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न दिवाली है, न खेतों में जल रही पराली है; फिर दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों है?

अभी साल का वो वक्त है जब दिवाली को गुजरे लंबा वक्त हो चुका है। पंजाब, हरियाणा में पराली भी नहीं जल रही और नए साल की आतिशबाजी अभी बाकी है। ऐसे में दिल्ली का प्रदूषण चौंका रहा है।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 26 Dec 2018 09:07 PM (IST)Updated: Thu, 27 Dec 2018 09:14 AM (IST)
न दिवाली है, न खेतों में जल रही पराली है; फिर दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों है?
न दिवाली है, न खेतों में जल रही पराली है; फिर दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों है?

पटियाला/नई दिल्ली, गौरव सूद। राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण के लिए दिल्ली सरकार हमेशा हरियाणा और पंजाब को ही दोषी ठहराती रही है, लेकिन इन दिनों पंजाब में पराली नहीं जल रही है। इसके बावजूद दिल्ली में प्रदूषण स्तर पंजाब से ढाई से तीन गुना ज्यादा है। दिल्ली के ऐसे हालात को देखकर पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने दिल्ली सरकार की ओर से पंजाब को जिम्मेदार ठहराने के दावों पर सवाल खड़ा किया है।

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दिल्ली में गाड़ियों व निर्माण कार्यों से हो रहे प्रदूषण ने दिल्ली सरकार के दावों की पोल खोल दी है। दिल्ली सरकार की ओर से बार-बार दावा किया जाता है कि पंजाब में धान की पराली जलाने से दिल्ली का वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। लेकिन, पंजाब में पराली जलाने का सिलसिला काफी समय से बंद है। इसके बावजूद दिल्ली में औसत एक्यूआइ स्तर 450 चल रहा है, जबकि पंजाब में यह 150 है।

 

पंजाब के प्रमुख शहरों में एक्यूआइ दिल्ली के मुकाबले काफी बेहतर है। मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से पंजाब में मंडी गोबिंदगढ़ की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित है। बुधवार को मंडी गोबिंदगढ़ का एक्यूआइ 214 रहा, जबकि दूसरे नंबर पर लुधियाना के खन्ना का एक्यूआइ 211 रहा। अन्य सभी शहरों का एक्यूआइ 200 से नीचे ही रहा।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बोले

हम तो शुरू से ही कहते आए हैं कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने का कारण पराली नहीं है। यह उनकी अपनी इंडस्ट्री व वाहनों के कारण है। पिछले डेढ़ महीने से पंजाब में कोई पराली नहीं जला रहा, लेकिन आज भी दिल्ली का प्रदूषण चिंतनीय स्तर पर जा रहा है। ऐसे में इस प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार को उपाय करने होंगे न कि दूसरे राज्यों पर इसे बढ़ाने का आरोप लगाना होगा।

2016 के मुकाबले आधे रह गए पराली जलाने के मामले

पिछले तीन वर्षों की बात करें तो पंजाब में 2016 में पराली जलाने के 80,879 केस, 2017 में 43,660 केस और साल 2018 में करीब 38,000 केस पीपीसीबी ने दर्ज किए। पंजाब में हर साल पराली जलाने के केसों में निरंतर गिरावट आने के बावजूद दिल्ली सरकार प्रदूषण के लिए पंजाब को दोषी ठहराती रही है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी पवन गर्ग के अनुसार आंकड़ों से स्पष्ट है कि दिल्ली में प्रदूषण के लिए पंजाब मे जली पराली नहीं, बल्कि दिल्ली की अपनी इंडस्ट्री, वाहनों का धुआं व निर्माण कार्य जिम्मेदार हैं।

एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) की स्थिति 

दिल्ली 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 470 

25 दिसंबर 422 

26 दिसंबर 426 

अमृतसर 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 160 

25 दिसंबर 148 

26 दिसंबर 144 

बठिंडा 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 103 

25 दिसंबर 118 

26 दिसंबर 124 

खन्ना 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 158 

25 दिसंबर 175 

26 दिसंबर 211 

लुधियाना 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 186 

25 दिसंबर 118 

26 दिसंबर - 

मंडी गोबिंदगढ़ 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 133 

25 दिसंबर 222 

26 दिसंबर 214 

पटियाला 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर - 

25 दिसंबर 162 

26 दिसंबर 144 

रोपड़ 

तारीख एक्यूआइ 

24 दिसंबर 144 

25 दिसंबर 137 

26 दिसंबर 158 

दिवाली के पटाखे भी नहीं जल रहे
पिछले कुछ वर्षों में दिवाली से पहले ही दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में कोर्ट पटाखों की बिक्री पर रोक लगा देती है तो सरकारें भी प्रदूषण का हवाला देकर नागरिकों से पटाखों से दूरी बनाए रखने की अपील करती हैं। पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद प्रदूषण में कोई कमी नहीं होती, इसके पीछे हवाला यह भी दिया जाता है कि लोगों ने चोरी-छिपे पटाखे जलाए हैं। दिसंबर में इस वक्त जब दिवाली को गुजरे लंबा वक्त हो चुका है और नए साल की आतिशबाजी भी अभी नहीं हुई है, तब प्रदूषण क्यों? यह सवाल हर उस व्यक्ति का है, जो दिवाली पर चाहकर भी पटाखे नहीं जला पाया। प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली या पटाखों को दोष देने की बजाए दिल्ली सरकार को चाहिए कि वो इसकी असली वजह तलाशे और उस पर रोक लगाए।


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