भारत से कहीं अधिक है इन देशों में तेल की कीमत, जानकर रह जाएंगे दंग
ब्लूमबर्ग और ग्लोबल पेट्रोल प्राइसेज डॉट कॉम के आंकड़ों को संकलित करके दिस इज मनी नामक वेबसाइट ने पेट्रोल-डीजल के दामों में सर्वाधिक वृद्धि वाले दस देशों की सूची जारी की है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बीते कुछ दिनों से देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से जनता हलकान हो रही है। इसके लिए सरकार पर निशाना साधा जा रहा है, लेकिन सच तो यह है कि दुनिया के तकरीबन हर देश में पेट्रोल की कीमतें बढ़ रही हैं। 2015 में ब्रेंट क्रूड की कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल थी। अब 79 डॉलर प्रति बैरल है। ब्लूमबर्ग और ग्लोबल पेट्रोल प्राइसेज डॉट कॉम के आंकड़ों को संकलित करके दिस इज मनी नामक वेबसाइट ने पेट्रोल-डीजल के दामों में सर्वाधिक वृद्धि वाले दस देशों की सूची जारी की है। इसमें हांगकांग शीर्ष पर है। दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमश: आइसलैंड व नॉर्वे हैं जो अपनी महंगी जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं।
कैसे तय होते हैं दाम
सबसे पहले खाड़ी या दूसरे देशों से तेल खरीदते हैं, फिर उसमें ट्रांसपोर्ट खर्च जोड़ते हैं। क्रूड आयल यानी कच्चे तेल को रिफाइन करने का व्यय भी जोड़ते हैं। केंद्र की एक्साइज ड्यूटी और डीलर का कमीशन जुड़ता है। राज्य वैट लगाते हैं और इस तरह आम ग्राहक के लिए कीमत तय होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बदलाव घरेलू बाजार में कच्चे तेल की कीमत को सीधे प्रभावित करता है। भारतीय घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार यह सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से है। अंतरराष्ट्रीय मांग में वृद्धि, कम उत्पादन दर और कच्चे तेल के उत्पादक देशों में किसी तरह की राजनीतिक हलचल पेट्रोल की कीमत को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
कार्बन बबल का सिद्धांत
वर्तमान में जीवाश्म ईंधन कंपनियों के शेयरों की कीमत इस अनुमान पर तय की जाती है कि उनका तेल का सारा भंडार इस्तेमाल कर लिया जाएगा। लेकिन जैसे ही लोग कार्बन मुक्त ईंधन की तरफ पलायन करेंगे, जीवाश्म ईंधन में किया गया लाखों करोड़ों डॉलर का निवेश अपनी कीमत गवां देगा। जीवाश्म ईंधन भंडार और उत्पादन मशीनरी कोई लाभ नहीं दे पाएगी। इसी अनुमानित नुकसान को कार्बन बबल नाम दिया गया है।
नोट : एक पेंस यानी
ब्रिटिश मुद्रा पौंड का सौवां
भाग। ठीक भारतीय पैसे
की तरह।
एक पौंड : 95.45 रुपया
एक पेंस : 95.45 पैसा
विकासशील देश बदलाव के वाहक
तेजी से बढ़ रहे दुनिया के बाजार इस बदलाव के सबसे बड़े वाहक हैं। इन देशों में आबादी का घनत्व ज्यादा है, प्रदूषण ज्यादा है और ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। इन देशों के पास जीवाश्म ईंधन आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर कम है, ऊर्जा की मांग अधिक है और ये अक्षय ऊर्जा के भंडारों का लाभ उठाने को लालायित हैं।
क्या हैं वजहें
ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव की प्रमुख वजहें हैं जरूरत, नीतियां और तकनीक। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और लीथियम आयन बैटरी जैसी तकनीकों की क्षमताएं बढ़ रही हैं और इनकी कीमतें 20 फीसद की दर से कम हो रही हैं। यह सिलसिला आगे आने वाले समय में भी जारी रहने की संभावना है। लिहाजा लोग पारंपरिक स्रोतों से दूर हो रहे हैं।
हर देश में बढ़ रहे दाम
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के चलते दुनियाभर में पेट्रोल के दाम बढ़े हैं। ब्रेंट क्रूड की कीमतों को ईंधन का वैश्विक मानदंड माना जाता है। 2015 में ब्रेंट क्रूड का दाम 66 डॉलर प्रति बैरल था जो फिलहाल 79 डॉलर प्रति बैरल हो गया।