Pollution Facts: चार दशक में पहली बार कम हुआ जहरीले कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन
यह अत्यंत सुखद है कि वर्ष 1982 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर में गिरावट दर्ज की गई है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। कोरोना वायरस (Covid-19) का आक्रमण शुरू होने से पहले से ही देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती का आलम चल रहा है। यह चिंता का विषय है, लेकिन साथ ही इसकी वजह से वातावरण शुद्ध हुआ है क्योंकि कई किस्म के जहरीले तत्वों के उत्सर्जन में कमी दर्ज की गई है। इनमें से सबसे प्रमुख है कार्बन डाई ऑक्साइड।
कई कारक हैं जिम्मेदार
अर्थव्यवस्था में सुस्ती के अलावा कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के स्तर में कमी की मुख्य वजहें हैं कोरोना वायरस के संक्रमण के मद्देनजर लागू देशव्यापी लॉकडाउन। इसके अलावा हाल के वर्षों में क्लीन एनर्जी के उपयोग में आई बढ़ोतरी ने भी पर्यावरणीय प्रदूषण की बढ़ती रफ्तार को थामने का काम किया है।
चार दशक में पहली बार
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1982 के बाद पहली बार वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार इस साल मार्च के महीने में CO2 के उत्सर्जन में 15 फीसदी की कमी आई है, जबकि अप्रैल में इसके स्तर में 30 फीसद की गिरावट का अनुमान है।
परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में कमी
कोयला, पेट्रोलियम ऑयल और गैस के इस्तेमाल के ताजा आंकड़ों के आधार पर सीआरईए के विश्लेषक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वित्त वर्ष 2018-19 के मुकाबले 2019-20 के दौरान CO2 के उत्सर्जन में तीन करोड़ टन की कमी आई है।
कितना है CO2 का उत्सर्जन
बता दें कि देश में कार्बन डाई ऑक्साइड से होने वाले प्रदूषण के लिए ऊर्जा और परिवहन (Power and Transportation) के क्षेत्र सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। हर साल कोयले से चलने वाले ताप बिजली घरों से 92 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन होता है। सीआरईए की रिपोर्ट के अनुसार इस साल मार्च में कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन में 15 फीसद जबकि अप्रैल के पहले तीन हफ्तों में 31 फीसद की गिरावट आई है। इसके विपरीत इस साल मार्च में सूर्य और हवा जैसे अक्षय ऊर्जा (renewable energy) के स्रोतों से बिजली उत्पादन में 6.4 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
कार्बन डाई ऑक्साइड क्यों है नुकसानदेह
पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के स्तर में बढ़ोतरी का पहला असर यह होता है कि इससे ऑक्सीन की मात्रा घटने लगती है। इससे सांस लेने में तकलीफ, दिल की धड़कन तेज होने और यहां तक कि मानसिक असंतुलन जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। खासकर अस्थमा एवं श्वसन संबंधी अन्य रोगों से पीड़ित लोगों के लिए CO2 का बढ़ता स्तर जानलेवा साबित हो सकता है।