माला दीक्षित, नई दिल्ली। हाल ही में आया पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का आदेश चर्चा में है जिसमें कोर्ट ने 16 वर्ष की मुस्लिम लड़की की शादी को वैध ठहराते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला के मुताबिक 15 वर्ष से अधिक उम्र की लड़की अपनी पसंद से शादी कर सकती है। यह पहला मामला नहीं है, जिसमें कोर्ट ने ऐसा कहा हो उसी फैसले में हाई कोर्ट ने इस बारे में ऐसे ही अन्य पूर्व फैसलों को उधृत किया है। मुस्लिम पसर्नल ला कहता है कि यौन परिवक्वता की आयु प्राप्त करने पर लड़की की शादी हो सकती है। लेकिन अगर लड़की लड़का दूसरे धर्म से ताल्लुक रखते होते तो नाबालिग लड़की से शादी में लड़के को आपराधिक कानून का सामना करना पड़ सकता था।
पसर्नल ला के ये प्राविधान आपराधिक कानून को मुंह चिढ़ाते हैं, जिनमें नाबालिग लड़की की शादी, उससे शारीरिक संबंध बनाना अपराध माना गया है और कारावास की कड़ी सजा के प्राविधान हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में 15 वर्ष की नाबालिग पत्नी से संबंध बनाने पर दुष्कर्म के अपराध से छूट देने वाले आइपीसी के प्राविधान को भी गैरकानूनी ठहरा दिया था और 18 वर्ष से कम आयु की पत्नी से संबंध बनाने को दुष्कर्म माने जाने की व्यवस्था दी है। वैसे तो कानूनन शादी के लिए लड़की की आयु 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष होनी चाहिए। स्पेशल मैरिज एक्ट में यही प्राविधान हैं। लेकिन शादी के मामले में विभिन्न धर्मों के अपने पर्सनल ला लागू होते हैं और पर्सनल ला में शादी की आयु भिन्न है।
हिन्दू पर्सनल ला संहिताबद्ध हो चुका है और इसमें लड़की की शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला कहता है कि लड़की के यौवन प्राप्त करने या यौन परिपक्वता (प्युबर्टी) आने पर शादी हो सकती है जो सामान्यतौर पर 15 वर्ष की आयु के बाद शादी योग्य मानी जाती है। कानून में वयस्कता के लिए 18 वर्ष की आयु तय है। बाल विवाह निरोधक कानून में 18 वर्ष से कम आयु यानी नाबालिग लड़की का विवाह दंडनीय अपराध माना गया है।
सभी के लिए विवाह की आयु समान करने की मांग वाली अश्वनी कुमार उपाध्याय की एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिस पर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी हो चुका है लेकिन सरकार ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है। हालांकि इस बीच सरकार ने लड़कियों की विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ा कर लड़कों के बराबर, 21 वर्ष करने का विधेयक संसद में पेश किया था। यह बाल विवाह निरोधक (संशोधन) विधेयक अभी संसदीय समिति के समक्ष विचाराधीन है।
आपराधिक कानून देखें तो शारीरिक संबंध के लिए सहमति देने के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है यानी वह वयस्क हो। नाबालिग से संबंध बनाना दुष्कर्म है। नाबालिग की सहमति का कानून की निगाह में कोई महत्व नहीं है। नाबालिग से संबंध बनाने पर व्यक्ति न सिर्फ आइपीसी की धारा 375 - 376 (दुष्कर्म) का अपराध करता है बल्कि वह पोस्को (बच्चों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाला कानून ) के तहत भी अपराध करता है जिसमें कड़ी सजा के प्राविधान हैं। ऐसे में नाबालिग की शादी की इजाजत देने वाले पसर्नल ला इन तय कानूनी व्यवस्थाओं को मुंह चिढ़ाते हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह पर्सनल ला और विधायी कानून में अंतर पर कहते हैं कि अगर पर्सनल ला, विधायी कानून (संसद या विधानसभा से पास कानून) के खिलाफ है तो वहां पर्सनल ला के बजाय विधाई कानून लागू होगा। वह कहते हैं कि किसी भी तरह का भ्रम दूर करने के लिए विधायी कानून में लिखा जा सकता है कि ये कानून, पर्सनल ला के ऊपर लागू होगा।
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