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Article 370: सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने की प्रक्रिया को चुनौती, दी गई यह दलील

सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल कर एक वकील ने अनुच्छेद 370 ख़त्म करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए चुनौती दी।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 05:35 PM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2019 06:00 PM (IST)
Article 370: सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने की प्रक्रिया को चुनौती, दी गई यह दलील
Article 370: सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने की प्रक्रिया को चुनौती, दी गई यह दलील

नई दिल्ली, जेएनएन। Article370  सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल कर एक वकील ने अनुच्छेद 370 ख़त्म करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए चुनौती दी।वकील मनोहर लाल शर्मा द्वारा दाखिल याचिका में अनुच्छेद 370 को हटाने के राष्ट्रपति के आदेश की अधिसूचना को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया गया है।

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सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 हटाने के लिए सरकार द्वारा किया गया संशोधन असंवैधानिक है। सरकार ने मनमाने और असंवैधानिक ढंग से कार्रवाई की है। यह जम्मू-कश्मीर की कॉन्स्टीट्यूट असेंबली की राय के बाद किया जा सकता है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट इस अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित कर इसे रद्द करे।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को लगभग 70 साल बाद निरस्त करने का रास्ता साफ हो गया है। राज्यसभा ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। आज लोकसभा से मंजूरी मिलते ही विशेष दर्जा और धारा 370 दोनों खत्म हो जाएगी। यानी जम्मू-कश्मीर सही मायनों में भारत का अभिन्न अंग हो जाएगा। इसके साथ जम्मू-कश्मीर की नागरिकता निर्धारित करने वाला अनुच्छेद 35ए भी खत्म हो जाएगा।

कुछ विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के विधेयक को भी पारित करा लिया है। लद्दाख बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश होगा, जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भी होगी। वैसे गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होते ही उसे दोबारा पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा।

कानून की कसौटी पर सौ फीसद दुरुस्त
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर देश भर के नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में समान अधिकार देने का सरकार का कदम कानून की कसौटी पर सौ फीसद दुरुस्त है। संविधानविदों का मानना है कि सरकार की कार्यवाही में कोई कानूनी या संवैधानिक खामी नहीं है। सरकार ने अनुच्छेद 370 में बदलाव की जो प्रक्रिया अपनायी है वह संविधान सम्मत है। जम्मू-कश्मीर में भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के लिए सरकार ने जो कदम उठाया है उसे कानूनी तौर पर परखना जरूरी हो जाता है, क्योंकि बहुत से लोग सरकार के कदम को कोर्ट में चुनौती देने के तैयारी में हो सकते हैं। ऐसे में यह समझना होगा कि सरकार का कदम कितना और कैसे कानून की कसौटी पर सही साबित होता है।

इस बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि वैसे तो किसी भी आदेश या कार्यवाही को कोई भी अदालत में चुनौती दे सकता है, लेकिन उनकी राय में सरकार की कार्यवाही सौ फीसद ठीक है। संवैधानिक रूप से उसमें कोई खामी नहीं है और ना ही प्रक्रिया में किसी कानूनी अथवा संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन हुआ है। कश्यप अनुच्छेद 370 को खत्म करने की संवैधानिक प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं कि राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर की संविधानसभा की सहमति से इसे समाप्त या इसमें बदलाव कर सकते हैं।

चूंकि, जम्मू-कश्मीर में अब संविधानसभा नहीं है इसलिए उसकी उत्तराधिकारी विधानसभा को माना जाएगा। हालांकि, आजकल राज्य में विधान सभा भी नहीं है और वहां राष्ट्रपति शासन लागू है। ऐसे में राष्ट्रपति के पास ही शक्तियां हैं और वह उसके तहत आदेश जारी कर सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान कहना गलत है।

यह अनुच्छेद अस्थाई प्रावधान है। विशेष दर्जा और अस्थाई प्रावधान में अंतर होता है। राज्य के विशेष दर्जे का प्रावधान अनुच्छेद 371 ए में नगालैंड के बारे में है। कश्यप यहां तक कहते हैं कि इसके लिए संसद से संकल्पपत्र भी पास कराने की जरूरत नहीं थी। अगर संसद से संकल्प पत्र नहीं भी पास होता तो भी राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह संवैधानिक और कानूनी होता। पहले भी राष्ट्रपति के आदेश से ही जम्मू-कश्मीर के बारे में अनुच्छेद 35ए आदि में बदलाव किया गया है।

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