नई दिल्ली, अनुराग मिश्र

पहली रिपोर्ट : 2050 तक यातायात से होने वाला उत्सर्जन दोगुना हो जाएगा। लेकिन अगर हम शहरों के वाहनों को इलेक्ट्रिक कर दें तो शहरों में यातायात से होने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को 70 फीसद तक कम किया जा सकता है। वहीं इससे शहरों का कुल प्रदूषण भी 50 फीसद तक कम हो जाएगा। वर्ल्ड इकोनामी फोरम की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

दूसरी रिपोर्ट : स्विट्जरलैंड स्थित क्लाइमेट समूह जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का एक प्रौद्योगिकी भागीदार भी है, के मुताबिक दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में से तीन शहर भारत के हैं। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के लोग खतरनाक वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को दूर करने में इलेक्ट्रिक वाहनों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बढ़ता इस्तेमाल वायु प्रदूषण घटाने के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर भी लगाम लगा सकता है।

तीसरी रिपोर्ट : यूमास (द मेसाचुएट्स अंडर ग्रेजुएट जर्नल ऑफ इकोनॉमी) की रिपोर्ट के मुताबिक अगर सरकारी नीतियां इलेक्ट्रिक व्हीकल की खरीद में 2024 तक अपना 25 फीसद लक्ष्य पूरा कर लेती है तो विभिन्न तरह के करीब 500,000 इलेक्ट्रिक व्हीकल सड़कों पर होंगे। इससे दिल्ली में कॉर्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी।

चौथी रिपोर्ट : आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में कुल प्रदूषण में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की हिस्सेदारी 36 फीसद है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश में बिकने वाले 30% वाहन इलेक्ट्रिक हों। सरकार ने प्रदूषण की समस्या का हल तलाशने के लिए एक मेगा प्लान बनाया है। इसमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ब्रिक्री बढ़ाने के साथ पेट्रोल और डीजल के विकल्पों पर ध्यान देना शुरु किया है।

ये चारों रिपोर्ट बताती है कि अगर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ा दिया जाए तो धूल-धुआं उड़ाती गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण कम हो जाएगा। जिससे हजारों लोगों की जानें बच सकेंगी। यही नहीं इससे स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को भी कम किया जा सकेगा। रिपोर्ट्स बताती है कि 2035 तक शहरीकरण बढ़ेगा। तब तक देश के 17 शहर दुनिया के टॉप 20 सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में शामिल हो चुके होंगे। वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है, जो सबसे बड़ी हेल्थ इमरजेंसी में गिनी जा रही है। ऐसे में ये एक मौका है कि परिवहन के साधन पर्यावरण-फ्रेंडली हों। कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों से हवा में प्रदूषक तत्वों की कमी आती है। ऐसा उन्होंने प्रायोगिक स्तर पर जांचा है। इससे हर साल वायु प्रदूषण के चलते होने वाली मौतों में कमी दर्ज होने की बात भी सामने आई। हिटाची एनर्जी इंडिया के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर अकीलुर रहमान कहते हैं कि दुनिया भर में ऑटोमेटिव इंडस्ट्री में बदलाव हो रहे हैं। स्वच्छ हवा के लिए वैकल्पिक ईंधन और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान दिया जा रहा है। इलेक्ट्रिक व्हीकल भविष्य की टिकाऊ ऊर्जा का विकल्प प्रदान करते हैं साथ ही हमारे जीरो कॉर्बन के लक्ष्य की भी पूर्ति करते हैं।

अशोक लीलैंड के प्रोडक्ट डेवलपमेंट के सीनियर वाइस प्रेजीडेंट डा. कनाकासबापथि सुब्रमण्यम कहते हैं कि उत्सर्जन के स्तर को कम करने में सार्वजनिक परिवहनों की बड़ी भूमिका हो सकती है चूंकि सार्वजनिक वाहनों का ट्रांसपोर्ट सिस्टम में बड़ा हिस्सा है ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल कर प्रदूषण की समस्या का हल तलाशा जा सकता है।

हवा में पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रिक ऑक्साइइड की मात्रा में आएगी कमी

अमेरिका स्थित नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में कार्बन और जलवायु विज्ञान के एक शोध कार्यक्रम के तहत एक मॉडल के जरिए चीन में बेहद प्रदूषित दिनों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि डीजल से चलने वाले भारी वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक भारी वाहनों का इस्तेमाल किया जाता है तो हवा में नाइट्रिक ऑक्साइड और हवा में मौजूद छोटे प्रदूषित कणों जिन्हें हम पर्टिकुलेट मैटर की मात्रा में बड़े पैमाने पर कमी की जा सकती है। इससे हर साल प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या में कमी की जा सकती है। वहीं छोटी पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों को इलेक्ट्रिक में बदल दिया जाए तो ग्रीन हाउस गैसों में उत्सर्जन में कमी के साथ ही हर साल लगभग 145 लोगों की जान बचाई जा सकेगी। वहीं रिसर्च में सामने आया कि अगर भारी गाड़ियों की बजाए सिर्फ छोटी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदल दिया जाए तो लोगों की सेहत पर होने वाले खर्च में और कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में लगभग दो गुनी कमी आएगी।

इलेक्ट्रिक गाड़ियों से कम होता है प्रदूषण

पिछले कुछ समय में सड़क पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। पेट्रोल और डीजल की तुलना में इन गाड़ियों की संख्या बढ़ना आपकी सेहत के लिए अच्छा है। कनाडा की टोरंटों यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं कि सड़कों पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बढ़ने से आपकी सेहत बेहतर होगी। टोरेंटो यूनिवर्सटी के शोधकर्ताओं ने एक मॉडल बना कर अध्ययन किया है जिसमें बताया गया है कि बढ़ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों से हवा में प्रदूषक तत्वों की कमी आई है। इससे हर साल वायु प्रदूषण के चलते होने वाली मौतों में कमी आएगी।

इस शोध कार्य का नेतृत्व कर रहीं टोरंटों यूनिवर्सिटी में सिविल एंड मिनरल इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर मैरिएन हेत्ज़ोपोलू के मुताबिक शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण की समस्या का असर वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर होता है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां की संख्या बढ़ने से हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर की कमी होती है। इससे हवा की गुणवत्ता काफी बेहतर होती है। इससे लोगों के जीवन पर सीधा असर हाता है।

कनाडा में हर साल लगभग वायु प्रदूषण के चलते लगभग 14,600 लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है। इसमें लगभग 3,000 मौतें ग्रेटर टोरंटो हैमिल्टन एरिया में होती हैं। दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन नरेंद्र सैनी कहते हैं कि हवा में ज्यादा प्रदूषण होने से निश्चित ही स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हवा में मौजूद अलग अलग केमिकल और पार्टिकुलेट मैटर के चलते लोगों में अस्थमा, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर, सिर में दर्द, आंखों में जलन, त्वचा पर एलर्जी, सहित कई कम मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। पीएम 2.5 बहुत ही छोटे कण होते हैं जो सांस के साथ आपके ब्लड में पहुंच सकते हैं। इससे कई तरह की मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। ज्यादा प्रदूषण में रहने से हार्ट अटैक जैसी दिक्कत भी हो सकती है।

स्विच मोबिलिटी के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर महेश बाबू कहते हैं कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बड़ा मकसद कॉर्बन उत्सर्जन को शून्य करना है। उदाहरण के तौर पर एक डबल डेकर बस प्रति वर्ष 70 टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम कर सकती है। मुंबई में दौ सौ इलेक्ट्रिक बसों को चलाने से बड़ी तादाद में कॉर्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है। यह उत्सर्जन में कमी प्रति वर्ष 86,000 पेड़ लगाने जितनी होगी।

पैसे की होगी बचत

मैरिएन हेत्ज़ोपोलू ने एक मॉडल बनाया जिसके जरिए उन्होंने दिखाया कि पेट्रोल और डीजल की तुलना में बढ़ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों से एक तरफ जहां हवा की गुणवत्ता सुधरने से लोगों की सेहत अच्छी हो सकती है वहीं हर साल स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले लाखों डॉलर भी बचाए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस रिसर्च के मिले परिणाम काफी चौकाने वाले थे। उन्होंने कहा कि अगर सिर्फ एक पेट्रोल या डीजल की गाड़ी को इलेक्ट्रिक गाड़ी से रिप्लेस करने पर देश को 10,000 डॉलर के स्वास्थ्य और सामाजिक फायदे होंगे। इस का फायदा सिर्फ कार खरीदने वाले को नहीं बल्कि उस शहर में रहने वाले हर व्यक्ति को होगा।

परिवहन सुधरेगा तो हवा भी होगी बेहतर

यूमास (द मेसाचुएट्स अंडर ग्रेजुएट जर्नल ऑफ इकोनॉमी) की रिपोर्ट के मुताबिक अगर सरकारी नीतियां इलेक्ट्रिक व्हीकल की खरीद में 2024 तक अपना 25 फीसद लक्ष्य पूरा कर लेती है तो विभिन्न तरह के करीब 500,000 इलेक्ट्रिक व्हीकल सड़कों पर होंगे।

इससे दिल्ली में करीब 159 टन पीएम 2.5 और 4.8 मिलियन टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। इससे करीब एक लाख पेट्रोल कारों द्वारा पूरे जीवन भर के कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आएगी। हमें सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा जिससे लोग अपने वाहनों को घर पर ही छोड़ें।

2050 तक यातायात से होने वाला उत्सर्जन दोगुना हो जाएगा। लेकिन अगर हम शहरों के वाहनों को इलेक्ट्रिक कर दें तो शहरों में यातायात से होने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को 70 फीसद तक कम किया जा सकता है। वहीं इससे शहरों का कुल प्रदूषण भी 50 फीसद तक कम हो जाएगा। वर्ल्ड इकोनामी फोरम की नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

सरकार दे रही बढ़ावा, इतने वाहनों का हुआ रजिस्ट्रेशन

मिनिस्ट्री ऑफ हेवी इंडस्ट्रीज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ई-वाहन पोर्टल पर पिछले तीन सालों में लगभग 5,17,322 गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। जबकि इनमें से लगभग 1,04,806 इलेक्ट्रिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन सिर्फ 2021 में हुआ है। देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए, भारी उद्योग मंत्रालय ने 2015 में (हाइब्रिड और) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया (FAME India) योजना शुरू की।

केंद्र ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए अन्य पहल की है। मई 2021 में, केंद्र ने बैटरी की कीमतों को कम करने के लिए देश में एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (एसीसी) के निर्माण के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना को मंजूरी दी गई। केंद्र ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी भी 12% से घटाकर 5% कर दिया है। इससे पहले, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने घोषणा की थी कि बैटरी से चलने वाले वाहनों को हरी लाइसेंस प्लेट दी जाएगी और उन्हें परमिट लेने की जरूरत नहीं होगी।

बनाई जा रही इलेक्ट्रिक सड़क

एक लाख करोड़ की लागत से बन रहे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे पर एक लेन ई हाईवे की होगी। यह ई लेन करीब 1300 किलोमीटर लंबी होगी। इससे लॉजिस्टिक का खर्च 70 फीसद तक कम हो जाएगा। नितिन गडकरी ने बताया है कि इन ई-रोड पर उसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, जिस तकनीक से जर्मनी में ई हाईवे बनाए गए हैं। जर्मनी और भारत दोनों जगहों पर सीमेंस ई रोड बना रही है।

सीमेंस ने सबसे पहले जर्मनी की फ्रैंकफर्ट शहर में मई 2019 में इस तकनीक से सड़क बनाई। छह मील लंबी इस सड़क के ऊपर बिजली के विशाल केबल लगे हैं। इन केबल में 670 वोल्ट का करेंट होता है। इनके नीचे से गुजरने वाले इलेक्ट्रिक ट्रक इन केबल से ऊर्जा हासिल करके अपनी बैटरी को रिचार्ज करते हैं। इन रोड पर वाहन 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकेंगे और प्रदूषण भी बेहद कम होगा।

इस तकनीक का होगा इस्तेमाल

ट्रांसपोर्ट रिसर्च लैबोरेट्री के मुताबिक इलेक्ट्रिक रोड में मुख्य रूप से तीन तकनीक का इस्तेमाल होता है। पहला गाड़ियों के ऊपर पावर लाइन होती हैं जैसा भारत में होता है। वहीं जमीन पर पटरी या अंडरग्राउंड क्वाएल से भी बिजली की आपूर्ति की जाती है। ओवरहेड केबल सबसे उन्नत तकनीक है लेकिन गैर व्यावसायिक वाहनों के लिए ये कारगर नहीं है क्योंकि कार की ऊंचाई बेहद कम होती है और ये बेहद ऊपर मौजूद केबल से ऊर्जा हासिल नहीं कर पाएंगे जबकि ई ट्रक के लिए ये केबल पहुंच में होंगे। वहीं जमीन से मिलने वाली बिजली जैसे रेल से आसानी से ज्यादा ऊर्जा मिल जाएगी। वहीं चार्जिंग क्वाएल की तकनीक में कम पॉवर मिलेगी और ज्यादा उपकरण भी लगेंगे।

इलेक्ट्रिक गाड़ियों से इतना कम होगा प्रदूषण

इलेक्ट्रिक गाड़ी में किसी तरह का कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। एक रिपोर्ट के एक डीजल या पेट्रोल गाड़ी की तुलना में एक इलेक्ट्रिक गाड़ी के सड़क पर चलने से लगभग 1.5 मिलियन ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आती है। इस कमी को आप ऐसे समझ सकते हैं कि लंदन से बार्सिलोना की चार रिटर्न फ्लाइटों के उड़ने से इतने कार्बन का उत्सर्जन होता है।

इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर भारत में ये है प्लानिंग

कुछ समय पहले भारत में भी इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को लेकर विजन 2030 रिपोर्ट फाइनेंसिंग इंडिया ट्रांजिशन टू इलेक्ट्रिल व्हीकल पेश की गई। इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में संभावनाएं तलाशने वाली इस रिपोर्ट को नीति आयोग ने पेश किया। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2030 तक देश के 70 फीसद व्यवसायिक वाहन, 30 फीसद निजी कार, 40 फीसद बस और 80 फीसद दोपहिया और तीन पहिया वाहन इलेक्ट्रिक हो जाएंगे। इस तरह कुल 102 मिलियन इलेक्ट्रिक वाहन देश में होंगे। इस रिपोर्ट में दो स्थितियों के हिसाब से अनुमान लगाया गया है। पहला अगर वाहन का विद्युतीकरण तेजी से हो तो नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक की हिस्सेदारी 43 फीसद (विजन से 10 फीसद ज्यादा) होगी। वहीं अगर रफ्तार धीमी रही तो सिर्फ 23 फीसद वाहन इलेक्ट्रिक होंगे, जो विजन से 40 फीसद कम होगा। इसलिए इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से बढ़ावा देने की जरूरत है।

अपार निवेश का अवसर

फाइनेंसिंग इंडिया ट्रांजिशन टू इलेक्ट्रिल व्हीकल रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहनों से भारत में 2021 से 2030 के बीच 206 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश की संभावना है। इलेक्ट्रिक व्हीकल के ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चर (OEM) में 12,39,800 करोड़, चार्जर इंफ्रास्ट्रक्चर लगाने में 20,600 करोड़, और बैटरी निर्माण में 85,900 करोड़ का निवेश किया जा सकता है।

इलेक्ट्रिक वाहनों संग शयरिंग को बढ़ाना होगा

इलेक्ट्रिक व्हीकल से संबंधित एक अन्य रिपोर्ट थ्री रिजोल्यूशन इन अर्बन ट्रांसपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ शेयरिंग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक वाहनों की संख्या 2.1 अरब (अनुमानित) होगी। इससे करीब 4600 मेगाटन CO2 उत्सर्जन होगा। लेकिन यदि इलेक्ट्रिक और ऑटोमेशन को बढ़ावा दिया जाए तो यह प्रदूषण घट कर 1700 मेगाटन रह जाएगा। तीसरी स्थिति में अगर इलेक्ट्रिक और ऑटोमेशन संग शेयरिंग को भी बढ़ावा दिया जाए तो सिर्फ .5 अरब वाहनों की जरूरत होगी और उत्सर्जन घटकर केवल 700 मेगाटन रह जाएगा।

इलेक्ट्रिक गाड़ी से पेट्रोल कार की तुलना करें

लग्जेमबर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने इलेक्ट्रिक कारों और पेट्रोल गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन और पर्यावरणीय प्रभाव की तुलना करने में आपकी मदद करने के लिए एक शानदार टूल विकसित किया है। इस टूल बनाने का मुख्य उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को यह बताना है कि क्यों, कैसे और किन मामलों में इलेक्ट्रो-मोबिलिटी वास्तव में आपको और पर्यावरण को फायदा पहुंचा रही है। दूसरा उद्देश्य यह दिखाना है कि किन परिस्थितियों में इलेक्ट्रिक वाहन बेहतर साबित हो सकते हैं।

बैटरी की गिरती कीमत से सस्ती हुई गाड़ियां

साल 2010 से 2020 के बीच लीथियम आयन बैटरी की कीमत में 89% फीसदी की गिरावट देखी गई है। इसके चलते इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमतों में भी गिरावट देखी गई है। आने वाले समय में भी बैटरी की कीमत में कमी और आधुनिक तकनीक के चलते गाड़ियों की कीमत में कमी देखी जाएगी।

ये हैं राज्यों की तैयारी

दिल्ली

एनसीटी ऑफ दिल्ली की इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी 2018 के मुताबिक 2023 तक दिल्ली में रजिस्टर होने वाली गाड़ियों में 25 फीसदी इलेक्ट्रिक गाड़ियों का लक्ष्य रखा गया है। 2023 तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में 50 फीसदी गाड़ियां इलेक्ट्रिक होंगी। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरियों को रीसाइकिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश की इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी 2018 के मुताबिक 2030 तक उत्तर प्रदेश में 1000 इलेक्ट्रिक बसों का लक्ष्य रखा गया है। लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और गाजियाबाद में ऑटो रिक्शा, स्कूल बस, वैन और कैब को 100 फीसदी इलेक्ट्रिक करने का लक्ष्य रखा गया है।

2047 तक बदलनी होगी तस्वीर

कनवेनर, सेंटर फॉर ऑटो पॉलिसी एंड रिसर्च के के.के.गांधी का कहना है कि सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चर्स (SIAM) ने व्हाइट पेपर पेश करके 2047 तक देश में 100 फीसदी इलेक्ट्रिक व्हीकल लाए जाने बात कही है। ऐसे में आजादी के 100 साल पूरे होने पर देश एक बड़ी उपलब्धि हासिल करेगा। हालांकि सरकार जीरो एमिशन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इलेक्ट्रिक व्हीकल के साथ ही हाइड्रोजन व्हीकल को भी बढ़ावा देने पर विचार कर रही है। आने वाले समय में हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियां भी सड़कों पर देखी जा सकती हैं। सरकारों की ओर से दिए जा रहे प्रोत्साहन से भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या आने वाले दिनों में तेजी से बढ़ेगी।

यूरोप में ये रखा गया है लक्ष्य

डब्ल्यूईएफ के मोबिलिटी इंडस्ट्री एंड सिस्टम इनिसिएटिव हेड डॉ क्रिस्टोफर वुल्फ ने कहा कि अगर हम शहरों के वाहनों को बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिफाई कर दें तो हम जलवायु परिवर्तन और शहरों की हवा साफ करने की दिशा में कामयाब हो सकते हैं। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए डब्ल्यूईएफ ने हाल में जीरो इमिशन अर्बन फ्लीट नेटवर्क नाम की पहल शुरू की है। इसमें पब्लिक और प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देकर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ाई जाएगी। जीरो इमिशन अर्बन फ्लीट नेटवर्क के तहत यूरोप के शहरों में 2025 और 2030 तक क्रमश: 50 फीसद और 100 फीसद वाहन इलेक्ट्रिफिकेशन का लक्ष्य हासिल करने की योजना है। नार्वे में सबसे अधिक इलेक्ट्रिक कार है। वहां कुल वाहनों के करीब 75 फीसद इलेक्ट्रिक वाहन है। इस कारण से वहां प्रदूषण की मात्रा बेहद कम हुई। आईसलैंड, स्वीडन, फिनलैंड जैसे देश नार्वे के बाद सबसे अधिक इलेक्ट्रिक वाहन का प्रयोग करते है। यही नहीं नार्वे ने इलेक्ट्रिक वाहनों को रोड टैक्स, टोल टैक्स में छूट दी है।