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी अगर समस्याएं बनी हुई हैं तो उन्हें गंभीरता से लें। चिकित्सक की देखरेख में आगे का इलाज कराने के साथ-साथ सभी सावधानियां गंभीरता से बरतें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 09:53 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 09:53 AM (IST)
Post-COVID Syndrome: कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद भी रहें सतर्क, ये तकलीफें आई सामने; पढ़े एक्सपर्ट की राय
अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी अगर समस्याएं बनी हुई हैं तो उन्हें गंभीरता से लें।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी पूरी दुनिया में फैली हुई है और भारत में ही इस वायरस से संक्रमितों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है। यह एक विषम परिस्थिति है, जहां कोरोना वायरस से संक्रमित होते ही उस व्यक्ति का पूरा परिवार प्रभावित हो जाता है और संक्रमित व्यक्ति के सकुशल अस्पताल से वापस घर आने तक परिवार चिंताग्रस्त रहता है, लेकिन घर आने पर भी मरीज पूर्णत: स्वस्थ न हो और उसको भिन्न-भिन्न तकलीफें बनी रहें तो यह गंभीर समस्या बन जाती है। कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद बनी रहने वाली इन तकलीफों को पोस्ट कोविड रेमनेंट और पोस्ट कोविड सिंड्रोम कहा जाता है।

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ये तकलीफें आई सामने: पिछले कई महीनों में डाक्टरों ने पाया कि मरीज के ठीक होने के बाद भी खांसी आना, जल्दी सांस फूल जाना, शरीर में बेहद कमजोरी रहना और जोड़ों में हल्की सूजन बने रहना पाया गया। इसकी जांच के लिए एचआर सीटी-चेस्ट कराने पर पाया गया कि काफी मरीजों को लंग फाइब्रोसिस या आईएलडी नामक बीमारी हो गई है जो फिलहाल गंभीर और लाइलाज रोगों में शुमार है। इसके अलावा ये तकलीफें भी सामने आ रही हैं:

  • सेरीब्रल स्ट्रोक या मस्तिष्क में रक्त संचार प्रभावित होना, जिससे मरीज लकवे का शिकार हो सकता है
  • पल्मोनरी एंबोलिज्म या फेफड़े की धमनी में थक्का फंसना। इसमें एकाएक सांस लेने में तकलीफ होती है
  • डीप वेन थ्रोंबोसिस या नलिकाओं में थक्के जमना। यह एक गंभीर समस्या है और समय से उपचार न करने पर जानलेवा भी हो सकती है

कार्यक्षमता हुई प्रभावित: डाक्टरों ने पाया है कि कोरोना संक्रमण के दौरान सायटोकाइन स्टार्म या रक्त प्रतिरोधक रसायन का जरूरत से ज्यादा निर्माण ही ज्यादातर मरीजों में समस्याओं का मुख्य कारण है। सायटोकाइन स्टार्म की वजह से ही शरीर के विभिन्न अंगों और खासकर फेफड़े के अंदरूनी हिस्से या ऊतकों में और रक्त नलिकाओं में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से फेफड़े के कुछ हिस्सों में स्थायी क्षय हो जाता है और वही बाद में लंग फाइब्रोसिस के रूप में परिलक्षित होता है। रक्त नलिकाओं में भी सूजन की वजह से जगह-जगह थ्रोंबोसिस (खून के थक्के जमना) हो जाता है जो मस्तिष्क, हृदय व फेफड़े की कार्यक्षमता प्रभावित कर सकता है।

कराएं ये जांचें: सी.बी.सी, ई.एस.आर., डी- डाइमर (रक्त की जांच), एचआर( सीटी चेस्ट), लंग फंक्शन टेस्ट।

ऐसे बचें इन तकलीफों से: इस समस्या का मुख्य कारण वायरस संक्रमण और उससे होने वाला सायकोकाइन स्टॉर्म है इसलिए चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार

निम्न उपाय अपनाएं:

  • ऊतकों के पुन:निर्माण में औषधियों का प्रयोग करें
  • इम्युनिटी बढ़ाएं ताकि वायरस का ज्यादा प्रभाव न हो
  • विटामिन-सी, नैनो करक्यूमिन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें
  • मैग्नीशियम एवं सेलीनियम युक्त पदार्थ अपने एंटी वायरल एवं एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से रोगजनित क्षय को सीमित कर सकते हैं
  • फेफड़ों की सूजन कम करने और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड एवं यूबीक्वीनाल युक्त फूड सप्लीमेंट्स लें

महत्वपूर्ण सलाह: अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी अगर समस्याएं बनी हुई हैं तो उन्हें गंभीरता से लें। चिकित्सक की देखरेख में आगे का इलाज कराने के साथ-साथ सभी सावधानियां गंभीरता से बरतें, क्योंकि कोरोना वायरस का संक्रमण दोबारा भी हो सकता है।


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