भारतीयों की भावनाओं का हुआ कत्ल: दलबीर
सरबजीत की मौत से गुस्साई उनकी बहन दलबीर कौर ने कहा कि मेरा भाई सरबजीत हिंदुस्तान के लिए कुर्बान हो गया। भारतीय होने की वजह से उस पर जेल के अंदर तमाम जुल्म ढाए गए। यह केवल सरबजीत का कत्ल नहीं है, बल्कि हिंदुस्तानियों की भावनाओं का कत्ल है।' यह कहते हुए दलबीर कौर अपने आंसुओं पर काबू न रख पाई।
अमृतसर। सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने कहा कि मेरा भाई सरबजीत हिंदुस्तान के लिए कुर्बान हो गया। भारतीय होने की वजह से उस पर जेल के अंदर तमाम जुल्म ढाए गए। यह केवल सरबजीत का कत्ल नहीं है, बल्कि हिंदुस्तानियों की भावनाओं का कत्ल है।' यह कहते हुए दलबीर कौर अपने आंसुओं पर काबू न रख पाई।
एससी कमीशन के उपाध्यक्ष डॉ. राजकुमार वेरका के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में दलबीर ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांग की।
उन्होंने पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी पर 25 करोड़ रिश्वत का आरोप लगाया। कहा, अगर वह रिश्वत दे देतीं तो भाई की जान बच सकती थी, लेकिन गरीबी की वजह से उनके हाथ बंधे हुए थे। दलबीर ने कहा कि वह इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाएंगी और न्याय की गुहार करेंगी। उन्होंने कहा कि अस्पताल में मेरे पूछे जाने पर वहां के नर्स और डॉक्टर हंसते थे। मुझे उनकी हंसी देखकर लगता था कि वे कुछ छिपा रहे हैं। उनको पता था कि सरबजीत जिंदा नहीं है। दुखियारी बहन ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान में चुनावी फायदे के लिए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सरबजीत का कत्ल करवाया। वह 2005 से कहती आ रही हैं कि सरबजीत का कत्ल कर दिया जाएगा। उनकी यह आशंका सच साबित हुई।
दलबीर कौर कहा कि उसके भाई के शरीर का फिर पोस्टमार्टम करवाया जाए। कोट लखपत जेल में उसके ऊपर हुए कातिलाना हमले में उसे कहां-कहां चोट लगी, कौन से घातक हथियारों से हमला किया गया, इसकी जानकारी पूरे देशवासियों को होनी चाहिए। दलबीर कौर ने कहा कि पोस्टमार्टम में इस बात की भी जानकारी दी जानी चाहिए कि कातिलाना हमले के बाद क्या उसकी मौत तत्काल हो गई थी या उसने अस्पताल में दम तोड़ा। दलबीर कौर गुरुवार शाम पंजाब सरकार के विशेष हेलीकॉप्टर से भिखीविंड पहुंचीं।
पत्रकारों से बातचीत में दलबीर कौर ने कहा 'मैं हार गई हूं किस्मत से। पाकिस्तान ने भारतवासियों के साथ धोखा किया।' भिखीविंड में सरबजीत के घर के बाहर शामियाने लगा दिए गए हैं। हजारों की संख्या में लोग सरबजीत सिंह की शहादत पर शोक प्रकट करने के लिए उनके परिजनों के पास पहुंच रहे हैं।
नाउम्मीदी के अंधड़ में जिंदा रखी उम्मीद की लौ
अमृतसर [अशोक नीर]। भाई सरबजीत को पाकिस्तान के चंगुल से छुड़वाने के लिए 23 वर्षो से जमीन-आसमान एक किए बहन दलबीर कौर के संघर्ष का बुधवार देर रात दुखांत हो गया। दलबीर ने भाई को मौत के पंजे से बचाने के लिए हर उस दरवाजे को खटखटाया जिससे जरा सी भी उम्मीद थी। आश्वासन को आशा की सीढ़ी बनाया और उसके सहारे विश्वास की ऐसी इमारत बुलंद की जिससे लगने लगा था कि पाकिस्तान में सिलसिलेवार बम धमाकों के लिए मिली मौत की सजा माफ हो जाएगी, सरबजीत वापस घर लौट सकेगा। बहन ने नाउम्मीदी के अंधड़ों के बीच 23 वर्षो तक जलाए रखी उम्मीद की लौ।
देश में भाई-बहन के रिश्ते को नई रोशनी देने वाली इस दास्तां की शुरुआत होती है अगस्त, 1990 से। दलबीर कौर पूरे बारह साल हाथ में भाई की फोटो लिए अटारी सीमा सड़क पर पाकिस्तान से आए हर उस शख्स से मिलती थीं जो वहां की जेल से रिहा होकर आता था। पूछती थीं, कहीं मेरे सरबजीत को देखा? दलबीर कौर की इस छटपटाहट के बीच 2003 में जब लाहौर हाई कोर्ट ने सरबजीत को मनजीत सिंह करार देते हुए बम विस्फोट के मामले में मौत की सजा सुनाई, तब देशवासियों को सरबजीत के बारे में सही जानकारी मिली। परिवार भी सदमे में आ गया।
तस्वीरों में देखें: मौत से हारा सरबजीत
सरबजीत के परिजनों को सहारा देने के लिए भिखीविंड के कुछ कांग्रेसी नेता सामने आए। सरबजीत की रिहाई की मांग उठी। फिर यह कारवां भिखीविंड से अमृतसर पहुंचा। वहां से दलबीर कौर का संघर्ष व भाई को रिहा करवाने की उनकी तड़प इस पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले गई। 23 अगस्त, 2005 को पंजाब के सांसदों के शिष्टमंडल ने तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह से भेंट कर सरबजीत की रिहाई की गुहार लगाई। इसके बाद तो पूरा देश ही उनकी इस मुहिम में शामिल हो गया।
सरबजीत की बड़ी बहन दलबीर कौर साधारण परिवार से हैं। वह खास पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं। उनकी शादी बलदेव सिंह के साथ हुई थी। बलदेव सिंह ने भी कुछ समय के लिए इस मुहिम में दलबीर कौर का साथ दिया। दोनों कुछ वर्ष तक साथ भी रहे लेकिन उनकी कोई औलाद नहीं है। पिछले कुछ वर्षो से वह अपने पति से अलग सरबजीत की बड़ी बेटी स्वप्नदीप के साथ जालंधर में रह रही हैैं। स्वप्नदीप की वहीं पर शादी हुई है।
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