पेट्रोल-डीजल राजनीति पर लगाम का जीएसटी ही रास्ता
जीएसटी के तहत पेट्रोल व डीजल को लाने पर कुछ राज्यों की आपत्ति है। इन राज्यों ने अधिभार लगाने की आजादी मांगी है क्योंकि ये आसानी से राजस्व संग्रह का एक बड़ा जरिया नहीं खोना चाहते।
जयप्रकाश रंजन, दिल्ली । पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने पर हिसाब-किताब लगाया जा रहा है। सरकार के अंदर सहमति बन चुकी है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर बढ़ रही राजनीति पर लगाम लगाने के लिए अब जीएसटी ही एकमात्र रास्ता बचा है। वैसे जीएसटी के तहत इन उत्पादों को लाने के बावजूद ग्राहकों को इनकी कीमतों में कोई भारी राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इन उत्पादों के लिए जीएसटी की ऐसी दर (रेवेन्यू न्यूट्रल रेट) तलाशनी होगी जिससे केंद्र व राज्यों के खजाने को कोई भारी चपत न लगे। इस मुश्किल से निकलने के लिए सरकार पेट्रोलियम उत्पादों के लिए कोई नई दर लाने पर विचार कर रही है।
अभी जीएसटी के तहत तमाम उत्पादों पर चार तरह की दरें (5,12, 18, 28 फीसद) हैं। इनमें कोई ऐसी दर नहीं है जो सीधे से इन उत्पादों पर लागू किया जा सके। सरकार को कोई नई दर तय करनी होगी ताकि इनसे भविष्य में जो राजस्व संग्रह हो, वह मौजूदा संग्रह से कम नहीं हो। जानकार मानते हैं कि जीएसटी के तहत आने के बावजूद ग्राहकों को खुदरा कीमत में कोई बड़ी राहत नहीं मिलेगी। वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों के मुताबिक यह कोई अच्छी अर्थनीति नहीं होगी कि हम एक झटके में पेट्रोल व डीजल की कीमतों में भारी कटौती कर दे। हालांकि ग्राहकों कोथोड़ी राहत जरूर मिलेगी।
जीएसटी के तहत पेट्रोल व डीजल को लाने पर कुछ राज्यों की आपत्ति है। इन राज्यों ने अधिभार लगाने की आजादी मांगी है क्योंकि ये आसानी से राजस्व संग्रह का एक बड़ा जरिया नहीं खोना चाहते। जानकार मानते हैं कि राज्यों की इस मांग को लागू करने के लिए जीएसटी कानून में एक और संशोधन करना होगा जो मौजूदा हालात में मुश्किल है।
आंकड़े गवाह है कि केंद्र व राज्य पेट्रो उत्पादों से खूब कमाई कर रहे हैं। 28 राज्यों में पेट्रोल पर 25 से 35 फीसद के बीच जीएसटी की दर है। डीजल की भी यही स्थिति है। 13 राज्यों में वैट की दर 20 फीसद से ज्यादा है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में केंद्र ने तमाम पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स लगा कर 1,97,715 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया जबकि राज्यों के लिए यह राशि 1,50,916 करोड़ रुपये थी। इसका मतलब यह हुआ कि जीएसटी में शामिल करने के बाद इन पर लगाई जाने वाली दर इतनी होनी चाहिए कि कुल संग्रह केंद्र व राज्य की तरफ से इनसे वसूले जाने वाले संग्रह से कम न हो।
नहीं होगी राजनीति
जीएसटी में इन दोनों उत्पादों के आने से ग्राहकों को भले ही बहुत फायदा न हो लेकिन सरकार को यह फायदा होगा कि इसको लेकर राजनीति बंद हो जाएगी। सरकार के पास यह तर्क होगा कि अब जीएसटी के तहत होने की वजह से वह पेट्रो कीमतों को लेकर बहुत कुछ नहीं कर सकती है। अभी विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि सरकार केंद्रीय शुल्क नहीं घटा रही है जिससे इनकी कीमतों में तेजी है। आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग से जब यह पूछा गया कि क्या सरकार पेट्रोल व डीजल की कीमतों में कुछ राहत देने के लिए उत्पाद शुल्क घटाएगी तो उनका टका सा जवाब था, 'ऐसा करना मुश्किल है क्योंकि इससे सरकार की राजकोषीय स्थिति पर असर होगा।'