पाक लड़कियां नहीं चाहती भारतीय शौहर
सरहद के उस पार आतंक है और इस पार सैकड़ों बंदिशें। मेरी जिंदगी तो दिल्ली-लाहौर के बीच बंट गई है। 22 साल पहले (नवंबर, 1992) में शादी हुई थी। तब से कोई दिन ऐसा नहीं है जब दिल ने दिल्ली को याद न किया हो। हर रात आंखें नम होती
अमृतसर, [रमेश शुक्ला 'सफर']। सरहद के उस पार आतंक है और इस पार सैकड़ों बंदिशें। मेरी जिंदगी तो दिल्ली-लाहौर के बीच बंट गई है। 22 साल पहले (नवंबर, 1992) में शादी हुई थी। तब से कोई दिन ऐसा नहीं है जब दिल ने दिल्ली को याद न किया हो। हर रात आंखें नम होती हैं। मंदिर-मस्जिद भारत में टूटे और दिल पाकिस्तान में। दोनों देशों के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों ने मेरी तरह भारत-पाक में ब्याही गई बेटियों के दिलों को छलनी किया है।
22 साल बाद मैं मायके (दरियागंज, दिल्ली) लौट रही हूं। मेरे साथ मेरी बेटियां हैं, बेटा है। इन 22 साल में मैं भारत आने के लिए वीजा का इंतजार करती रही। यही वजह है कि मैं भले ही पाकिस्तान में ब्याही गई लेकिन अपने बेटे-बेटियों का भारत में निकाह नहीं करना चाहती। यह कहना है लाहौर से आई जाहिरा बेगम का।
जाहिरा बेगम कहती हैं कि मैं अपने दिल का दर्द खुद ही समझ सकती हूं, पाकिस्तान की राष्ट्रीयता मिलने के बाद मैं लाहौर में पाकिस्तानी आज तक नहीं बन पाई। मेरा कसूर क्या है कि मैं भारतीय हूं और पाकिस्तान में निकाह हुआ है। लेकिन अब मैं यह गलती कभी अपने बच्चों के लिए नहीं करूंगी।
जाहिरा बेगम के परिवार में बेटियां यासमीन, नाजरीन व बेटा बशीर भी था। जाहिरा बेगम को लेने दिल्ली से उनका भाई रहमत व भाभी शाहीन अख्तर अमृतसर आए थे।
नाजरीन कहती हैं कि मैं भारत में शादी कभी नहीं करूंगी। मेरी अम्मी जाहिरा बेगम दिल्ली के दरियागंज की है। 22 साल हो चले हैं। कभी सुख-दुख में शामिल होने के लिए भारत आना पड़े तो इस्लामाबाद के दर्जनों चक्कर वीजा के लिए लगाने पड़ते हैं। हमले भारत में होते हैं और खामियाजा एक-दूसरे देशों में ब्याही बेटियां भुगत रही होती हैं। इसलिए मैं किसी कीमत पर भारत शादी नहीं करूंगी। हां, भारतीय लड़के बहुत स्मार्ट हैं। सलमान खान पर मैं फिदा हूं।
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