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भीमा-कोरेगांव हिंसा: शिवराई से भीमराई तक निकाली गई सद्भावना रैली

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले ने महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया था। औरंगाबाद में विभिन्न समुदायों के लोगों ने सद्भावना रैली निकाली।

By Arti YadavEdited By: Published: Tue, 09 Jan 2018 01:18 PM (IST)Updated: Tue, 09 Jan 2018 01:29 PM (IST)
भीमा-कोरेगांव हिंसा: शिवराई से भीमराई तक निकाली गई सद्भावना रैली
भीमा-कोरेगांव हिंसा: शिवराई से भीमराई तक निकाली गई सद्भावना रैली

औरंगाबाद,एएनआई। भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले ने महाराष्ट्र के साथ-साथ पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया था। सोमवार को औरंगाबाद में विभिन्न समुदाय के लोगों ने सद्भावना रैली निकाली। यह मौन रैली 'शिवराई से भीमराई' छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति से शुरू हुई और शांतिपूर्वक डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की मूर्ति पर संपन्न हुई। रैली में मराठा, दलित, मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग शामिल हुए।

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भीम-कोरेगांव हिंसा के दौरान पुलिस से पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाते हुए रैली में शामिल लोगों ने आरोप लगाया था कि दलित युवकों पर अत्याचार किया गया था जबकि नेताओं और कथित मास्टरमाइंडों संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे को छूआ तक नहीं गया था।

कार्यकर्ताओं ने हिंसा के खिलाफ एक मामला दर्ज करने की और राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे मांग की, क्योंकि वह भीमा-कोरेगांव हिंसा के दौरान कानून और व्यवस्था को कायम रखने में नाकाम रहें।

कार्यकर्ताओं ने हिंसा में मारे गए युवाओं के परिवारों के लिए 30 लाख रुपये मुआवजे और दलित युवाओं के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने  की मांग की है। इसके अतिरिक्त उन्होंने उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दायर करने की भी मांग की है जिन्होंने हिंसा के दौरान निर्दोष लोगों पर लाठी चार्ज किया था। 

जीत के जश्‍न से भड़की थी हिंसा

महाराष्‍ट्र के पेशवाओं को ब्रिटिश ने भीमा कोरेगांव युद्ध में हरा दिया था जिसके दौ सौ साल पूरे होने की खुशी में दलित संगठन जश्‍न मना रहे थे। दलित नेताओं द्वारा ब्रिटिश की इस जीत की खुशी इसलिए मनायी जा रही है क्‍योंकि उनका मानना है कि महार समुदाय के सैनिक ईस्‍ट इंडिया कंपनी का हिस्‍सा थे। पेशवा ब्राह्मण थे और इस जीत को दलित की जीत का प्रतीक माना जाता है।

भीमा कोरेगांव में अंग्रेजों द्वारा स्थापित युद्ध स्मारक की 200वीं बरसी पर एक जनवरी को कई लाख दलितों के जमाव के बाद शुरू हुए उपद्रव ने ही महाराष्ट्र को तीन दिन तक बंधक बनाए रखा। दूसरी ओर वढ़ू बुदरक गांव में भी दोनों समाजों के लोगों ने एकत्र आकर तय किया कि बाहर के किसी व्यक्ति का हस्तक्षेप वह अपने गांव के मसलों में नहीं होने देंगे।

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