वर्दी ने बना दिया 'लाश'.. कोर्ट से मांगी 'जिंदगी'
देखने में हट्टा-कट्टा जवान बिस्तर पर लेटे हुए हाईकोर्ट पहुंचा। परिवार व दोस्त उसे सहारा दे रहे थे। आने-जाने वालों ने बीमारी के बारे में पूछा तो वह रो पड़ा और केवल इतना कह पाया कि बीमारी नहीं, पुलिस की मार है। बाद में कोर्ट की तरफ भी वह पथराई आंखों से न्याय की आस लिए देखता रहा। हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार की। राज्य सरकार
इंदौर। देखने में हट्टा-कट्टा जवान बिस्तर पर लेटे हुए हाईकोर्ट पहुंचा। परिवार व दोस्त उसे सहारा दे रहे थे। आने-जाने वालों ने बीमारी के बारे में पूछा तो वह रो पड़ा और केवल इतना कह पाया कि बीमारी नहीं, पुलिस की मार है। बाद में कोर्ट की तरफ भी वह पथराई आंखों से न्याय की आस लिए देखता रहा। हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार की। राज्य सरकार, प्रमुख सचिव, आईजी, जेल अधीक्षक, राजेंद्र नगर थाना सहित पूरी क्राइम ब्रांच को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति एससी शर्मा की कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। रावजी बाजार थाना क्षेत्र के रहने वाले 36 वर्षीय अकरम शाह की ओर से एडवोकेट आशीष शर्मा ने पक्ष रखते हुए कहा कि यह व्यक्ति अपने पैरों पर नहीं चल सकता। पूरा शरीर सुन्न पड़ गया है। दिमाग की नसें क्षतिग्रस्त हो गई हैं, पूरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया है। खाना भी दूसरों के हाथ से खाना पड़ता है। छह बच्चों का पेट पालने के लिए फुटपाथ पर खिलौने की दुकान लगाता था। अब न तो यह बच्चों का पेट भर पा रहा है और न ही उन्हें पढ़ा पा रहा है।
कोर्ट ने पूछा कि ऐसी हालत कैसे हुई? जवाब मिला पुलिस ने इसे 6 दिन तक बेरहमी से पीटा, जिससे शरीर ने काम करना बंद कर दिया। इतना पीटा कि जान पर बन आई
2 जनवरी 2014 की शाम अकरम खिलौने बेचकर घर जा रहा था। सैफी होटल के सामने क्राइम ब्रांच के आरक्षक रज्जाक खान व वीरेंद्र सिंह तोमर से उसकी गाड़ी टकरा गई। आरक्षकों ने उसे पीटना शुरू कर दिया। बाद में क्राइम ब्रांच के गोविंद, धर्मेद्र व दीपक को भी बुला लिया। सभी मिलकर अकरम को अपने दफ्तर ले गए। वहां 6 जनवरी तक रखा। इस बीच डीएसपी सलीम खान ने भी उसे पीटा। 6 जनवरी की शाम राजेंद्र नगर थाने भेजा गया। थाने वालों ने 2010 की एक बाइक चोरी का झूठा प्रकरण बनाया और जेल भेज दिया। 17 जनवरी को जमानत पर रिहा हुआ तो मेडिकल करवाया गया। रिपोर्ट में आया कि अकरम के शरीर की जो नसें दिमाग से जुड़ी होती हैं, क्षतिग्रस्त हो गई हैं। शरीर बेजान ही रहेगा। इसकी शिकायत 28 जनवरी को मानवाधिकार आयोग व डीजीपी को भी की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।