शासक की पुलिस को 'जनता की पुलिस' बनाने की कवायद, जानें अब तक क्या हुए बदलाव
समाज को अपराध मुक्त और लोगों द्वारा बेखौफ जीवन जीने के लिए निगहबान के रूप में खाकी की संकल्पना की गई। लिहाजा अंग्रेजों ने 1861 में पुलिस कानून लागू किया।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। समाज को अपराध मुक्त और बेखौफ बनाने के मकसद से अंग्रेजों ने 1861 में पुलिस कानून बनाकर देश में लागू किया। यह कानून उस समय के देश, काल और परिस्थितियोंको ध्यान में रखकर बनाया गया था। आज डेढ़ सदी बाद भी उसी कानून से काम चलाया जा रहा है। पुलिस तंत्र में विसंगतियों को दुरुस्त करने की कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन जनता की पुलिस बनने की जगह शासक की पुलिस का दौर अभी तक जारी है। तमाम कमेटियों और आयोगों की सिफारिशें धूल फांक रही हैं। आइए जानते हैं कि खाकी को बदलने के लिए अब तक क्या क्या कदम उठाए गए :
भारतीय पुलिस आयोग
1902-03 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी। जिसमें उसने इस तंत्र को असफल घोषित कर दिया। अपनी सिफारिशों में इसने कहा कि आमूलचूल सुधार तुरंत आवश्यक हैं।
राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981)
आपातकाल के दौरान पुलिस महकमे की विसंगतियां खुलकर सामने आईं। लिहाजा तत्कालीन केंद्र सरकार को इस तंत्र में सुधार के लिए 1977 में राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन करना पड़ा। इस आयोग ने पुलिस संगठन, दायित्व, कार्यशैली, जनता से संबंध, राजनीतिक हस्तक्षेप, पुलिस शक्ति का दुरुपयोग और विभाग की जवाबदेही व प्रदर्शन के मूल्यांकन सहित व्यापक संदर्भों का अध्ययन किया। 1979 से 1981 के बीच आयोग ने आठ रिपोर्ट पेश की। सभी में पुलिस तंत्र में सुधार संबंधी सिफारिशें दी।
रिबेरो कमेटी (1998-1999)
1996 में दो पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग की। न्यायालय के निर्देश पर मई, 1998 में सरकार ने रिबेरो कमेटी का गठन किया। इसका दायित्व राष्ट्रीय पुलिस आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और वोहरा कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा करना था। साथ ही लंबित सिफारिशों को लागू करने संबंधी सुझाव या अन्य जरूरी सिफारिशें इसे करनी थी। याचिकाकर्ताओं की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने इस समिति को राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों का लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा का निर्देश दिया। कमेटी ने दो रिपोर्ट पेश की।
पद्मनाभैया कमेटी (2000)
जनवरी, 2000 में केंद्र सरकार ने पुलिस सुधार के लिए पद्मनाभैया समिति का गठन किया। इसने अगस्त, 2000 में अपनी रिपोर्ट दी। इसमें अगली सहस्नाब्दी में पुलिस के समक्ष चुनौतियों के आकलन सहित एक ऐसी जन मित्रवत पुलिस की संकल्पना पेश करनी थी जो उग्रवाद, आतंकवाद एवं संगठित अपराधों से निपटने में सक्षम हो। ऐसे रास्ते सुझाने थे जिससे पुलिस को एक प्रोफेशनल व सक्षम फोर्स बनाया जा सके और राजनीतिक हस्तक्षेप पर विराम लग सके। इस समिति ने कई अहम सुझाव दिए।
पुलिस एक्ट ड्राफ्टिंग कमेटी (2005-2006)
2005 में सोली सोराबजी की अध्यक्षता में पुलिस एक्ट ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन हुआ। सितंबर, 2005 में कमेटी ने बैठक शुरू की और अक्टूबर, 2006 में केंद्र के पास एक मॉडल पुलिस कानून बनाकर पेश किया। इसके कार्यदायित्वों में पुलिस की बदलती भूमिका और जिम्मेदारियों के आलोक में नया कानून बनाना था।
प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार (2006-07)
1996 में दो पूर्व पुलिस महानिदेशकों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। उनकी मांग थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को पुलिस की खराब गुणवत्ता और प्रदर्शन को सुधारने का सुप्रीम कोर्ट निर्देश दे। करीब एक दशक तक लटके इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में केंद्र और राज्यों को सात दिशानिर्देश दिए। ये सभी के लिए बाध्यकारी थे। 2006 के अंत तक सभी के इस संबंध में उठाए गए कदमों से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराना था। ज्यादातर राज्यों ने कोर्ट से और समय की मांग की। कुछ ने इस फैसले की समीक्षा की मांग की। अदालत ने अपने निर्णय की समीक्षा से इन्कार करते हुए मार्च, 2007 तक इन दिशानिर्देशों के अनुपालन का आदेश दिया।
कैसे बने जनता की पुलिस
- आज पुलिस शासक की पुलिस है। इस छवि को बदला जाए
- पुलिस को कानून के अंतर्गत काम करने की स्वायत्तता होनी चाहिए।
- अपराध पंजीकरण में सुधार हो
- सभी कमजोर वर्गों को पुलिस का वैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए।
- जनशक्ति, परिवहन, संचार व्यवस्था एवं फॉरेंसिक संसाधनों में वृद्धि हो।
- अधीनस्थ कर्मचारियों को कम से कम तीन प्रोन्नति अवश्य मिले।
- किसी पुलिसकर्मी से 12 घंटे से ज्यादा ड्यूटी न ली जाए। यह अवधि आठ घंटे की जाए।
- पुलिस सुधार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन सुनिश्चित हो।
क्या है सुप्रीमकोर्ट का आदेश
- स्टेट सिक्योरिटी कमीशन बने
- डीजीपी का दो साल का कार्यकाल
- आइजी पुलिस व अन्य अधिकारियों को दो वर्ष का निश्चित कार्यकाल
- जांच कार्य में लगी पुलिस को कानून व्यवस्था के काम से अलग करो
- पुलिस एस्टैब्लिशमेंट बोर्ड बने
- पुलिस कंप्लेंट अथारिटी का गठन हो
- नेशनल सिक्योरिटी कमीशन का गठन करो। इन आदेश पर सरकारों को 31 दिसंबर 2006 तक अमल करना था।