जातियों पर दांव आजमा रहे सियासी दल
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गए हैं। इन दिनों ताकत बढ़ाने का सबसे बड़ा जरिया जातियों को लुभाने का खेल है। सियासी परिदृश्य पर मौजूदा समय में बसपा और सपा का ब्राह्माण प्रेम सुर्खियों में है, लेकिन दूसरी जातियों पर भी इनकी नजर है। कांग्रेस और भाजपा भी किसी न किसी बह
लखनऊ, [आनन्द राय]। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गए हैं। इन दिनों ताकत बढ़ाने का सबसे बड़ा जरिया जातियों को लुभाने का खेल है। सियासी परिदृश्य पर मौजूदा समय में बसपा और सपा का ब्राह्माण प्रेम सुर्खियों में है, लेकिन दूसरी जातियों पर भी इनकी नजर है। कांग्रेस और भाजपा भी किसी न किसी बहाने अपना अभियान जारी किए हुए हैं। इस माहौल में छोटे दल भी जातियों को जोड़ कर समीकरण खड़ा कर रहे हैं और इसीलिए उन पर भी लोगों की निगाहें लगी हैं।
विधानसभा चुनाव में छोटे दलों को यूं तो कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी, लेकिन पीस पार्टी-अपना दल तथा कौमी एकता दल-भारतीय समाज पार्टी के गठबंधन का असर जरूर देखने को मिला। अब यह छोटे दल कुछ बड़ा गुल खिलाने की तैयारी में हैं। शायद यही वजह है कि बड़े दलों की ओर से भी उन्हें महत्व मिलने लगा है। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के कुंवर हरिवंश सिंह पिछले चुनाव में राष्ट्रीय परिवर्तन मोर्चा के बैनर तले छोटे दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश करते रहे और आखिरकार पीस पार्टी और अपना दल की मदद में खड़े नजर आए, लेकिन इस बार अब तक सूबे के 34 जिलों में क्षत्रिय समाज का जातीय सम्मेलन करने के बावजूद अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पूर्वाचल में एकता मंच बनाकर चुनावी तैयारी में जुटे कुछ छोटे दलों से लगातार उनकी बातचीत चल रही है, जबकि समाजवादी पार्टी की भी उन पर नजर है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से उनके आवास पर कुंवर हरिवंश सिंह की लंबी वार्ता हुई। हरिवंश का यही कहना था कि यह मुलाकात तो यूपी के विकास के संदर्भ में थी, लेकिन इसके बाद भी कई मौकों पर अखिलेश यादव ने कुंवर को महत्व दिया। इससे कयास लगाये जा रहे हैं कि सपा क्षत्रियों को बांधे रखने के लिए कोई दांव छोड़ना नहीं चाहती।
उधर, पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारतीय समाज पार्टी, कौमी एकता दल, जनाधिकार मंच, फूलन सेना और जनवादी पार्टी ने एकता मंच बनाकर बिगुल बजा दिया है। एकता मंच कुशवाहा, चौहान, मुसलमान, राजभर और निषादों के अलावा नाई, लोहार, कुम्हार, गोड़, खरवार, बीआर, धोबी, पासवान, दुसाध, कमकर, कुंजड़ा, केवट और बिंद आदि जातियों को जोड़कर करीब 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का मंसूबा बांधे हैं। सबसे दिलचस्प अब तक घोषित किए गए इनके पांच उम्मीदवार हैं। एकता मंच के सूत्रधार और भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर बताते हैं कि गाजीपुर से पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, बलिया से पूर्व सांसद अफजाल अंसारी, सलेमपुर से खुद ओमप्रकाश राजभर, आजमगढ़ से जनवादी पार्टी के ओमप्रकाश चौहान और बनारस से विधायक मुख्तार अंसारी को उम्मीदवार घोषित किया गया है। बाहुबल और तमाम आरोपों से घिरे होने के बावजूद चुनावी अखाड़े में इनकी ताकत से इन्कार नहीं किया जा सकता है। राजभर का कहना है कि उनकी कुंवर हरिवंश सिंह से भी वार्ता चल रही है और यह वार्ता कारगर होगी।
विधानसभा चुनाव में एक राह पर चले पीस पार्टी के डॉ. अयूब और अपना दल की अनुप्रिया के रास्ते जुदा-जुदा हैं, लेकिन इन दोनों की नजर भी जातीय समीकरण पर ही है। अनुप्रिया पिछड़ों के साथ ही मुसलमानों को लामबंद करने में अपनी ताकत लगा रही हैं, जबकि डॉ. अयूब सर्व समाज में घुसपैठ बना रहे हैं। प्रदेश की विधानसभा में खाता खोलने के बाद तृणमूल कांग्रेस का भी उत्साह बढ़ा है और उसके प्रदेश अध्यक्ष, विधायक श्यामसुंदर शर्मा भी अपने संगठन को धार देने में जुटे हैं। और भी कई छोटे दल हैं, जो समीकरण बनाने में जुटे हैं। यह अलग बात है कि पिछले चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव आते आते बहुत से समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे भी।
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