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पानी भरने के लिए यहां लोगों को मगरमच्छों से करनी पड़ती है 'जंग'

गांव के हैंडपंप व बोर से इतना खारा पानी निकलता है कि पीने से पेट दर्द होने लगता है। ऐसे में मजबूरी वश लोगों को मगरमच्‍छों से भरे घाट पर पानी लेने जाना पड़ता है।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 04 Sep 2017 11:00 AM (IST)Updated: Mon, 04 Sep 2017 02:15 PM (IST)
पानी भरने के लिए यहां लोगों को मगरमच्छों से करनी पड़ती है 'जंग'
पानी भरने के लिए यहां लोगों को मगरमच्छों से करनी पड़ती है 'जंग'

देवेन्द्र कुमार गौ़ड़, सोईकलां। रोज सुबह 8 बजे के करीब पूरा गांव खाली बर्तनों के साथ कुल्हाड़ी और लाठियां लेकर पार्वती नदी के किनारे इकट्ठा होता है। इसके बाद कुल्हाड़ी, लाठी या अन्य नुकीले हथियारों से नदी किनारे पानी में हलचल मचाना शुरू करते हैं। जब मगरमच्छ-घडि़याल भाग जाते हैं, तब एक-एक करके खाली बर्तनों को नदी से भरते हैं। पीने के पानी के लिए यह जद्दोजहद श्योपुर तहसील के तीन गांव दलारना, ईचनाखेड़ली और मलारना में रोज सुबह होती है।

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दरअअसल, ईचनाखेड़ली, दलारना और मलारना गांव में जो हैंडपंप, बोर व कुएं हैं उनमें बहुत खारा पानी आता है। इसलिए इन तीनों गांवों के लोग पानी के लिए एक किमी दूर बहती पार्वती नदी पर निर्भर हैं। नदी में घडि़याल और मगरमच्छ कई बार मवेशियों को अपना शिकार बना चुके हैं। इसकी खबर घडि़याल सेंक्चुरी के अफसरों को भी है। इसलिए उन्‍होंने इन तीनों गांवों में ऐलान करवा दिया है कि वे पार्वती नदी किनारे न जाएं, नदी में घडि़याल व मगरमच्छ हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि यह शौक नहीं, बल्कि मजबूरी है। गांव के हैंडपंप व बोर से इतना खारा पानी निकलता है कि, कोई मेहमान भी गलती से यह पानी पी जाता है तो पेट दर्द, दस्त-उल्टियां होने लगती हैं। इसलिए नदी का पानी हमारी मजबूरी है। ईचनाखेड़ली की जगीबाई कहती है कि घडि़याल सेंक्चुरी के कर्मचारी ग्रामीणों से बोल गए हैं कि नदी पर पानी लेने न जाएं। लेकिन गांव में पीने का मीठा पानी है नहीं। सांसद--विधायक के चुनाव में नेताओं ने कहा कि पाइप लाइन बिछाएंगे उस पर भी कुछ नहीं हुआ।

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