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ब्लड प्रेशर की 'फेलोडीपाइन' दवा में पार्किंसन जैसी बीमारियों का इलाज अब होगा आसान

शोधकर्ताओं का कहना है कि हाई बीपी में दी जाने वाली फेलोडीपाइन नामक दवा पार्किंसन के खिलाफ कारगर हो सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 03:07 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 03:21 PM (IST)
ब्लड प्रेशर की 'फेलोडीपाइन' दवा में पार्किंसन जैसी बीमारियों का इलाज अब होगा आसान
ब्लड प्रेशर की 'फेलोडीपाइन' दवा में पार्किंसन जैसी बीमारियों का इलाज अब होगा आसान

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। वैज्ञानिकों को हाई ब्लड प्रेशर (बीपी) के उपचार में काम आने वाली एक दवा में पार्किंसन के इलाज की उम्मीद दिखी है। उनका कहना है कि हाई बीपी में दी जाने वाली फेलोडीपाइन नामक दवा पार्किंसन के खिलाफ कारगर हो सकती है। तंत्रिका तंत्र संबंधी पार्किंसन वह स्थिति है, जिसमें मरीज के अंगों में कंपन होने लगता है और उसे संतुलन बनाने में मुश्किल होती है।

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ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। इस अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर डेविड रुबिन्सजेटिन ने कहा, ‘हमें यह पहली बार पता चला कि एक दवा मस्तिष्क में नुकसानदेह प्रोटीन के जमा होने की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है। इसलिए हमारा यह मानना है

कि इस दवा का रोगियों पर परीक्षण किया जाना चाहिए। यह हालांकि अभी पहला चरण है, इसलिए हमें सावधानी रखने की जरूरत है।’

क्‍या है पार्किंसन

पार्किंसन दिमाग से जुड़ी बीमारी है, जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों की गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। गौरतलब है कि दिमाग में न्यूरॉन कोशिकाएं डोपामीन नामक एक रासायनिक पदार्थ का निर्माण करती हैं। जब डोपामीन का स्तर गिरने लगता है, तो दिमाग शरीर के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण रख पाने में असक्षम होता है।

अक्सर यह बीमारी उम्रदराज लोगों को होती है, लेकिन आजकल युवाओं में भी यह मर्ज देखने को मिल रहा है। आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में इस वक्त लगभग 70 लाख से 1 करोड़ लोग पार्किंसन बीमारी से प्रभावित हैं। इन आंकड़ों से संदेश मिलता है कि इस संख्या में और भी बढ़ोतरी होगी, खासतौर से एशिया महाद्वीप में। इसका कारण बुजुर्गों की संख्या का बढऩा और आयु में वृद्धि होना है।

पार्किंसन बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस संदर्भ में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते है। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए। शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाओं का सहारा लेते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।

लक्षण

  • शारीरिक गतिविधि में सुस्ती महसूस करना
  • शरीर को संतुलित करने में दिक्कत महसूस करना
  • शरीर को संतुलित करने में दिक्कत महसूस करना
  • हंसने और पलकें झपकाने में दिक्कत महसूस करना
  • बोलने की समस्या और लिखने में दिक्कत महसूस करना
  • हाथों, भुजाओं, पैरों, जबड़ों और मांसपेशियों में अकडऩ होना
  • ऐसे पीडि़त लोगों में डिप्रेशन, अनिद्रा, चबाने, निगलने या बोलने जैसी समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं
  • पार्किंसन बीमारी का प्रमुख लक्षण कंपन है, लेकिन 20 प्रतिशत रोगियों में यह लक्षण नहीं भी प्रकट होता
  • लक्षणों के बदतर हो जाने पर इस रोग से पीडि़त व्यक्ति को चलने-फिरने और बात करने में परेशानी होती है

रोग की पहचान

पार्किंसन की पहचान करना आसान नहीं है। इसके लिए कोई भी प्रयोगशाला परीक्षण (रक्त परीक्षण या ब्रेन स्कैन जैसे टेस्ट) नहीं होते। आमतौर पर डॉक्टर इसके लक्षण और रोगी की हालत देखकर ही इस रोग के बारे में बताते है। न्यूरोफिजीशियन अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर और रोगी के परिजनों से बात कर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि व्यक्ति पार्किंसन से पीडि़त है या नहीं।

कारण

आम धारणा है कि पार्किंसन का मर्ज मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं (नर्व सेल्स) द्वारा पर्याप्त मात्रा में डोपामीन नामक ब्रेन केमिकल के उत्पन्न नहीं होने के कारण होता है। इस रोग के बढऩे पर मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले डोपामीन की मात्रा कम हो जाती है। इस कारण व्यक्ति अपनी शारीरिक गतिविधियों  को सामान्य रूप से नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाता है। इसके अलावा पार्किंसन बीमारी का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है। इसी तरह पर्यावरण से संबंधित कारण, उम्र बढऩा और अस्वस्थ जीवनशैली भी इस रोग को बुलावा दे सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह बीमारी कहीं ज्यादा होती है।

इलाज

पार्किंसन रोग का उपचार न्यूरो फिजीशियन करते हैं। इस रोग के विभिन्न लक्षणों के लिए विभिन्न प्रकार की दवाएं दी जाती हैं। कुछ समय के बाद रोगी पर किसी दवा का असर नहीं भी हो सकता है। दवा के इस्तेमाल से रोगी में जो लक्षण खत्म हो जाते हैं, वे धीरे- धीरे बढऩे लगते हैं। इस कारण कुछ रोगियों में दवा की खुराक में लगातार वृद्धि करनी पड़ सकती है।

गौरतलब है कि जिन रोगियों पर दवा का असर नहीं होता है या दवा का अधिक दुष्प्रभाव होता है, उनके लिए सर्जरी उपयुक्त है। पार्किंसन का इलाज करने के लिए डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) सबसे मुख्य सर्जरी है। इस सर्जरी से शरीर की विविध गतिविधियों से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। डीबीएस के तहत मस्तिष्क में गहराई में इलेक्ट्रोड के साथ बहुत बारीक तारों को प्रत्यारोपित किया जाता है। इलेक्ट्रोड और तारों को सही जगह पर प्रत्यारोपित किया जा रहा है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने के लिए मस्तिष्क की एमआरआई और न्यूरोफिजियोलॉजिकल मैपिंग की जाती है।

इलेक्ट्रोड और तारों को एक एक्सटेंशन से जोड़ दिया जाता है। यह एक्सटेंशन कान के पीछे और गर्दन के नीचे होता है। इलेक्ट्रोड और तार एक पल्स जनरेटर (एक डिवाइस) से जुड़े होते हैं, जिसे सीने या पेट के क्षेत्र के आसपास त्वचा के नीचे रखा जाता है। जब डिवाइस को ऑन किया जाता है, तो इलेक्ट्रोड लक्षित क्षेत्र के लिए उच्च आवृत्ति का स्टीमुलेशन भेजता है। यह स्टीमुलेशन पार्किन्संस के लक्षणों वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ इलेक्ट्रिक सिग्नल को परिवर्तित करता है।


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