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फादर्स डे: छह बीमारियों पर जिसे अपनों ने त्यागा, पिता बन उसकी जिंदगी सवारी

जिस बच्चे को उसके माता-पिता ने पागल समझकर अनाथालय में छोड़ दिया था, उसकी ऐसी परवरिश की कि वह आज सामान्य बच्चों के साथ पढ़ रहा है।

By Arti YadavEdited By: Published: Sun, 17 Jun 2018 10:01 AM (IST)Updated: Sun, 17 Jun 2018 10:09 AM (IST)
फादर्स डे: छह बीमारियों पर जिसे अपनों ने त्यागा, पिता बन उसकी जिंदगी सवारी
फादर्स डे: छह बीमारियों पर जिसे अपनों ने त्यागा, पिता बन उसकी जिंदगी सवारी

इंदौर (अभिलाषा सक्सेना)। डाउन सिंड्रोम सहित छह तरह की बीमारियों से पीड़ित जिस बच्चे को उसके जैविक माता-पिता ने पागल समझकर अनाथालय में छोड़ दिया था, उसे गोद लेकर उसकी ऐसी परवरिश की कि वह आज पुणे के एक बड़े स्कूल में सामान्य बच्चों के साथ पढ़ रहा है। विश्व के सबसे कम उम्र के सिंगल फादर बने इंदौर के आदित्य तिवारी के समर्पण ने ढाई साल में यह कमाल कर दिखाया है।

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भारत जैसे देश में बच्चा गोद लेना आसान नहीं है, वह भी स्पेशल चाइल्ड। चार साल पहले जब पुणे में काम कर रहे इंदौर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर आदित्य तिवारी ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बिन्नी (अवनीश) को एडॉप्ट करने का फैसला लिया था तो उन्हें घरवालों, दोस्तों और समाज के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने निर्णय पर अडिग रहे।

पैदा होने के साथ ही बिन्नी को न सिर्फ डाउन सिंड्रोम की बीमारी थी बल्कि उसके हृदय में दो छेद, घुटने टेढ़े, आंखों में परेशानी, थाइराइड और कब्ज की बीमारी थी। ऐसे में उसके जैविक माता-पिता ने पैदा होने के दूसरे दिन ही भोपाल के अनाथालय में छोड़ दिया था। बिन्नी को कोई गोद नहीं लेना चाहता था। उसे इलाज के लिए इंदौर के ज्योति निवास अनाथालय भेज दिया गया। वहीं उससे आदित्य की मुलाकात हुई। लगभग दो साल की लंबी कागजी प्रक्रिया के बाद आदित्य कानूनी तौर पर बिन्नी के पिता बन पाए। उस वक्त उनकी उम्र 28 साल की थी।

वर्तमान में पुणे के एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट आदित्य का नाम जब 2016 में गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ तो वे सुर्खियों में आए। उसके बाद बिन्नी के साथ बतौर पिता उनका सफर कैसा रहा? यह पूछने पर वे बताते हैं बच्चे को सबसे ज्यादा अगर किसी चीज की जरूरत है तो वह है आपका समय। आप उनके लिए कितना भी पैसा कमा लें या सुविधाएं उपलब्ध करा दें, मगर सही मायने में उन्हें खुशी आपके साथ होने पर ही मिलती है।

नौकरी से लिया पांच महीने का ब्रेक

आदित्य का कहना था मुझे लंबी लड़ाई और संघर्ष के बाद 1 जनवरी 2016 को अवनीश मिला। तब ऐसा लगा जैसे मुझे नए साल का तोहफा मिल गया हो। उसे पाकर महसूस हुआ कि जैसे सब कुछ मिल गया। उस समय वह न चल पाता था, न ठीक से बोल पाता था। मैंने अपनी नौकरी से पांच महीने का ब्रेक लिया, ताकि मैं और वह एक-दूसरे को समझ सकें। छह महीने के अंदर न सिर्फ उसने ठीक से चलना और बोलना शुरू किया, बल्कि स्वतंत्र रूप से अपने काम करना भी शुरू कर दिए। 8 महीने बाद वह सामान्य बच्चों के साथ स्कूल जाने लगा और अब नर्सरी में पढ़ रहा है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने के बाद भी वह सामान्य बच्चों के साथ खेलता है, मेरे साथ हर जगह घूमने जाता है। मेरी तरह जानवरों से उसे भी प्यार है।

बेटे को समय देना प्राथमिकता

आदित्य ने बताया कि चाहे कितना भी व्यस्त रहूं। बेटे को समय देना मेरी प्राथमिकता है। ऑफिस से आकर उसे सारी दिनचर्या बताता हूं। वो मेरी हर बात ध्यान से सुनता है, हंसता है। हम साथ में डिनर, ब्रेकफास्ट करते हैं।

पत्नी ने भी स्वीकारा

आदित्य के मुताबिक लोग कहते थे तुमसे कोई लड़की शादी नहीं करेगी, लेकिन 7 महीने बाद मैंने शादी भी की और आज मेरी पत्नी और पैरेंट्स सभी मेरे और अवनीश के साथ पुणे में हैं। पत्नी ने भी अवनीश को मां का पूरा प्यार दिया।

भारत में ये है स्थिति

- 2 करोड़ अनाथ बच्चे हैं भारत में, जो कुल बच्चों का 4 फीसदी है

- 0.3 फीसदी ऐसे हैं जो माता-पिता की मौत के कारण अनाथालय में हैं

- 60 लाख बच्चे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ मेंं संयुक्त रूप से हैं जो अनाथालय में रह रहे हैं।

- 2021 तक यह संख्या बढ़कर 71 लाख हो जाएगी


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