स्पष्ट जनादेश देती है छत्तीसगढ़ की जनता
झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में एक समानता है कि इन तीनों रा'यों का गठन एक साथ हुआ। जो चीज छत्तीसगढ़ को बाकी दोनों रा'यों से अलग पहचान दिलाती है वह है राजनीतिक स्थिरता यानी स्थिर सरकार। यहां जनता खंडित नहीं, स्पष्ट जनादेश देती है। अब तक हुए चुनावों में उसने स्पष्ट बहुमत देकर सरकारें चुनी हैं। खास बात यह है कि यहां की जनता ने राष्ट्रीय दलों पर भरोसा जताकर अवसरवाद से प्रेरित क्षेत्रीय दलों को पैर जमाने का मौका नहीं दिया।
रायपुर [हरिकिशन शर्मा]। झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में एक समानता है कि इन तीनों राज्यों का गठन एक साथ हुआ। जो चीज छत्तीसगढ़ को बाकी दोनों राज्यों से अलग पहचान दिलाती है वह है राजनीतिक स्थिरता यानी स्थिर सरकार। यहां जनता खंडित नहीं, स्पष्ट जनादेश देती है। अब तक हुए चुनावों में उसने स्पष्ट बहुमत देकर सरकारें चुनी हैं। खास बात यह है कि यहां की जनता ने राष्ट्रीय दलों पर भरोसा जताकर अवसरवाद से प्रेरित क्षेत्रीय दलों को पैर जमाने का मौका नहीं दिया। राजनीतिक स्थायित्व को अगर सुशासन का पैमाना माना जाए तो छत्तीसगढ़ की जनता दूसरे राज्यों की जनता के सामने स्पष्ट जनादेश देने की शानदार नजीर पेश करती है। इन तीनों राज्यों का गठन 2000 में हुआ। तब से लेकर अब तक 14 साल में झारखंड में अलग-अलग मुख्यमंत्रियों की 9 सरकारें बन चुकी हैं और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा है। उत्तराखंड में इस दौरान 8 सरकारें बनी हैं। छत्तीसगढ़ में पहले तीन साल तक कांग्रेस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उसके बाद दस साल से अधिक समय से भाजपा के मुख्यमंत्री रमन सिंह की सरकार चल रही है।
छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल कहते हैं कि राजनीतिक अस्थिरता की एक बड़ी वजह क्षेत्रीय दल होते हैं जिनका यहां कोई वजूद नहीं है। क्षेत्रीय दलों का उदय भावना के आधार पर होता है। छत्तीसगढ़ के लोग बेहद सरल और सहज स्वभाव के हैं, इसलिए भावनाओं के ज्वार में वे नहीं बहते।
छत्तीसगढ़ लघु और सहायक उद्योग संघ के अध्यक्ष हरीश केडिया बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने यहां पैर जमाने की कोशिशें कीं लेकिन जनता ने साथ नहीं दिया। भाजपा से अलग होकर ताराचंद साहू ने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाया। उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, लोजपा और सपा को साथ लेकर प्रदेश में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश भी की, लेकिन हालत यह है कि साहू के बेटे दीपक साहू को स्वाभिमान मंच छोड़कर भाजपा का दामन थामना पड़ा। बिलासपुर में संभागीय चैंबर ऑफ कॉमर्स के राजनीतिक विश्लेषक बेनी गुप्ता का मानना है कि छत्तीसगढ़ का अलग राज्य के तौर पर गठन इतने स्वाभाविक तरीके से हुआ कि कोई भी वर्ग नाराज नहीं हुआ। इससे जनता केमन में क्षेत्रीय भावनाएं पनप नहीं पाई।
राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज के प्रधानाचार्य आरएन सिंह का भी कहना है कि यहां की जनता बेहद सरल और सहज है, यहां आमतौर पर जाति या संप्रदाय के आधार पर मत नहीं पड़ते। इसीलिए लोग स्थायी सरकार चुनते हैं।
विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा में भी यहां की जनता एक ही दल को सीटें जिताती आई है। नब्बे के दशक से पहले जब यह राज्य नहीं बना था, उस समय छत्तीसगढ़ क्षेत्र की सीटें कांग्रेस के पास जाती थीं। लेकिन बीते बीस साल में स्थिति में काफी बदलाव आया है और अब यहां जनता भाजपा का परचम फहराती है।