शहादत शर्मिंदा न हो जाए, इसलिए यहां कोई रोता नहीं, जवानों की प्रतिमाओं पर आज जुटेंगे लोग
नक्सलियों से लोहा लेने वाले जवानों की शहादत के निशां जिले में हर तरफ नजर आते हैं। इन जवानों की यादों को चिरस्थायी बनाने के लिए हर साल राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी व 15 अगस्त को यहां मेले जैसा नजारा रहता है।
सतीश चांडक, सुकमा। नक्सलियों से लोहा लेने वाले जवानों की शहादत के निशां जिले में हर तरफ नजर आते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग-30 पर स्थित एर्राबोर में तो जवानों की कहानी लोगों को बुत बनने को मजबूर कर देती है। नौ जुलाई 2007 को जिले के उरपलमेटा के पास नक्सली हमले में 23 जवान शहीद हुए थे। इनमें से छह जवान एर्राबोर व आसपास गांवों के थे। इन जवानों की यादों को चिरस्थायी बनाने के लिए स्वजनों और ग्रामीणों ने नेशनल हाईवे के पास इनकी प्रतिमाएं स्थापित की हैं। हर साल राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी व 15 अगस्त को यहां जिस तरह से मेले जैसा नजारा रहता है, उससे यह लगता ही नहीं कि ये अब इनके बीच नहीं हैं।
माताएं ममता उड़ेलती हैं और बहनें बरसाती हैं
मांयें बेटों को तिलक कर उन पर ममता उड़ेलती हैं, वहीं बहनें भी भाई पर स्नेह बरसाती हैं। यहां उनके लिए कोई आंसू नहीं बहाता, ताकि शहादत शर्मिदा न हो। जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर है एर्राबोर। नौ जुलाई 2007 को एर्राबोर थाना क्षेत्र के गगनपल्ली इलाके के उरपलमेटा में नक्सली हमले में छह एसपीओ और सीआरपीएफ के 12 जवान शहीद हुए थे। इनमें से छह एसपीओ की प्रतिमाएं एर्राबोर बाजार के पास 2010 में बनाई गई थीं। इनमें सहायक आरक्षकों में सलवम तमैया, सोयम वेंकटेश, करट्म सुब्बा, सलवम रमेश, सोयम मनोज व सोयम मुकेश के साथ ही 2010 में भेज्जी विस्फोट में शहीद सोयम लच्छा की प्रतिमा शामिल है। नक्सली इन प्रतिमाओं को भी तोड़ने का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन पुलिस थाना व कैंप होने के कारण ये सुरक्षित हैं।
26 जनवरी को नजारा रहेगा हटकर
मंगलवार को यहां का नजारा हटकर रहेगा। यहां जवानों के स्वजन, उनके गांव के लोगों के अलावा अंचल के लोग तो जुटेंगे ही, पुलिस के आला अधिकारी भी इस मौके पर मौजूद रहेंगे। इस दौरान यहां केवल इन जवानों के शौर्य और साहस की चर्चा होगी। ये प्रतिमाएं यहां के युवाओं को नक्सलवाद से लड़ने की प्रेरणा देती हैं। नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए उनका खून उबलने लगता है और भुजाएं फड़कने लगती हैं। इन युवाओं के बलिदान पर पूरा गांव फक्र महसूस करता है। अब तक यहां के 30 से अधिक एसपीओ ([स्पेशल पुलिस आफिसर)] व आरक्षक नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हो चुके हैं। इन प्रतिमाओं के बनने से जवानों के स्वजनों को भी लगता है कि वे आज भी उनके बीच हैं।
रक्षाबंधन पर बहनें आती हैं राखी बांधने
नक्सलियों के खिलाफ ल़़डते हुए जिन भाइयों ने शहादत दी थी, उनकी बहनें सोयम शंकुरी, सलवम लक्ष्मी, सोयम कवि आदि हर साल राखी पर उनकी प्रतिमाओं पर रक्षासूत्र बांधने को आती हैं। वे कहती हैं कि शहादत के बाद एक साल भी ऐसा नहीं गया है, जब वे रक्षाबंधन पर राखी बांधने न आई हों। उन्हें भाइयों की शहादत पर फº महसूस होता है। उनके भाई सभी के दिलों में आज भी जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगे।