स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि आज, पीएम ने ट्वीट कर किया नमन
आज स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है। 113 साल पहले इसी दिन यानी 4 जुलाई 1902 को भारतीय चिंतन को समग्र विश्व में फैलाने वाले इस महापुरुष का अवसान हुआ था। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी विवेकानंद को याद कर उन्हें नमन किया।
नई दिल्ली। आज स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है। 113 साल पहले इसी दिन यानी 4 जुलाई 1902 को भारतीय चिंतन को समग्र विश्व में फैलाने वाले इस महापुरुष का निर्वाण हुआ था। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी विवेकानंद को याद कर उन्हें नमन किया।
स्वामी विवेकानंद के 113 वें अवसान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें याद किया। अपने ट्वीट में पीएम ने कहा कि वे प्रेरणा के एक स्थायी स्त्रोत हैं। उन्होंने अपने विचारों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया।
आइए जानते हैं, स्वामीजी के जीवन के आखिरी दिन क्या हुआ था
4 जुलाई 1902 आषाढ़ कृष्ण अमावस्या का दिन था। स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में थे। रोज की तरह सुबह जल्दी उठे। नित्य कार्यों से निवृत्त होकर ध्यान, साधना एवं भ्रमण के कार्य को सम्पन्न किया। इसके बाद भोजनालय में गए। भोजन व्यवस्था को देखा और अपने शिष्यों को बुलाया।
स्वयं अपने हाथों से सभी शिष्यों के पैर धोए। शिष्यों ने संकोच करते हुए स्वामीजी से पूछा, 'ये क्या बात है?' स्वामीजी ने कहा, 'जिसस क्राइस्ट ने भी अपने हाथों से शिष्यों के पैर धोए थे।' शिष्यों के मन में विचार गूंजा, 'वह तो उनके जीवन का अंतिम दिन था।'
इसके बाद सभी ने भोजन किया। स्वामीजी ने थोड़ा विश्राम किया और दोपहर डेढ़ बजे सभी को हॉल में बुला लिया। तीन बजे तक संस्कृत ग्रंथ लघुसिद्धांत कौमुदी पर मनोरंजक शैली में स्वामीजी पाठ पढ़ाते रहे। खूब ठहाके लगे। व्याकरण जैसा नीरस विषय रसमय हो गया। शिष्यों को डेढ़ घंटे का समय जाते पता ही न चला।
सायंकाल स्वामीजी अकेले आश्रम परिसर में घुम रहे थे। वे अपने आप से कह रहे थे, 'विवेदानंद को समझने के लिए कोई अन्य विवेकानंद चाहिए। विवेकानंद ने कितना कार्य किया है यह जानने के लिए कोई विवेकानद ही होना चाहिए। चिंता की बात नहीं, आने वाले समय में इस देश के अंदर कई विवेकानंद अवतरित होंगे और भारत को ऊंचाइयों पर पहुंचाएंगे।'
संध्या होने के बाद स्वामीजी अपने कमरे में गए। खिड़कियां बंद कीं और ध्यान मुद्रा में बैठ गए। कुछ समय जप किया। बाद में खिलाड़ियां खोल दीं। बिस्तर पर लेट गए। और ओम का उच्चारण करते हुए इस दुनिया से विदा ली।
लगभग चालीस वर्ष की अल्पआयु में भारतीय चिंतन को समग्र विश्व में फैलाने वाले इस महापुरुष के जीवन का एक-एक क्षण आनंदपूर्ण, उल्लासमय और भारत के खोए वैभव को पूरी दुनिया में प्रचारित करने के लिए समर्पित रहा।
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