गंगा में होने वाला प्लास्टिक प्रदूषण जलीय जीवों के लिए नुकसानदेह, कछुए और डॉल्फिन को है खास खतरा
यह शोध साइंस ऑफ द टोटल एन्वायर्मेट पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें बांग्लादेश में नदी के मुहाने से लेकर भारत में हिमालय तक किए गए सर्वेक्षण में पता चला कि मछली पकड़ने के बेकार उपकरण सर्वाधिक मात्रा में समुद्र के निकट हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। मछली पकड़ने संबंधी बेकार हो चुके उपकरणों के कारण गंगा नदी में होने वाला प्लास्टिक प्रदूषण लुप्तप्राय प्रजाति के कछुए और डॉल्फिन जैसे जलीय जीवों के लिए बहुत बड़ा खतरा है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं समेत एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा किए गए शोध में यह तथ्य सामने आया है।
यह शोध साइंस ऑफ द टोटल एन्वायर्मेट पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें बांग्लादेश में नदी के मुहाने से लेकर भारत में हिमालय तक किए गए सर्वेक्षण में पता चला कि मछली पकड़ने के बेकार उपकरण सर्वाधिक मात्रा में समुद्र के निकट हैं।
मछली पकड़ने वाली प्लास्टिक की जाली है बेहद खतरनाक
शोधकर्ताओं ने पाया कि इन बेकार वस्तुओं में जो सबसे ज्यादा संख्या में देखी गई है, वह मछली पकड़ने की प्लास्टिक से बनी जाली है। स्थानीय मछुआरों से बातचीत में पता चला कि मछली पकड़ने के बड़ी संख्या में अनुपयोगी उपकरण नदी में फेंक दिए जाते हैं। इसका पहला कारण तो यह है कि ये उपकरण लंबे समय तक नहीं चलते तथा दूसरी वजह है कि इनके निस्तारण के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं है।
गंगा नदी में दुनिया का सबसे बड़ा व्यवसाय मछली पालन का
ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्जटर की सारा नेल्म्स ने कहा, गंगा नदी में दुनिया का सबसे बड़ा मछली पालन व्यवसाय होता है। लेकिन, इस उद्योग से उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक के कचरे तथा जलीय जीवों पर इसके प्रभाव को लेकर कोई शोध नहीं किया गया।
उन्होंने कहा, प्लास्टिक निगलने से जीवों को नुकसान पहुंच सकता है लेकिन खतरे का हमारा आकलन इस कचरे में जीवों के उलझ जाने पर केंद्रित है, जिसमें विविध प्रजातियों के जीव घायल हो जाते हैं या मर जाते हैं। शोधकर्ताओं ने नदी में मिलने वाली 21 प्रजातियों की सूची के जरिये इसका आकलन किया। यह सूची उत्तराखंड के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने तैयार की है।