स्कूल फीस के तौर पर बच्चे दे रहे प्लास्टिक का कचरा- पढ़ें कहां का कौन सा है स्कूल
पूर्वोत्तर भारत के एक राज्य में एक स्कूल हैं जहां पर पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों को अपनी स्कूल की फीस के तौर पर सप्ताह में प्लास्टिक की 20 चीजें जमा करनी होती है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पूर्वोत्तर भारत के एक राज्य में एक स्कूल हैं जहां पर पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों को अपनी स्कूल की फीस के तौर पर सप्ताह में प्लास्टिक की 20 चीजें जमा करनी होती है। प्लास्टिक की ये चीजें बच्चे अपने घर या आसपास के इलाके से लाकर स्कूल में जमा करते हैं। बच्चे स्कूल में जो प्लास्टिक जमा करते हैं स्कूल प्रबंधन उसका बेहतर इस्तेमाल करता है। छात्र प्लास्टिक की थैलियों को प्लास्टिक की बोतलों में भर कर "इको ब्रिक" बनाते हैं जिसे स्कूल के लिए नया भवन, शौचालय या फिर सड़क बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। छात्रों को इस काम के लिए पैसे भी मिलते हैं।
वास्तव में इस स्कूल को शुरू करने का मकसद भी यही है। अब आप इस स्कूल का नाम जानना चाहते होंगे। हम आपको बताते हैं कि ये स्कूल कहां है और किस वजह से स्कूल चला रहे लोग बच्चों से फीस के तौर पर प्लास्टिक की थैलियां मांगते हैं। छात्र प्लास्टिक कचरा लाकर स्कूल में मुफ्त में पढ़ते हैं।
असम का ये स्कूल प्लास्टिक का कचरा खत्म करने की दिशा में एक नजीर पेश कर रहा है। यूपी, बिहार जैसे अन्य राज्य भी इस स्कूल से प्रेरणा लेकर अपने यहां प्लास्टिक के कचरे को कम करने में भूमिका अदा कर सकते हैं।
ये स्कूल असम राज्य के दिसपुर में है। यहां अक्षर फोरम स्कूल के 110 छात्रों को हर हफ्ते प्लास्टिक की 20 चीजें अपने घर और आसपास के इलाके से लेकर आनी होती है। परमिता सरमा ने न्यूयॉर्क में रहने वाले अपने पति मजीन मुख्तार के साथ यह प्रोजेक्ट शुरू किया है। परमिता बताती हैं कि पूरे असम में भारी पैमाने पर प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है मगर इसके निस्तारण के लिए कोई प्रॉपर व्यवस्था नही है। इसको ध्यान में रखते हुए ये नई व्यवस्था शुरू की गई। पिछले साल तक इस स्कूल में पढ़ाई बिल्कुल मुफ्त थी लेकिन अब स्कूल ने प्लास्टिक "फी" वसूलने की योजना बनाई है। स्कूल प्रशासन ने बच्चों के अभिभावकों से प्लास्टिक की रिसाइकिल योजना में शामिल होने के लिए बार बार कहा मगर उन लोगों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। तब स्कूल प्रबंधन ने अभिभावकों से कहा कि अगर आप अपने बच्चे को यहां मुफ्त में पढ़ाना चाहते हैं तो स्कूल को फीस के रूप में प्लास्टिक देनी होगी, इसके साथ ही अभिभावकों को यह भी "शपथ" लेनी होती है कि वो कभी प्लास्टिक नहीं जलाएंगे।
स्कूल की ओर से की गई इस अपील का असर ये हुआ कि अब बच्चे घर घर जा कर प्लास्टिक मांगते हैं। इससे इलाके के लोगों में जागरूकता फैल रही है। गैर सरकारी संगठन एनवायरॉन(एनजीओ) के मुताबिक 10 लाख की आबादी वाले दिसपुर में ही हर दिन 37 टन कचरा पैदा होता है। पिछले 14 वर्षों में यहां पर कचरे की मात्रा सात गुनी बढ़ गई है।
यहां के रहने वालों का कहना है कि पहले जब ढेर सारा प्लास्टिक जमा हो जाता था तो वो लोग इसमें आग लगा देते थे। प्लास्टिक जलने के बाद जो प्रदूषण फैलता है वो उससे खासे परेशान होते थे। कई लोगों को सांस लेने में भी समस्या होती थी। दरअसल यहां के रहने वालों में प्लास्टिक को जलाने को लेकर जागरूकता की भी कमी है। उनका खुद ही कहना था कि उनको पता ही नहीं है कि प्लास्टिक को जलाने से निकलने वाली गैस हमारी सेहत और पर्यावरण के लिए कितनी हानिकारक है, हम उसे पास पड़ोस में फेंक देते थे लेकिन अब ऐसा कभी नहीं करेंगे। अभिभावक भी स्कूल की ओर से उठाए गए इस कदम की अब तारीफ कर रहे हैं।
मुख्तार का कहना है कि उनके स्कूल के छात्रों के ज्यादातर मां बाप उन्हें स्कूल में पढ़ाने का खर्च नहीं उठा सकते वो सब यहां के पत्थर की खदानों में काम करते हैं, उन्हें वहां से निकाल कर दूसरे बच्चों की तरह पढ़ाना लिखाना चाहता है, हमने उन्हें किसी तरह बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया, अब वो पढ़ने के लिए आ रहे हैं मगर इनकी संख्या अभी भी अधिक नहीं बढ़ पाई है। इनकी संख्या 110 तक पहुंची है इसे और अधिक बढ़ाना है जिससे जागरूकता भी फैले।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप