लोग पागल कहते रहे और उन्होंने बीच शहर में बना दिया उपवन
30 साल की मेहनत व लगन से आबाद किया दुर्लभ वृक्षों का सुंदर संसार, भोपाल के रचना नगर में उपवन विकसित करने वाले डॉ. कनौजिया को मिला जैवविविधता पुरस्कार
भोपाल [शिखिल ब्यौहार]। सुबह से लेकर शाम तक पेड़-पौधों के बीच ही उनका का दिन गुजराता है। एक-दो दिन की बात नहीं, यह पूरे तीस साल का सिलसिला है। 77 साल के डॉ. डीपी कनौजिया ने 1988 में वीरान पड़े मैदान में 60 पौधे लगाए और जीवन भर उनकी देखभाल का संकल्प लिया। आज मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के बीचों-बीच स्थित पॉश कॉलोनी रचना नगर में एक सुंदर और समृद्ध उपवन तैयार हो चुका है।
सोच और समर्पण को सम्मान
कभी लोग पौधे बचाने के उनके जुनून की वजह से उन्हें पागल कहते थे। घर वाले भी ताने देते थे। लेकिन आज मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें राज्य स्तरीय जैवविविधता पुरस्कार से सम्मानित किया है। डॉ. कनौजिया कहते हैं, सुबह उठते ही और दफ्तर से आने के बाद सबसे पहला काम पौधों की देखभाल का ही होता था। हर रविवार को करीब चार घंटे देखभाल किया करता था।
शिवमंदिर मैदान स्थित इस उपवन में आज साठ से अधिक पेड़ सिर उठाए खड़े हैं। इनमें से कुछ दुर्लभ प्रजाति के भी हैं। डॉ. कनौजिया ने सभी पौधों के लिए ट्री-गार्ड (लोहे की जाली का सुरक्षा घेरा) भी अपने ही वेतन से पैसे बचाकर बनवाया। इस दौरान मैदान को साफ रखने के लिए रोजाना सफाई करते और जानवरों से बचाने के लिए कई बार रात में चौकीदारी भी की।
बदली लोगों की भी सोच
साल 2000 के बाद जो लोग और परिवार वाले ताने दिए करते थे, उनकी सोच में बदलाव आया। पर्यावरण संरक्षण की इस मुहिम में कई लोग उनसे जुड़े। स्थानीय रहवासियों ने चंदा किया और मैदान की चहारदीवारी भी बनवाई। इसके बाद लोगों ने भी पेड़ों की देखभाल शुरू की। स्थानीय निवासी एस. वर्मा कहते हैं, इसमें कोई शक नहीं कि पहले लोग डॉ. कनौजिया की मुहिम का मजाक उड़ाते थे। अब हम इनके साथ है। यह किसी तपस्या से कम नहीं है।
कल्पना जैन कहती हैं, आज बीच शहर में 60 पेड़ों का उपवन है। यह एक व्यक्ति की कड़ी मेहनत से ही संभव हुआ है। आज इस उपवन में पक्षियों की चहचाहट है। पर्यावरण संरक्षण के लिए पूरा जीनव लगा चुके डॉ. कनौजिया कहते हैं, मेरे लिए इससे सुखद और कुछ नहीं है।
बाल से तैयार होगी जैविक खाद
भोपाल के भानपुर में इंसान के बालों से जैविक खाद बनाने के लिए प्लांट डाला जाएगा। इसकी क्षमता दो हजार लीटर रोजाना उत्पादन की होगी। नगर निगम और मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस पर काम कर रहे हैं। परियोजना से जुड़े इम्तियाज अली बताते हैं कि भोपाल के 332 सैलून व पार्लरों से रोजाना करीब 550 किलो बाल एकत्रित किए जाते हैं। जैविक खाद बनाने की विधि के बारे में उन्होंने बताया कि बालों को तीन बार धोकर 70 डिग्री तापमान पर चार घंटे तक उबाला जाता है। फिर गोमूत्र मिलाकर पुन: तब तक उबाला जाता है जब तक ये तरल में न बदल जाएं।
इस तरल में माइक्रो म्यूटेंड (एक तरह का जैविक पदार्थ) मिलाकर इसे ठंडा करते हैं। एक लीटर खाद की कीमत 100 से 150 रुपए तक आती है। किसान इसे 50 लीटर पानी में मिलाकर आधे से एक एकड़ जमीन में डाल सकेंगे। मप्र पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव अनुपम राजन के मुताबिक, यह पर्यावरण हितैषी प्रयास है। यह खाद खेती के लिहाज से कितनी कारगर है, इसका पता लगाया जा रहा है।