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धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता की गुहार, सुप्रीम कोर्ट से मांग- मुस्लिमों और ईसाइयों जैसे अधिकार हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों व सिखों को भी मिलें

सुप्रीम कोर्ट से यह दिशा-निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि धार्मिक स्थानों की चल-अचल संपत्ति के स्वामित्व अधिग्रहण और प्रशासन के जैसे अधिकार मुस्लिमों ईसाइयों और पारसियों को मिले हैं वैसे ही हिंदुओं जैनियों बौद्धों और सिखों को भी होने चाहिए।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 07:46 PM (IST)Updated: Sun, 01 Aug 2021 12:45 AM (IST)
धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता की गुहार, सुप्रीम कोर्ट से मांग- मुस्लिमों और ईसाइयों जैसे अधिकार हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों व सिखों को भी मिलें
सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक दान के लिए समान संहिता के अनुरोध को लेकर एक पीआइएल दायर की गई है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक एवं धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता के अनुरोध को लेकर एक नई जनहित याचिका (पीआइएल) दायर की गई है। इसमें देश भर में हिंदू मंदिरों पर अधिकारियों के नियंत्रण का उल्लेख कर कहा गया कि कुछ समूहों को अपने स्वयं के संस्थानों का प्रबंधन करने की अनुमति है जबकि कुछ को नहीं है। याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों को अपने धार्मिक स्थानों की स्थापना, प्रबंधन और रख-रखाव के उसी तरह के अधिकार मिलना चाहिए जैसे मुस्लिमों, पारसियों और ईसाइयों को प्राप्त हैं।

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मुस्लिमों, ईसाइयों और पारसियों की तरह मिले अधिकार

संत स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती द्वारा दाखिल याचिका में यह दिशा-निर्देश भी देने का अनुरोध किया गया है कि धार्मिक स्थानों की चल-अचल संपत्ति के स्वामित्व, अधिग्रहण और प्रशासन के जैसे अधिकार मुस्लिमों, ईसाइयों और पारसियों को मिले हैं वैसे ही हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को भी होने चाहिए। पीआइएल में दलील दी गई कि याचिकाकर्ता का विश्वास है कि राज्य केवल कुछ धार्मिक संप्रदायों जैसे हिंदुओं एवं सिखों के धार्मिक स्थानों को नियंत्रित करके धार्मिक मामलों के प्रबंधन के मामले में भेदभाव कर रहे हैं।

राज्य धार्मिक मामलों के प्रबंधन को चलाने में सक्षम नहीं

याचिका में कहा गया कि अनुच्छेद 26-27 में धार्मिक मामलों के प्रबंधन के संबंध में धर्मों में किसी तरह के भेदभाव की गुंजाइश नहीं रखी गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य न तो संवैधानिक रूप से और न ही धार्मिक मामलों के प्रबंधन को चलाने में सक्षम है जिसमें अनूठे अनुष्ठान और प्रथाएं शामिल हैं जो श्रद्धालुओं के लिए बहुत ही व्यक्तिगत हैं।

चल-अचल संपत्तियों के स्वामित्व के कानून मनमाने

जनहित याचिका में यह निर्देश देने और घोषित करने का भी अनुरोध किया गया है कि मंदिरों और गुरुद्वारों की चल-अचल संपत्तियों के स्वामित्व, अधिग्रहण और प्रशासन के लिए बनाए गए सभी कानून मनमाने, तर्कहीन हैं और ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 26 का उल्लंघन करते हैं।

धर्मार्थ बंदोबस्ती के लिए समान संहिता जरूरी

वकील संजय कुमार पाठक के जरिये दायर याचिका में केंद्र या विधि आयोग को 'धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों के लिए सर्वमान्य चार्टर' और 'धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती के लिए समान संहिता' का मसौदा तैयार करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। इससे पहले, इसी तरह की याचिका वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय भी दायर कर चुके हैं। 


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