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पीएम मोदी ने जी-20 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को लेकर विकसित देशों को दिखाया आईना

जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता कोई नई बात नहीं है। वर्ष 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण सम्मेलन में भारत ने अपनी ओर से ऐसी चिंता जताई थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से भारत का यह पहला कदम माना जाता है।

By TilakrajEdited By: Published: Wed, 10 Nov 2021 09:26 AM (IST)Updated: Wed, 10 Nov 2021 09:26 AM (IST)
पीएम मोदी ने जी-20 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को लेकर विकसित देशों को दिखाया आईना
समय के साथ प्रकृति संग मानव की भूमिका बदलती गई

देवानंद राय। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते दिनों जी-20 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को लेकर विकसित देशों को आईना दिखाया। यह सच है कि मानव अन्य प्राणियों की तुलना में सर्वाधिक विकसित प्राणी है, तो पृथ्वी को बचाने में उसकी जिम्मेदारी भी बड़ी है। अफसोस यही कि हम पर्यावरण को बचाने के बजाय उसके विनाश पर अधिक आमादा हैं।

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दरअसल, समय के साथ प्रकृति संग मानव की भूमिका बदलती गई। जो मानव प्रारंभ में प्रकृति का अंग था, वही इस समय उसका स्वामी बन बैठा है। पर्यावरण में आ रहे परिवर्तन के कारण जलवायु परिवर्तन भी साफ तौर पर नजर आने लगा है। जलवायु परिवर्तन में कमी लाने के लिए कार्बन डाईआक्साइड की सांद्रता में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि कार्बन डाईआक्साइड के स्तर में वृद्धि और ग्लोबल वार्मिंग के बीच स्पष्ट संबंध है जिसमें कार्बन संग्रहण, ग्रीन कार्बन, ब्लू कार्बन जैसे पहलू शामिल हैं। जहां तक भारत की बात है तो राष्ट्रीय स्तर पर पिछली शताब्दी में सतह के तापमान में 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है जो अच्छा संकेत नहीं है।

देश में पर्यावरण संरक्षण और पेड़ों तथा वनों की संख्या बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय हरित मिशन शुरू किया गया। इस मिशन में केंद्र और राज्यों का अनुपात 75: 25 रखा गया तथा पूर्वोत्‍तर राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 रखा गया। जलवायु परिवर्तन के कारण और पृथ्वी का तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों के पिघलने के कारण समुद्र तल में वृद्धि से लाखों लोगों का जीवन और अरबों डालर की संपत्ति पर खतरा है। समुद्र तल में वृद्धि से खारा पानी मीठे भूजल में मिल जाता है जिससे पेयजल उपलब्धता और सिंचाई प्रभावित हो जाती है। भारत की 20 प्रतिशत आबादी इन क्षेत्रों में रहती है। हमारे तटीय जिलों में से 24 उच्च रूप से चक्रवात प्रभावित हैं। समुद्री जल स्तर की वृद्धि से कई राज्यों को कहीं ज्यादा खतरा है।

जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता कोई नई बात नहीं है। वर्ष 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण सम्मेलन में भारत ने अपनी ओर से ऐसी चिंता जताई थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से भारत का यह पहला कदम माना जाता है। वर्ष 2018 में पेरिस जलवायु सम्मेलन में अमेरिका ने बाहर होने की बात कही, तो उस समय भारत पूरे विश्व का नेतृत्व करने के लिए आगे आया। ऊर्जा संकट का हल निकालने के लिए भारत ने वर्ष 2015 में इंटरनेशनल सोलर अलायंस के गठन की पहल की। यह इसकी व्यापक सफलता ही है कि अभी तक विश्व के 121 से अधिक देश इस कार्यक्रम से जुड़ चुके हैं। इसी से उत्साहित प्रधानमंत्री मोदी ने भी इंटरनेशनल सोलर अलायंस के अगले पड़ाव ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ की भी बात कही, जिसे पूरी दुनिया ने सराहा है। वास्तव में यही भविष्य का मूलमंत्र भी है।

(लेखक ब्लागर हैं)


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