Move to Jagran APP

मौसमी नदियों में बदल रही हैं बारहमासी नदियां, अविरल बहने के लिए नहीं मिल रहा पानी

धरती पर 246 लंबी नदियों में से महज 37 फीसद ही बाकी बची हैं और अविरल बह पा रही हैं। पिछले 20 साल में 15 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश वाले दिनों में बढ़ोतरी हुई है लेकिन 10 सेमी से कम बारिश वाले दिनों की गिनती कम हो गई है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 11:18 AM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 11:18 AM (IST)
मौसमी नदियों में बदल रही हैं बारहमासी नदियां, अविरल बहने के लिए नहीं मिल रहा पानी
अकेले अमेजन नदी पर 1500 से ज्यादा पनबिजली परियोजनाएं हैं।

नई दिल्ली, जेएनएन। एक आसान-सा सवाल है कि नदियों में पानी आता कहां से है? मानसून के बारिश से ही। और मूसलाधार बरसात का पानी तो बहकर निकल जाता है। हल्की और रिमझिम बरसात का पानी ही जमीन के नीचे संचित होता है और नदियों को वर्ष भर बहने का पानी मुहैया कराता है, लेकिन नदियों के पानी में कमी से उसका चरित्र भी बदल रहा है और बारहमासी नदियां अब मौसमी नदियों में बदलती जा रही हैं। यह घटना सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं, पूरी दुनिया की नदियों में देखी जा रही है।

loksabha election banner

दुनिया की सारी नदियों का बहाव जंगल के बीच से है। इसके चलते नदियां बची हैं। जहां नदियों के बेसिन में जंगल काटे गए हैं, वहां नदियों में पानी कम हुआ है। नदियों को अविरल बहने के लिए पानी नहीं मिल रहा है। बरसात रहने तक तो मामला ठीक रहता है, लेकिन जैसे ही बरसात खत्म होती है नदियां सूखने लग रही हैं। भूजल ठीक से चार्ज नहीं हो रही है। यह मौसमी चक्र टूट गया है। पुणो की संस्था फोरम फॉर पॉलिसी डायलॉग्स ऑन वाटर कांफ्लिक्ट्स इन इंडिया का एक अध्ययन बताता है कि अत्यधिक दोहन और बड़े पैमाने पर उनकी धारा मोड़ने की वजह से अधिकतर नदियां अब अपने मुहानों पर जाकर समंदर से नहीं मिल पातीं। इनमें मिस्र की नील, उत्तरी अमेरिका की कॉलरेडो, भारत और पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु, मध्य एशिया की आमू और सायर दरिया भी शामिल हैं।

वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड ने पहली बार दुनिया की लंबी नदियों का एक अध्ययन किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती पर 246 लंबी नदियों में से महज 37 फीसद ही बाकी बची हैं और अविरल बह पा रही हैं। अमेजन के वर्षावनों का वजूद ही अब खतरे में है। सिर्फ अमेजन नदी पर 1500 से ज्यादा पनबिजली परियोजनाएं हैं। विकास की राह में नदियों की मौत आ रही है। इसकी मिसाल गंगा भी है। पिछले साल जून के दूसरे पखवाड़े में उत्तर प्रदेश के जलकल विभाग को एक चेतावनी जारी करनी पड़ी, क्योंकि वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर और दूसरी कई जगहों पर गंगा नदी का जलस्तर न्यूनतम बिंदु तक पहुंच गया था। कानपुर में गंगा की धारा के बीच में रेत के बड़े-बड़े टीले दिखाई देने लगे थे। यहां तक कि पेयजल की आपूर्ति के लिए भैरोंघाट पंपिंग स्टेशन पर बालू की बोरियों का बांध बनाकर पानी की दिशा बदलनी पड़ी। गर्मियों में गंगा के जलस्तर में आ रही कमी का असर और भी तरीके से दिखने लगा था, क्योंकि प्रयागराज, कानपुर और वाराणसी के इलाकों में हैंडपंप या तो सूख गए या कम पानी देने लगे थे। पानी कम होने का ट्रेंड देश की लगभग हर नदी में है और नदी बेसिनों में बारिश की मात्र में कमी भी है। हमने इस पर अभी ध्यान नहीं दिया तो बड़ी संपदा से हाथ धो देंगे।

(साभार : गुस्ताख ब्लॉग में मंजित ठाकुर)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.