अंतिम संस्कार के वैकल्पिक तरीकों की मांग संबंधी याचिका एनजीटी में खारिज
याचिका में पिछले वर्षो में प्रकाशित कई रिपोर्टो का हवाला भी दिया गया जिनके मुताबिक लकड़ी पर आधारित अंतिम संस्कार का वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय योगदान है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया जिसमें वायु प्रदूषण घटाने और कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए अंतिम संस्कार के वैकल्पिक तरीके अपनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश याचिका में राजधानी के सभी श्मशान घाटों पर एक तिहाई चिताओं को निश्चित समयावधि में अंतिम संस्कार के वैकल्पिक तरीकों में तब्दील करने की मांग की थी। पीठ ने कहा, 'एजीटी एक्ट-2010 की धारा 14 व 15 के तहत हमें उठाए गए मसले में पर्यावरण का कोई सारगर्भित सवाल नहीं मिला।' पीठ ने कहा कि उनका आदेश आवेदक को उचित प्राधिकारी के समक्ष यह मुद्दा उठाने से वंचित नहीं करेगा। ट्रिब्यूनल दिल्ली निवासी प्रमोद कुमार भाटिया और अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसे अधिवक्ता राहुल चौधरी के जरिये दायर किया गया था।
याचिका में पिछले वर्षो में प्रकाशित कई रिपोर्टो का हवाला भी दिया गया जिनके मुताबिक लकड़ी पर आधारित अंतिम संस्कार का वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय योगदान है। इनमें आइआइटी कानपुर द्वारा दिल्ली पर किया गया अध्ययन भी शामिल है। याचिका में आइसीएमआर की कोविड-19 से संबंधित उन गाइडलाइंस का हवाला भी दिया गया जिसमें शव का जहां संभव हो, विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने की सिफारिश की गई है।
सीपीसीबी को निर्देश, पेटकोक व फर्नेस ऑयल पर पाबंदी सुनिश्चित करें
एनजीटी ने शुक्रवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्य व केंद्र शासित प्रदेश उद्योगों में पेटकोक और फर्नेस ऑयल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाएं और स्वच्छ विकल्पों को अपनाएं। सीपीसीबी से चार महीने में कार्रवाई रिपोर्ट तलब की गई है। मामले की अगली सुनवाई 15 जनवरी, 2021 को होगी।
एजीटी चेयरमैन आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीपीसीबी द्वारा दाखिल रिपोर्ट को देखने के बाद कहा कि कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश आदेशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर में पेट्रोलियम कोक या पेटकोक (ऑयल की रिफाइनिंग से निकलने वाला ठोस कार्बन या कोयले जैसी वस्तु) और फर्नेस ऑयल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा रखा है और अन्य राज्यों में भी इन्हीं कदमों का उठाने का सुझाव दिया था।