यौन अपराध मामलों में ट्रांसजेंडरों के लिए समान कानून की मांग, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करके ट्रांसजेंडरों को कानून का समान संरक्षण प्रदान करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि इस वर्ग के लोगों को यौन उत्पीड़न के अपराध से संरक्षण प्रदान करने के लिए कोई दंडनीय प्रावधान नहीं है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करके ट्रांसजेंडरों के लिए कानून के तहत समान संरक्षण की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि ट्रांसजेंडरों को यौन अपराधों से बचाने के लिए कानून में सजा का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह याचिका अधिवक्ता रीपक कंसल ने निजी हैसियत से दाखिल की है। इसमें कानून एवं न्याय मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को पक्षकार बनाया गया है।
याचिका में यौन अपराधों पर आइपीसी (भारतीय दंड संहिता) के विभिन्न प्रावधानों, कानून में हालिया संशोधनों और अन्य कानूनों का हवाला देते हुए आरोप लगाया गया है कि उनमें से कोई भी ट्रांसजेंडरों के बारे में बात नहीं करता। इस अदालत द्वारा ट्रांसजेंडरों को थर्ड जेंडर घोषित किए जाने के बावजूद आइपीसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो ट्रांसजेंडरों को महिला, पुरुष या अन्य ट्रांसजेंडर द्वारा किए गए यौन अपराध से बचाता हो।
याचिका में आइपीसी की धारा-354ए के कुछ खंडों को चुनौती दी गई है जिनमें यौन उत्पीड़न के पीडि़तों में ट्रांसजेंडरों को शामिल नहीं किया गया है। याचिका में इस संदर्भ में कानूनों में उचित संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका पर अगले कुछ दिनों में सुनवाई होने की संभावना है।
वहीं दूसरी ओर एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 15 महीनों में विभिन्न हाई कोर्टों में गर्भपात की इजाजत मांगने के लिए कुल 243 याचिकाएं दाखिल हुई हैं। इनमें 118 में गर्भधारण की वजह दुष्कर्म था। गर्भपात की इजाजत मांगने वाली याचिकाओं का यह ब्योरा हाल में जारी गैर सरकारी संगठन 'प्रतिज्ञा कैम्पेन फॉर जेंडर इक्वेलिटी एंड सेफ अबॉर्शन' की रिपोर्ट से सामने आया है। रिपोर्ट में एक मई 2019 से लेकर 15 अगस्त 2020 तक के आंकड़े शामिल हैं।
बीते 15 महीने में 14 हाई कोर्टों में ऐसी 243 याचिकाएं दाखिल हुई हैं। इनमें से 117 मामलों में गर्भपात के लिए वजह भ्रूण में विकृतियां बताई गई जबकि 118 में कारण दुष्कर्म था। हाई कोर्टों ने 243 में से 205 मामलों में गर्भपात की इजाजत दे दी थी जबकि 22 में नहीं दी। रिपोर्ट बताती है कि जिन 14 हाई कोर्टों में याचिकाएं दाखिल हुईं, उनमें सबसे ज्यादा 129 याचिकाएं बांबे हाई कोर्ट में दाखिल हुईं। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है जहां 36 याचिकाएं दाखिल हुईं।