हाथों के बल तैरकर पार कर डाला इंग्लिश चैनल, रिमो ने दिव्यांगता को मात देकर रचा कीर्तिमान
रिमो का अगला लक्ष्य अमेरिका का 42 किलोमीटर लंबा कैटलीना चैनल है।
विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। छोटे-बड़े पैर के साथ जिसका जन्म हुआ हो, डेढ़ महीने की उम्र में जिसे लकवा मार गया हो, थोड़ा बड़ा होने पर जिसे नर्व की बीमारी हो गई हो, ऐसे इंसान की जेहन में कैसी तस्वीर उभरती होगी? हर कोई यही सोच रहा होगा कि वह बिस्तर पर असहाय पड़ा होगा, दूसरों के सहारे..लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो तूफानी लहरों से लड़कर सफलता की तरफ बढ़ रहा है। इस शख्स का नाम है रिमो साहा। 26 साल के हो चुके रिमो ने दिव्यांगता को मात देकर इंग्लिश चैनल पार कर डाला है, वो भी सिर्फ हाथों के सहारे तैरकर, क्योंकि पानी में उसके पैर जरा भी हरकत नहीं करते। इस कीर्तिमान से पहले रिमो तैराकी में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परचम लहरा चुके हैं।
नामुमकिन को कर दिखाया मुमकिन: तैराकी रिमो के लिए नामुमकिन थी। रिमो ने बताया, 'मैं जब डेढ़ महीने का था, उस समय मेरे शरीर के पूरे दायें हिस्से को लकवा मार गया था। मेरा दायां पैर बायें पैर से ढाई इंच छोटा है, जिसके कारण मुझे क्लीपर लगाकर चलना पड़ता था। चार-पांच साल की उम्र तक फिजियोथेरेपी चली। फिर चिकित्सकों ने तैराकी की सलाह दी। छह साल की उम्र में तैराकी सीखनी शुरू की, लेकिन यह मेरे लिए असंभव सा था। पानी में उतरते ही मेरा दायां पैर सुन्न हो जाता था। बायां पैर भी ज्यादा हरकत नहीं करता था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और हाथों के सहारे तैरना शुरू किया।'
यूं शुरू हुआ सफलता का सिलसिला: 2004 में रिमो ने कोलकाता में हुई राज्य चैंपियनशिप में भाग लिया। पहली ही बार में उन्होंने दो स्वर्ण पदक अपने नाम किए। उसी साल मुंबई में हुई राष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए उनका चयन हुआ। उसमें भी रिमो ने एक स्वर्ण और तीन रजत पदक जीते। इसके बाद तो पदकों की झड़ी लग गई। बंगाल से लेकर महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों में तैराकी प्रतियोगिताओं में उन्होंने सफलता के झंडे गाड़े। राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराने के बाद रिमो ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवा बिखेरा। इसकी शुरुआत 2009 में बेंगलुरु में हुए इंटरनेशनल व्हील चेयर एम्प्यूटी स्पोर्ट्स गेम से हुई। इसमें रिमो ने 100 मीटर के बैकस्ट्रोक वर्ग में रजत पदक जीता।
अगले साल दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उसने 100 मीटर की फ्रीस्टाइल में सातवां स्थान हासिल किया। उसी साल चीन में पैरा एशियन गेम्स में रिमो का पांचवां स्थान रहा। रिमो राष्ट्रीय स्तर पर अब तक 48 स्वर्ण, 36 रजत और एक कांस्य पदक जीत चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में दो रजत और एक कांस्य पदक उनके नाम हैं।
जब छोड़नी पड़ी थी तैराकी: सफलता के दौर में फिर मुश्किलों ने रिमो का रास्ता रोका था। 11-12 साल की उम्र में अचानक उन्हें नर्व की समस्या हो गई थी। रिमो अचानक से बेसुध हो जाते थे। ऐसे में तैरना उनके लिए जानलेवा था। इस कारण तैराकी छोड़नी पड़ गई थी, लेकिन रिमो ने हार नहीं मानी और दो-तीन साल में ही इस बीमारी को मात देकर शानदार वापसी की।
स्वीमिंग पूल से इंग्लिश चैनल: स्वीमिंग पूल से निकलकर इंग्लिश चैनल पार करने के लिए रिमो ने काफी तैयारी की। पहले नदियों में होने वाली तैराकी प्रतियोगिताओं में भाग लिया। फिर समुद्र की तरफ बढ़े। 2011 में मुंबई में हुई नेवी सी स्विमिंग में चौथा स्थान हासिल किया। 2016 में इसी प्रतियोगिता में उनका दूसरा स्थान रहा। इंग्लिश चैनल अभियान के लिए अपने तीन दिव्यांग तैराक साथियों के साथ पुणे में कड़ी ट्रेनिंग ली।
रिमो ने अपने साथियों के साथ इस साल 24 जून को ब्रिटिश समयानुसार सुबह 7.40 बजे डोवर सैमफायर होई बीच से इंग्लिश चैनल अभियान शुरू किया और उसी रात 8.06 मिनट पर इस अभियान को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह एक रिले स्वीमिंग थी, जिसमें उसके तीन साथी भी शामिल थे। इंग्लैंड से फ्रांस तक 38 किलोमीटर के फासले में से 20 किलोमीटर रिमो ने पांच घंटे में तय किए, सिर्फ हाथों के बल पर। बहुत सी मुश्किलें आई, बर्फ सा ठंडा पानी, ऊंची लहरें, विपरीत धारा और जेली मछलियों का डंक, जिससे तेज खुजली होने लगती थी, लेकिन रिमो नहीं रुके।
अगला लक्ष्य कैटलीना चैनल: रिमो का अगला लक्ष्य अमेरिका का 42 किलोमीटर लंबा कैटलीना चैनल है। रिमो ने कहा, 'बंगाल के मासुदुर रहमान बैद्य मेरे प्रेरणास्त्रोत हैं। वह दुनिया के ऐसे पहले दिव्यांग तैराक हैं, जिन्होंने स्ट्रेट ऑफ ज्रिबाल्टर पार किया है।'
छोटा सा है परिवार: हावड़ा के सलकिया क्षेत्र के श्रीमनी बगान लेन में एक छोटे से फ्लैट में रहने वाले रिमो का छोटा सा परिवार है। उनके पिता शंकर साहा एक निजी कंपनी में कर्मचारी हैं। मां शुक्ला साहा गृहिणी हैं। बहन कोयल मंडल की शादी हो चुकी है।