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वैश्विक संकट के इस काल में लोग अपने-अपने घरों में रहते हुए करें महामृत्युंजय मंत्र का जाप

आचार्य महामंडलेश्वर श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा हरिद्वार कहते हैं सर्वकल्याण की मंगलकामना के लिए शास्त्रों में वर्णित प्रार्थनाओं को समझें कि इनमें सृष्टि के कल्याण का ध्येय का निहित

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 18 Apr 2020 09:56 AM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2020 09:56 AM (IST)
वैश्विक संकट के इस काल में लोग अपने-अपने घरों में रहते हुए करें महामृत्युंजय मंत्र का जाप
वैश्विक संकट के इस काल में लोग अपने-अपने घरों में रहते हुए करें महामृत्युंजय मंत्र का जाप

जेएनएन, नई दिल्ली। समष्टि उपासना भारतीय संस्कृति का विशेषता है। शास्त्र कहते हैं कि सर्वकल्याण की मंगलकामना से अतिप्रभावकारी ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह रोग-शोक-मृत्यु के आगे मनोबल को दृढ़ता प्रदान करती है। भारतीयों के लिए यह बात नई नहीं है, वरन दैनिक पूजा-प्रार्थना में इनका समावेश है। इसीलिए संकट के इस काल में लोग घरों में रहते हुए भी संकल्पबद्ध हो समष्टि उपसना में रत हैं। वैश्विक संकट के इस काल में समष्टि उपासना की महत्ता संतविद्वान भी बता रहे हैं। स्वामी अवधेशानंद गिरि, आचार्य महामंडलेश्वर श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा, हरिद्वार कहते हैं, सर्वकल्याण की मंगलकामना के लिए शास्त्रों में वर्णित प्रार्थनाओं को समझें तो पाएंगे कि इनमें सृष्टि के कल्याण का ध्येय निहित है।

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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु

निरामया:।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्

दु:खभाग्भवेत॥ ऊं शांति: शांति: शांति:...

अर्थात- सभी सुखी होवें, सभी

रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के

साक्षी बनें और किसी को भी दुख का भागी

न बनना पड़े...।

आशय यही कि जब तुम अपने लिए कुछ मांगते हो तो वह याचना हो जाती है और जब तुम्हारे अंदर सभी के कल्याण की कामना हो तो वह प्रार्थना हो जाती है। याचना और प्रार्थना में यह बड़ा अंतर है। प्रार्थना कहती है

ऊं सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु।

सर्वेशां शान्तिर्भवतु।

सर्वेशां पूर्णंभवतु।

सर्वेशां मुलंभवतु।

लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु।।

ऊं शांति: शांति: शांति:...

अर्थात- सभी का कल्याण हो। सभी को

शांति मिले। सभी को पूर्णता हासिल हो।

सभी का मंगल हो। सारे लोक सुखी हों...।

स्वामी अवधेशानंद समझाते हैं, दो तरह की उपासना होती है, व्यष्टि और समष्टि। व्यष्टि उपासना एकाकी उपासना है, जबकि समष्टि उपासना, सामूहिक उपासना है। इसका लाभ समस्त सृष्टि, समाज, काल और देश को प्राप्त होता है। वहीं, पदमविभूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरवस्वती, परमाचार्य, बिहार स्कूल ऑफ योग, मुंगेर भी समष्टि उपासना का महत्व समझाते हैं।

कहते हैं, उपासना का एक विज्ञान है। शास्त्रों में इसके लिए विशिष्ट मंत्र निर्दिष्ट हैं। जब इन्हें सामूहिक संकल्पशक्ति के साथ सर्वमंगल की कामना से उच्चारित किया जाता है तो असीम ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो उस संकल्प की पूर्ति में प्रवृत्त हो जाती है, जिसके लिए वह उत्पन्न हुई है। संकट काल में महामृत्युंजय मंत्र जिसे मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र भी कहा जाता है, विशिष्ट प्रभावकारी है। यजुर्वेद के रुद्र अध्याय में भगवान शिव की स्तुति के निमित्त वर्णित यह महामंत्र गायत्री मंत्र के समकक्ष अतिप्रचलित मंत्र है। वैज्ञानिकता अपने स्थान पर है और विश्वास अपने स्थान पर।

ऋषि-मुनियों ने महामृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है। सतत आरोग्य का संकल्प लेकर इसका उच्चार करने से असीमित ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसे जब बहुत सारे लोग संकल्पबद्ध होकर करें तो यह ऊर्जा विशिष्ट प्रभावकारी बन जाती है

ऊं त्र्यंबकम यजामहे सुगन्धिं

पुष्टिवर्धनम।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय

माऽमृतात।।

अर्थ- हम त्रिनेत्र को पूजते हैं, जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं, जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है, वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं...।

स्वामी अवधेशानंद समझाते हैं- मंत्रों में ध्वनि स्पंदन और उसकी विशिष्ट स्वर लहरी समूचे ब्रह्मांड में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा का निर्माण करती है। यह ऊर्जा तमाम तरह की कष्टकारी स्थितियों का नाश कर व्यक्ति-समाज को चेतनता के साथ भरपूर स्वास्थ्य प्रदान करती है। महामृत्यंजय मंत्र का जाप जीवन पर आए हुए संकट को दूर कर शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है, अक्षय ऊर्जा शक्ति का संचार एवं संचय करता है और उसे बढ़ाता है। जीवन संकट और स्वास्थ्य पर पड़ रहे विपरीत प्रभाव को कम करने के लिए महामृत्यंजय मंत्र प्रमुख है, असरकारक है।

यह मूलत मनुष्य के तीन तापों आदि वैदिक, आदि भौतिक और आदि आध्यात्मिक ताप की निवृत्ति भी करता है। यह वैदिक मंत्र है और विज्ञान इसकी पुष्टि कर चुका है कि सभी वैदिक मंत्र प्राय वैज्ञानिक आधार लिए हुए हैं। उनकी उत्पत्ति स्वत: या दैवीय है और ब्रह्मांड की स्थापना के समय से है। इसका तीन जगह प्रभाव पड़ता है, मन-मानस पर, चित्त पर और वैचारिक बल पर। निर्णय लेने की क्षमता का विस्तार होता है, आत्म ऊर्जा का संचार होता है। प्रयागराज, उप्र में गतदिवस आरएसएस के 4500 स्वयं सेवकों की ओर से घरों-घर महामृत्युंजय मंत्र के सामूहिक जाप का अनुष्ठान किया गया। संघ के सह प्रांत कार्यवाह आलोक मालवीय ने बताया कि निर्धारित समय पर अपने-अपने घर में महामृत्युंजय का 108 बार जाप किया। इस अनुष्ठान से निश्चित ही सकारात्मकता का संचार हुआ है।


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