आतंकवाद की नर्सरी पाकिस्तान में बुलंद हुई आतंक के खिलाफ आवाज
आतंकवाद को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान के लिए मंजूर पश्तीन का आंदोलन बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। आतंकवाद की नर्सरी माने जाने वाले पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनवां में अब आतंक के खिलाफ आम जनता की आवाज मुखर होने लगी है। यही नहीं खैबर-पख्तूनवां के लोग आतंकवाद को बढ़ावा देने और आतंकियों को प्रश्रय देने के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इन रैलियों में बड़ी संख्या में गुमशुदा लोगों के परिवार वाले हिस्सा ले रहे हैं।
आतंकवाद के खिलाफ पख्तूनों के आंदोलन का चेहरा बना है 26 वर्षीय मंजूर पश्तीन, जो जनजातीय इलाके के वेटनरी छात्र हैं। आतंकवाद को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाले पाकिस्तान के लिए मंजूर पश्तून का आंदोलन बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। पिछले दो महीने से खैबर-पख्तूनवां में जारी रैलियों में पाकिस्तान और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ खुलकर नारेबाजी हो रही है। 'ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे बर्दी है' उनका प्रसिद्ध नारा बन गया है। इसे पाकिस्तानी सेना में पंजाबियों के बढ़े दबदबे के खिलाफ पख्तूनवां के लोगों के गुस्से के रूप में भी देखा जा रहा है। सबसे अहम बात यह है कि आतंकवाद के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन को पाकिस्तान के किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं मिला है, लेकिन आम जनता इनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है।
गौरतलब है कि 1980 के दशक में अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ लड़ने के लिए पाकिस्तान ने इसी इलाके में आतंकियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था और आज भी यह इलाका तालिबान का गढ़ माना जाता है। तालिबान के खिलाफ आम लोगों के गुस्से को इससे समझा जा सकता है कि छह फरवरी को आतंकवाद खिलाफ रैली के दौरान लोगों तालिबान के एक दफ्तर का आग लगा दी थी।
फिलहाल आतंकवाद के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन भले ही शांतिप्रिय है, लेकिन आगे इसके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हिंसक रूप अख्तियार करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा रहा है। खैबर-पख्तूनवां के नए सीमांत गांधी के रूप में मशहूर होते जा रहे मंजूर पश्तीन ने साफ कर दिया है कि वे हिंसा में यकीन नहीं करते हैं, न तो आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। उनका हिंसा का कोई इरादा नहीं है। लेकिन यह सरकार पर निर्भर है कि वह शांतिपूर्ण प्रदर्शन के हक का इस्तेमाल करने देती है या आंदोलन को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लेती है।
यही कारण है कि बलूचिस्तान में पहले से अलगाववादी आंदोलन की आंच झेल रहा पाकिस्तान खैबर-पख्तूनवां के आंदोलन पर चुप्पी साधे हुए है। यहां तक कि पाकिस्तानी मीडिया में भी इससे संबंधित खबरें दिखाने पर अघोषित पाबंदी लगा दी है। साथ ही पाक सेना और खुफिया एजेंसियों ने आंदोलन में शामिल होने वाले लोगों को डराना-धमकाना शुरू कर दिया है। पश्तीन का आरोप है कि सरकार आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उसके खिलाफ आंदोलन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है।