सब्जी उत्पादक ने पेश की मिसाल, एक करोड़ के घाटे के बाद भी श्रमिकों को दिया दो माह का वेतन
सब्जी उत्पादक युवा राजीव जैन टीनू ने एक करोड़ रुपये की सब्जियां खराब होने के बावजूद मजदूरों को बिना कामकाज किए करीब दो माह तक नियमित पगार व राशन की व्यवस्था की।
आशीष कुमार खरे, नरसिंहपुर। कोरेाना वायरस और लॉकडाउन के कारण कई क्षेत्रों पर बड़ी मार पड़ी है। देश के महानगरों में काफी संख्या में काम करने वाले मजदूर बेरोजगार हो गए। काम-धंधे बंद होने के कारण कई प्रतिष्ठानों से कर्मचारी निकाले जा रहे थे, वहीं मप्र के नरसिंहपुर जिले के कोरेगांव के हालात बिल्कुल उलट थे। यहां सब्जी उत्पादक युवा राजीव जैन टीनू ने एक करोड़ रुपये की सब्जियां खराब हो जाने के बावजूद अपने नियमित मजदूरों को बिना कामकाज किए करीब दो माह तक नियमित पगार व राशन की व्यवस्था कर इंसानियत की मिसाल पेश की।
50 एकड़ जमीन पर खेती
नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव तहसील के आदिवासी बहुल गांव कोरेगांव में करीब 50 एकड़ जमीन पर मिर्च, टमाटर व शिमला मिर्च की खेती करने वाले राजीव टीनू जैन की उत्पादित सब्जियां मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात के अहमदाबाद, उप्र के कानपुर, झांसी, लखनऊ, फैजाबाद, इलाहाबाद आदि शहरों में सप्लाई की जाती हैं। 25 मार्च को अचानक लॉकडाउन की वजह से उनकी उपजाई सब्जियों का परिवहन रुक गया। ये सब्जियां रुखे-रुखे खराब होने लगीं। करीब एक करोड़ रुपये का उन्हें घाटा उठाना पड़ा।
ऐसे हुआ जिम्मेदारी का अहसास
राजीव जैन ने लॉकडाउन के दौरान जब देशभर के हाईवे से पैदल गुजरते महानगरों के मजदूरों की बेबसी को देखा तो उन्हें अपने नियमित मजदूरों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी का अहसास हुआ। उन्होंने अपने करीब 40 मजदूरों को न सिर्फ प्रतिदिन के हिसाब से 180 रुपये मजदूरी का भुगतान अगले 60 दिन तक किया, बल्कि इन्हें सब्जियों के साथ-साथ माहभर का राशन भी दिया। आगे चलकर टीनू जैन ने अपनी इस सेवा का दायरा बढ़ाकर आस-पास के गांवों तक कर लिया। लॉकडाउन के दौरान 42 साल के टीनू ने करीब 400 परिवारों को राशन उपलब्ध कराया।
हर माह 30 लाख रुपये का नुकसान
जैन ने बताया कि गर्मी के सीजन में सब्जियां महंगी बिकती हैं। इसी दौरान लॉकडाउन होने से उन्हें हर माह 30 से 35 लाख रुपये का नुकसान हुआ। करीब तीन माह में उन्हें एक करोड़ का फटका पड़ा है। इस बार उन्होंने ज्यादा फसल लगाई थी। वह भी खराब हो गई।
मजदूर बोले-हमें निराश नहीं किया
शीला बाई ठाकुर, निकिता ठाकुर, अंजली ठाकुर, दशरथ ठाकुर ने बताया, 'लॉकडाउन में बिक्री नहीं होने के कारण टीनू भैया की पूरी फसल खराब हो गई। फिर भी उन्होंने हमें बिना काम के दो माह की मजदूरी दी, साथ ही राशन और अन्य जरूरतों को भी पूरा किया। जब लॉकडाउन लगा तो दूसरे मजदूरों की हालत देखकर हम डर रहे थे, कि हमारा क्या होगा, पर टीनू भैया ने हमें निराश नहीं किया।'
कभी नहीं किया सेवा का प्रचार
हैरत की बात ये है कि इतना सब करने के बावजूद उन्होंने कभी-भी अपने इस सेवा कार्य का कोई प्रचार नहीं किया। ये बात अलहदा है कि अन्य लोगों ने उनकी सेवा कार्य करते तस्वीरें खींच लीं। टीनू अपनी इस सेवा के लिए शिक्षक-किसान पिता रवींद्र जैन व गृहिणी मां राजमति जैन को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं। ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर खेती सब्जी उत्पादन के पहले टीनू जैन ठेकेदारी का काम करते थे। कोरेगांव के आदिवासियों के पिछड़ेपन को देख, उनके मन में इन्हें रोजगार देने का विचार आया।
करीब चार साल पहले टीनू ने यहां करीब 50 एकड़ जमीन खरीदकर आदिवासी परिवारों को रोजगार दिया। आधुनिक खेती से जलसंरक्षण टीनू जैन पर्यावरणप्रेमी भी हैं। जलसंरक्षण की दिशा में इनके द्वारा खेती में अपनाई जा रही आधुनिक मल्चिंग पद्धति इसकी बानगी है। खेत में पॉलीथिन की लेयर बिछाकर ड्रिप से सिंचाई की इस पद्धति से वे आम खेतों की तुलना में करीब 90 फीसद पानी की बचत कर रहे हैं।