1962 के बाद इस बार का रक्षा बजट सबसे कम: संसदीय समिति
संसदीय समिति की रिपोर्ट पर गौर करें तो लगता नहीं है कि सरकार इस मोर्चे पर अच्छा काम कर पा रही है।
By Manish NegiEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 10:15 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 10:15 PM (IST)
style="text-align: justify;">नई दिल्ली, प्रेट्र। भाजपा सरकार रक्षा क्षेत्र की तैयारियों को लेकर भले ही जोरशोर से अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन रक्षा मामलों की संसदीय समिति की रिपोर्ट पर गौर करें तो लगता नहीं है कि सरकार इस मोर्चे पर अच्छा काम कर पा रही है।
भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अगुआई में तैयार हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि 1962 के बाद इस बार का रक्षा बजट सबसे कम रखा गया है। जीडीपी का यह महज 1.56 फीसद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक तरफ भारत दो मोर्चो पर लड़ाई लड़ने की बात कह रहा है तो दूसरी तरफ यह बजट दिखाता है कि तैयारी मुकम्मल नहीं है। समिति ने सरकार को रणनीतिक साझेदारी मॉडल पर भी आईना दिखाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल पहले यह योजना लांच की गई थी, लेकिन अभी तक इस पर पुख्ता काम नहीं हो सका है। जो भी कुछ है वह केवल कागजों में। गौरतलब है कि इस मॉडल के तहत विदेशी व देशी कारोबारियों के जरिये रक्षा प्लेटफार्म तैयार किए जाने हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो भी कुछ हुआ वह केवल घोषणाओं तक ही सीमित है।
समिति ने सरकार का आलोचना इस बात के लिए भी की कि रक्षा उद्योगों को स्वदेशी स्वरूप प्रदान करने की दिशा में भी कछुए की गति से काम किया जा रहा है। उद्योगों के आधुनिकीकरण का काम सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए था, लेकिन यह भी बेहद धीमा है। हथियारों के मामले में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर बहुत ज्यादा निर्भरता है। स्थिति आपातकालीन हो तो भारत को उन पर निर्भर रहना होगा और उस स्थिति में जरूरी कलपुर्जे न मिल पाए तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात किस तरह से बदतर हो जाएंगे। समिति ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर ली है। इसे संसद के सत्र में रखा जाएगा।
भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अगुआई में तैयार हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि 1962 के बाद इस बार का रक्षा बजट सबसे कम रखा गया है। जीडीपी का यह महज 1.56 फीसद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक तरफ भारत दो मोर्चो पर लड़ाई लड़ने की बात कह रहा है तो दूसरी तरफ यह बजट दिखाता है कि तैयारी मुकम्मल नहीं है। समिति ने सरकार को रणनीतिक साझेदारी मॉडल पर भी आईना दिखाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल पहले यह योजना लांच की गई थी, लेकिन अभी तक इस पर पुख्ता काम नहीं हो सका है। जो भी कुछ है वह केवल कागजों में। गौरतलब है कि इस मॉडल के तहत विदेशी व देशी कारोबारियों के जरिये रक्षा प्लेटफार्म तैयार किए जाने हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो भी कुछ हुआ वह केवल घोषणाओं तक ही सीमित है।
समिति ने सरकार का आलोचना इस बात के लिए भी की कि रक्षा उद्योगों को स्वदेशी स्वरूप प्रदान करने की दिशा में भी कछुए की गति से काम किया जा रहा है। उद्योगों के आधुनिकीकरण का काम सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए था, लेकिन यह भी बेहद धीमा है। हथियारों के मामले में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर बहुत ज्यादा निर्भरता है। स्थिति आपातकालीन हो तो भारत को उन पर निर्भर रहना होगा और उस स्थिति में जरूरी कलपुर्जे न मिल पाए तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात किस तरह से बदतर हो जाएंगे। समिति ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर ली है। इसे संसद के सत्र में रखा जाएगा।
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