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पानीहाटी में वार्षिक ‘दही-चूड़ा महोत्सव’ शुरू, 500 वर्ष पुरानी परंपरा का आज भी होता है पालन

श्री चैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्त रघुनाथ दास गोस्वामी द्वारा शुरू किए गए दही-चूड़ा महोत्सव की ख्याति इतनी है कि आज भी लाखों भक्त एकत्र होते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 13 Jun 2019 09:25 AM (IST)Updated: Thu, 13 Jun 2019 09:27 AM (IST)
पानीहाटी में वार्षिक ‘दही-चूड़ा महोत्सव’ शुरू, 500 वर्ष पुरानी परंपरा का आज भी होता है पालन
पानीहाटी में वार्षिक ‘दही-चूड़ा महोत्सव’ शुरू, 500 वर्ष पुरानी परंपरा का आज भी होता है पालन

प्रकाश पांडेय, कोलकाता। पश्चिम बंगाल के पानीहाटी में वार्षिक दही- चूड़ा महोत्सव शुरू हो चुका है, जो 16 जून तक चलेगा। 15 को मुख्य आयोजन होगा। गंगा तट पर एक साथ लाखों लोग दही-चूड़ा का लुत्फ उठाएंगे और प्रभु के गुण गाएंगे। उत्तर 24 परगना जिले में स्थित पानीहाटी में देश-विदेश से आगंतुकों की भीड़ जुटना शुरू हो गई है। श्री चैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्त रघुनाथ दास गोस्वामी द्वारा शुरू किए गए दही-चूड़ा महोत्सव की ख्याति इतनी है कि आज भी लाखों भक्त एकत्र होते हैं। मेले की साज-सज्जा से लेकर गंगा तट पर सार्वजनिक दही-चूड़ा का भोज यहां आने वालों को खूब रास आता है।

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पानीहाटी इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष सत्यराज दास ने बताया कि पानीहाटी में प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल की त्रयोदशी को दही-चूड़ा का विशेष भोज होता है, जो इस बार 15 जून को है। इस वर्ष यह महोत्सव 12 से 16 जून तक कुल पांच दिनों तक चलेगा। 15 जून को ‘दंड महोत्सव’ का विशेष विधान है, जिसे लोग ‘दही-चूड़ा महोत्सव’ के नाम से जानते हैं। इसमें केवल वैष्णव संप्रदाय के ही नहीं, बल्कि शैव व अन्य संप्रदाय के अनुयायी भी शामिल होते हैं। 16 जून को संकीर्तन कार्यक्रम के साथ इस महोत्सव का समापन होगा।

उन्होंने बताया कि इस आयोजन की शुरुआत आज से करीब 500 वर्ष पहले रघुनाथ दास गोस्वामी द्वारा की गई थी, जो बाद में अपने त्याग के लिए प्रसिद्ध हुए। दरअसल, बचपन से ही चैतन्य प्रभु के भक्तरघुनाथ दास का सामाजिक बंधनों में मन नहीं लगता था। उनके इस स्वभाव को देखते हुए पिता ने उनकी बाल्यावस्था में ही शादी करा दी थी, लेकिन वे जगन्नाथ पुरी जाकर चैतन्य महाप्रभु की संगति व सेवा में शामिल होना चाहते थे।

पिता ने उन्हें ऐसा करने से रोका। कई बार अपने प्रयासों में असफल होने के बाद उन्हें एक दिन सूचना मिली कि भगवान बलराम के अवतार नित्यानंद प्रभु पानीहाटी पहुंचे हैं। रघुनाथ वहां जा पहुंचे और छिपकर दर्शन कर ही रहे थे कि प्रभु नित्यानंदजी ने उन्हें देखकर आवाज लगाई। इसके बाद प्रभु ने उन्हें सभी को दही-चूड़ा खिलाने का आदेश देते हुए कहा कि आप जमींदार घराने से हैं, सो आपको दंड स्वरूप दही-चूड़ा खिलाना होगा। रघुनाथ ने तुरंत वैष्णवों के लिए दही-चूड़ा की व्यवस्था कराई व सैकड़ों संतों को भोजन कराया। भोजनापरांत भगवान नित्यानंद ने उन्हें आशीर्वाद दिया। तभी से यहां ‘दंड उत्सव’ यानी ‘दही-चूड़ा महोत्सव’ की शुरुआत हुई।

क्यों खास है दही-चूड़ा 

देश के अनेक हिस्सों, खासकर बिहार व पूरे मिथिलांचल क्षेत्र में दही-चूड़ा बेहद लोकप्रिय व्यंजन है और ज्यादातर लोग सुबह के नाश्ते में इसे लेते हैं। नाश्ता ही नहीं, काफी लोग तो दही-चूड़ा को दोपहर के भोजन के तौर पर भी लेते हैं। वैसे भी यह एक सुपाच्य और पौष्टिक भोजन है जिसे तैयार करने के लिए कोई खास श्रम नहीं करना पड़ता है और शरीर के लिए भी बेहद फायदेमंद है। इसे पकाने का कोई झंझट ही नहीं है। बस चूड़े या पोहे को कुछ देर भिगोने के बाद उस पर दही और स्वादानुसार चीनी या केला आदि डालकर व्यंजन तैयार हो जाता है।

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