Move to Jagran APP

सांसदों को पेंशन और यात्रा सुविधा का विरोध करने वाली याचिका खारिज

न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर व न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सातवीं अनुसूची की प्रथम सूची की प्रविष्टि 73 में सांसदों को भत्ते की बात कही गई है

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 16 Apr 2018 10:16 PM (IST)Updated: Mon, 16 Apr 2018 10:16 PM (IST)
सांसदों को पेंशन और यात्रा सुविधा का विरोध करने वाली याचिका खारिज
सांसदों को पेंशन और यात्रा सुविधा का विरोध करने वाली याचिका खारिज

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसदों को पेंशन और यात्रा सुविधा देने का विरोध करने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताई है जिसमें कहा गया था कि पूर्व सांसदों को पेंशन के बारे में कानून बनाने का संसद को अधिकार है और वो इस बारे मे कोई भी शर्त लगा सकती है।

loksabha election banner

न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर व न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सातवीं अनुसूची की प्रथम सूची की प्रविष्टि 73 में सांसदों को भत्ते की बात कही गई है, जिसका बहुत व्यापक अर्थ है और इसमें सांसद व पूर्व सांसदों को पेंशन व अन्य सुविधाएं देने की बात शामिल है। कोर्ट ने कहा कि संविधान मे कुछ संवैधानिक पदों के लिए पेंशन की बात कही गई है और अन्य के लिए नहीं कही गई है, इसका ये मतलब नहीं निकलता कि संविधान अगर जिस बारे में चुप है, तो उसकी मनाही करता है।

कोर्ट ने फैसले में कहा है कि संविधान निर्माताओं ने कुछ संवैधानिक पदों की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए उच्च स्तरीय संरक्षण किये हैं जैसे तय कार्यकाल और अन्य सेवा शर्ते लेकिन सांसदों के बारे में इस तरह के सुरक्षात्मक उपाय करने की जरूरत नहीं लगी और उनके बारे में अथारिटी कानून बना सकती हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता एसएन शुक्ला की इस दलील को खारिज कर दिया कि पेंशन राज्य के कर्मचारियों को सेवानिवृति के बाद मिलती है और सांसद कर्मचारी नहीं हैं इसलिए सरकार उन्हें पेंशन नहीं दे सकती। कोर्ट ने कहा कि पेंशन के बारे में ये गलत धारणा है। अन्य भुगतान भी होते हैं जिन्हें पेंशन कहा जाता है जैसे वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, दिव्यांग पेंशन आदि।

हालांकि कोर्ट ने कहा कि नियमों के तहत दी जा रही ये सुविधाएं तर्कसंगत हैं कि नहीं ये तय करना संसद का काम है वो भी इस स्थिति में जबकि कुछ सांसदों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हो और लाखों की जनसंख्या गरीब हो।

मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने पूर्व सांसदों को पेंशन और अन्य सुविधाएं दिये जाने के कानून को सही ठहराते हुए कहा था कि कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उन्हें सम्मान से जीवन जीने के लिए ये जरूरी है। सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट को ये भी बताया था कि इस बजट में सांसदों के वेतन भत्तों की हर पांच साल में समीक्षा का तंत्र बनाए जाने की घोषणा की गई है। हालांकि याचिकाकर्ता ने सांसदों को पेंशन और उनके बाद उनके परिवार को पेंशन तथा आजीवन यात्रा सुविधा का विरोध करते हुए कहा था कि ज्यादातर सांसद पैसे वाले हैं उन्हें पेंशन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.