रेलवे के पुराने पुल बन सकते हैं दुर्घटना का कारण : संसदीय समिति
संसद की स्थायी समिति ने 100 वर्ष से ज्यादा पुराने पुलों के रखरखाव को लेकर रेलवे की आलोचना की है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद की स्थायी समिति ने सौ वर्ष से ज्यादा पुराने पुलों के रखरखाव को लेकर रेलवे की आलोचना की है। समिति का कहना है कि पुराने पुलों को नए पुलों के समकक्ष रखे जाने से उनका रखरखाव प्रभावित हो रहा है। इससे दुर्घटनाओं को न्यौता मिल सकता है।
सांसद सुदीप बंदोपाध्याय की अध्यक्षता वाली रेल संबंधी स्थायी समिति ने संसद में पेश अपने 23वें प्रतिवेदन में कहा है कि रेलवे नेटवर्क में कुल 1,47,523 पुल हैं। इन्हें जलमार्ग की चौड़ाई के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। अठारह मीटर चौड़े जलमार्ग वाले पुलों को बृहद पुल, जबकि बाकी पुलों को छोटे पुलों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इससे 92 फीसद पुल छोटे पुलों की श्रेणी में आ गए हैं।
समिति ने इस पर आपत्ति प्रकट करते हुए रेल मंत्रालय से पुलों के वर्गीकरण का पुनर्मूल्यांकन करने को कहा है। समिति का सुझाव है कि नए वर्गीकरण में रेल परिवहन के आधुनिक व बदलते हुए तंत्र के साथ उच्च यातायात घनत्व एवं तीव्र व भारी रेलगाडि़यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। ऐसा जलमार्ग की चौड़ाई को ध्यान में रखे बगैर होना चाहिए।
समिति के मुताबिक रेलवे नेटवर्क में सौ वर्ष या अधिक पुराने पुलों की संख्या 37,689 है। फिर भी रेलवे ने उन्हें पृथक खंड के रूप में वर्गीकृत नहीं किया है। इसके बजाय उन्हें नए/आधुनिक पुलों के समकक्ष रखा गया है। यह उचित नहीं है। पुराने पुलों में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी तथा सामग्री आधुनिक रेल तंत्र के अनुकूल नहीं है। लिहाजा इन्हें नए पुलों के समकक्ष रखा जाना इनकी सुरक्षा के साथ गंभीर समझौता है।
समिति ने मंत्रालय के इस तर्क से असहमति प्रकट की है कि पुल की आयु का उसकी सुरक्षा से कोई संबंध नहीं है और पुल का वर्गीकरण केवल उसकी वास्तविक स्थिति के आधार पर किया जाता है। समिति के मुताबिक यह सोच पुलों की सेहत के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। नई ट्रेनों के उच्च भार तथा गति को सहन नहीं कर सकने के कारण पुराने पुल दुर्घटनाओं का कारण भी बन सकते हैं।