ध्यान में रखने लायक हैं कोरोना वायरस को लेकर सामने आए ये शोध, न करें इन्हें नजरअंदाज
कोरोना वायरस को लेकर सामने आई कई रिसर्च रिपोर्ट में इसके लक्षण और अंजाने में ली जाने वाली दवाओं की तरफ आगाह कर रहे हैं। इन पर ध्यान देना भी जरूरी है।
नई दिल्ली (एजेंसियां)। कोरोना को लेकर पूरी दुनिया के वैज्ञानिक जनवरी से ही जुटे हुए हैं। अब तक इसको लेकर कई शोध हुए हैं और उनकी रिपोर्ट विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं में छप भी चुकी है। ये शोध भविष्य में होने वाले शोध कार्यो में भी जरूर मदद करेंगे। हाल ही में इसको लेकर एक ऐसा ही शोध चीन की राजधानी बीजिंग के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र में भी हुआ है। इस शोध में जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमित सतह को छूने से कम फैलता है। इसमें ये भी कहा गया है कि मरीज के सांस लेने या बात करने के दौरान निकले वायरस के कण प्रसार की ज्यादा बड़ी वजह हैं।
सांस के जरिए हवा में फैलता वायरस
इस शोध के मुताबिक कोरोना से संक्रमित मरीज सांस के जरिये हर घंटे लाखों वायरस हवा में छोड़ते हैं। ऐसे में वायरस का प्रसार तेजी से होता है। इतना ही नहीं शोध की मानें तो यह स्तर छींकने और खांसने के दौरान निकलने वाले एयरसोल जिन्हें हम पानी की सूक्ष्म बूंदें या ड्रॉपलेट्स कहते हैं, से कहीं ज्यादा है। ये शोध चीन के वैज्ञानिक जियांक्सिन मा के नेतृत्व में किया गया है। इस शोध को कोरोना से संक्रमित 35 मरीजों पर किया गया था। इस दौरान शोधकर्ताओं ने सभी मरीजों की सांस, अस्पताल के कमरे, टॉयलेट, फर्श से जुटाए गए 300 से अधिक वायरल नमूनों का अध्ययन किया।
दवा को लेकर एहतियात
आपको बता दें कि कोरोना से संक्रमित मरीजों में छींक आने से लेकर खांसी होने के लक्षण के बारे में काफी पहले ही बता दिया गया था। इसको लेकर भी एक शोध सामने आया है जिसमें खांसी को ठीक करने के लिए डेक्सट्रोमेथोरफान का उपयोग न करने की सलाह दी गई है। नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार इसका उपयोग खांसी की सभी दवाओं में होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति इससे बने कफ सिरप का इस्तेमाल करता है तो वह खांखी को दबा देता है ऐसे में मरीज में संक्रमण का पता लगाने में देरी हो सकती है। इस शोध में ये भी कहा गया है कि सर्दी-खांसी की दवा में इस्तेमाल होने वाले डेक्सट्रोमेथोरफान से कोरोना वायरस का खतरा बढ़ सकता है।
डॉक्टर से सलाह लेनी जरूरी
शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि यदि किसी को सर्दी या खांसी है तो वो दवा लेने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह ले। वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अध्ययन के दौरान पाया कि इस तरह की दवा से वायरस की संख्या बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन अफ्रीकी हरे बंदर की प्रजाति पर किया था। इसके लिए इन्हें इसलिए भी चुना गया क्योंकि इनके शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया काफी हद तक मनुष्यों के शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया की ही तरह होती है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसका उपयोग खांसी की दवा में इसलिए किया जाता है ताकि ये खांसी के संकेतों को मस्तिष्क में ही स्थिर कर सके। ऐसा होने पर मरीज को खांसी में राहत महसूस होती है।
बढ़ता तापमान खत्म नहीं करता कोरोना वायरस
इसी तरह से अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में ये बात सामने निकलकर आई है कि गर्मी में तापमान बढ़ने से कोरोना वायरस नष्ट नहीं होता है। हालांकि इस शोध में ये कहा गया है कि गर्मी या बढ़ते तापमान के साथ इसके प्रसार में मामूली कमी जरूर आ सकती है। इसके लिए हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने अमेरिका के सभी 50 राज्यों में तापमान की विविधता के आधार पर वहां फैले संक्रमण दर का अध्ययन किया है। इस रिसर्च में उन्होंने पाया कि तापमान बढ़ने पर वायरस की संक्रमण दर में मामूली गिरावट जरूर आती है लेकिन ये खत्म नहीं होता है। शोध के माध्यम से वैज्ञानिकों ने लोगों को सलाह दी है कि वे गर्मी के मौसम में एक दूसरे से दूरी बनाकर रखें और सभी जरूरी एहतियात भी बरतें। इसमें चेहरे पर मास्क लगाना, हाथों को लगातार साफ करते रहना, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर न जाना आदि शामिल है।
ये भी पढ़ें:-
भारत-आस्ट्रेलिया की ताकत होगी और मजबूत, वर्चुअल समिट में इन समझौतों पर लगी मुहर
Chandra Grahan 2020 India: जानें क्या और क्यों होता है उपछाया चंद्र ग्रहण, लगने वाला है आज
अब चीन को माफ करने के मूड में नहीं है अमेरिका, आर-पार की जंग के लिए हो रहा तैयार
दिल्ली एनसीआर के लिए राहत की खबर : जानें क्यों कह रहे हैं एक्सपर्ट्स, नहीं है बड़ा भूकंप आने की आशंका