कारगिल की पहाडि़यों की ओट में बसे द्रास में बह रही देशभक्ति की बयार
वर्ष 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध में शहीदों की याद में दो दिवसीय कार्यक्रम 25 जुलाई से शुरू होगा।
जम्मू, विवेक सिंह। कारगिल की पहाडि़यों की ओट में बसे द्रास में देशभक्ति की बयार चल रही है। कारगिल विजय दिवस की तैयारियों के बीच द्रास में देश के विभिन्न हिस्सों से आए पर्यटक कारगिल में लड़े गए युद्ध की यादों को ताजा कर भारतीय सेना की बहादुरी को महसूस कर रहे हैं।
कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए द्रास वार मेमोरियल में इन दिनों पर्यटकों की भीड़ उमड़ रही है। वर्ष 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध में शहीदों की याद में दो दिवसीय कार्यक्रम 25 जुलाई से शुरू होगा। ऐसे में इन दिनों वार मेमोरियल को सजाने के साथ सेना के कार्यक्रमों की रिहर्सल चल रही है।
कारगिल में 19 वर्ष पहले लड़े गए युद्ध में सेना के तोपखाने ने दुश्मन को परास्त कर जीत की बुनियाद डाली थी तो पैदल सेना व इन्फेंटरी के सटीक प्रहारों ने चोटियों पर बैठे दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे। इस युद्ध में सेना की असाधारण बहादुरी के सबूत कारगिल वार मेमोरियल में शहीदों का नमन करने के लिए आने वालों युवाओं में फौजी बनने का जज्बा पैदा करते हैं। मेमोरियल में प्रदर्शित ऐतिहासिक फोटो व दुश्मन से बरामद गोला-बारूद, हथियार, पाकिस्तानी करेंसी व अन्य साजो सामान उन हालात का बयां करते हैं, जिनमें सेना के वीरों ने कारगिल की चोटियों से दुश्मन को आजाद करवाया था। दुश्मन से बरामद बंदूकें, उसकी ओर से दागे गए बम गोलों के साथ शहीद होने से पहले सैनिकों के हंसते फोटो व युद्ध के दौरान सैनिकों तक रसद पहुंचाने के लिए सप्लाई कोर की जद्दोजहद भी पर्यटकों को आकर्षित करती है।
कारगिल के युद्ध में सेना के 527 जवानों व अधिकारियों ने वीरगति पाई थी। इनमें 71 जम्मू कश्मीर से थे। जीत सुनिश्चित करने के लिए सेना की आर्टिलरी ने भी कीमत चुकाई थी। युद्ध के मैदान में उसके तीन अधिकारी व 32 जवानों ने शहादत पाई। अलबत्ता, जान देने से पहले उन्होंने दुश्मन के कई गुना अधिक अधिकारियों व जवानों को मार गिराया। अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान ने युद्ध में 69 अधिकारी व 772 जवान खोए। इनमें से अधिकतर उसकी नॉदर्न लाइट इंफेंटरी के थे। कारगिल में शहीद होने वाले वीरों के फोटो के साथ उन हथियारों को भी प्रदर्शित किया गया है, जिन्होंने युद्ध में पासा पलट दिया था। इनमें मुख्य बोफोर्स गन है।
कारगिल के द्रास में सेना की बहादुरी को महसूस कर लौटी बेंगलूरू की मिनौती सिंह ने जागरण को बताया कि यह बयां करना मुश्किल है कि वहां कैसे महसूस होता है। युद्ध के मैदान के निकट सेना की कुर्बानियों के सुबूत देखकर सबकी आंखें भर आना स्वाभविक है। उन्होंने बताया कि युवा विशेषतौर पर प्रभावित होते हैं व ऐसे में सेना के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है।