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अभिनेत्रा कंगना रनोट के खिलाफ Supreme Court में दायर याचिका खारिज, सोशल मीडिया पर सिखों के खिलाफ बयानबाजी का था आरोप

किसान आंदोलन को लेकर विवादों में रहने वाली अभिनेत्री कंगना रनोट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। अधिवक्ता चरणजीत सिंह चंद्रपाल ने याचिका दायर कर कहा था कि कंगना ने सिखों का अपमान किया है।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 05:45 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 06:08 PM (IST)
अभिनेत्रा कंगना रनोट के खिलाफ Supreme Court में दायर याचिका खारिज, सोशल मीडिया पर सिखों के खिलाफ बयानबाजी का था आरोप
अभिनेत्री कंगना रनोट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका खारिज (जागरण.काम, फाइल फोटो)

नई दिल्ली, एजेंसी: किसान आंदोलन को लेकर विवादों में रहने वाली अभिनेत्री कंगना रनोट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। मुंबई के रहवासी अधिवक्ता चरणजीत सिंह चंद्रपाल ने याचिका दायर कर कहा था कि कंगना ने किसान आंदोलन को खालिस्तान से जोड़कर सिखों का अपमान किया है। शीर्ष न्यायलय ने याचिकाकर्ता को आश्वासन देते हुए कहा कि आम जनमानस सिख और खालिस्तानी के बीच का फर्क समझता है। उन्हें सुप्रीम कोर्ट आने की जगह दूसरे कानूनी विकल्प अपनाने चाहिए थे।

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दो जजों की बेंच ने खारिज की याचिका

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि अदालत उनकी संवेदनशीलता का सम्मान करती है। लेकिन जितना अधिक वह सोशल मीडिया पर कंगना के बयानों को प्रचारित करेंगे, वो उतना ही उनकी मदद करेंगे। हालांकि, चंद्रपाल ने जोर देकर कहा कि कंगना ने सिख समुदाय के खिलाफ कई आपत्तिजनक बयान दिए हैं और उसके खिलाफ कुछ कार्रवाई की जानी चाहिए। अभिनेत्री ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपना गुरु बताया था। यह भी सिख धर्म को मानने वाले की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बयान था। याचिकाकर्ता की मांग थी कि इस मामले को लेकर देश भर में दायर मुकदमों को मुंबई के खार थाने में स्थानांतरित कर दिया जाए।

सीधे सुप्रीम कोर्ट आने की जरूरत नहीं

याचिका में अभिनेत्री के सभी सोशल मीडिया पोस्ट पर सेंसरशिप लगाने की मांग भी रखी गई थी। जिसपर न्यायलय ने साफ कर दिया कि इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आने की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ता दूसरे कानूनी विकल्प भी अपना सकता है। वहीं सभी मामलों को मुंबई ट्रांसफर करने की मांग पर कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामले में शिकायतकर्ता और आरोपी ही इस तरह की मांग कर सकते हैं। किसी तीसरे पक्ष को इस तरह का कोई अधिकार नहीं है।


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