दिल्ली-एनसीआर में लोगों को वायु प्रदूषण से मिलेगी निजात, पराली की प्लाई करेगी कमाल
पराली की समस्या का एक बेहतर समाधान सामने आया है। पराली गेहूं व सोयाबीन के भूसे से अब प्लाई बनाई जा सकेगी। इसे बनाने में कच्चे माल के तौर पर पराली भूसा या अन्य कृषि अपशिष्ट का 70 फीसद हिस्सा और 30 फीसद रासायनिक पदार्थ मिलाया जाएगा।
शशिकांत तिवारी, भोपाल। पराली की समस्या का एक बेहतर समाधान सामने आया है। पराली, गेहूं व सोयाबीन के भूसे से अब प्लाई बनाई जा सकेगी। इसे बनाने में कच्चे माल के तौर पर पराली, भूसा या अन्य कृषि अपशिष्ट का 70 फीसद हिस्सा और 30 फीसद पॉलीमर (रासायनिक पदार्थ) मिलाया जाएगा। भोपाल स्थित काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्टि्रयल रिसर्च (सीएसआइआर)-एम्प्री (एडवांस मटेरियल्स एंड प्रोसेस रिसर्च) ने तीन साल के प्रयास के बाद यह तकनीक विकसित की है। शुक्रवार को इस तकनीक के जरिये उत्पादन शुरू करने का लाइसेंस भी छत्तीसगढ़ के भिलाई स्थित शुभ ग्रीन शीट प्रा.लि. कंपनी को दिया गया। कंपनी 10 करोड़ रुपये की लागत से मार्च, 2021 से उत्पादन शुरू करने की तैयारी में है।
चार गुना मजबूती का दावा, सस्ती भी पड़ेगी
एम्प्री के डायरेक्टर डॉ. अवनीश कुमार श्रीवास्तव का दावा है कि उनकी जानकारी में देश की यह पहली तकनीक है। इसे यूएसए, कनाडा, चीन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन समेत आठ देशों से पेटेंट मिल चुका है। कृषि अपशिष्ट से बनने वाली प्लाई बाजार में उपलब्ध प्लाई से चार गुना ज्यादा मजबूत होगी और सस्ती भी पड़ेगी। करीब 20 साल तक इसमें कोई खराबी नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि इस तकनीक से कच्चा माल व मजबूती देने वाले तत्व अलग-अलग मात्रा में मिलाकर अलग दबाव में विभिन्न गुणवत्ता की प्लाई तैयार की जा सकेगी।
पुरानी या खराब प्लाई को रिसाइकिल कर दोबारा उसी तरह का उत्पाद बनाया जा सकता है
रिसाइकिल भी की जा सकेगी। यह तकनीक विकसित करने में अहम भूमिका निभाने वाले मुख्य वैज्ञानिक डॉ. असोकन पप्पू ने बताया कि पुरानी या खराब प्लाई को रिसाइकिल कर दोबारा उसी तरह का उत्पाद बनाया जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि इसमें आग, पानी, नमी, दीमक व फंगस का कोई असर नहीं होगा। लेमिनेटेड और गैर लेमिनेटेड दोनों तरह की प्लाई बनाई जा सकेगी। डॉ. असोकन के मुताबिक मौजूदा स्थितियों के मुताबिक अलग-अलग गुणवत्ता की यह प्लाई बाजार में 26 से 46 रुपये प्रति वर्गफीट तक में मिल सकेगी। बाजार में मौजूद प्लाई इससे दस रुपये महंगी ही मिलती हैं।
इस तरह बनाई जाती है प्लाई
डॉ. असोकन बताते हैं प्लाई बनाने के लिए पहले कृषि अपशिष्ट से नमी व धूल अलग की जाती है। इसके बाद अन्य कच्चा माल मिलाकर एक निश्चित तापमान और दबाव में प्लाई बनाई जाती है।
हरियाणा की 80 फीसद पराली खप जाएगी
इस तकनीक को लेकर एम्प्री द्वारा शुक्रवार को आयोजित एक वेबिनार में एनआइटी कुरुुक्षेत्र के निदेशक प्रो. सतीश कुमार ने कहा कि इसका अधिकतम उपयोग हो तो पंजाब व हरियाणा में पराली जलाने से वहां और दिल्ली में होने वाले प्रदूषण से निजात मिल जाएगी। सीएसआइआर के महानिदेशक शेखर सी. मांडे ने कहा यह तकनीक देश के लिए आज की बड़ी जरूरत है। एम्प्री के निदेशक डॉ.अवनीश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने पिछले साल एक अनुमान लगाया था कि हरियाणा में बनने वाली पूरी प्लाई इस तकनीक से बनाई जाए तो 80 फीसद पराली इसमें खप जाएगी। एम्प्री के सीनियर प्रिंसिपल वैज्ञानिक डॉ. एसकेएस राठौर ने कहा कि पराली जलाने की जगह बेचने से किसानों को भी फायदा होगा।