पैडमैन ही नहीं ये ‘पैडवुमन’ भी हैं चर्चा में, ऐसे चुका दिया डेढ़ लाख का लोन
आजीविका मिशन से ही तीन दिन का प्रशिक्षण मिला और पंद्रह दिन तक अभ्यास किया। अब तक पैड बेच-बेचकर डेढ़ लाख रुपये का लोन भी चुका दिया।
झाबुआ (नईदुनिया)। यह कहानी मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के छोटे से गांव आंबा खोदरा की तीन महिलाओं की है। ये आदिवासी अंचल की ‘पैडवुमन’ हैं। दो साल से गांव में ही एक पुराने स्कूल के कमरे में सेनेटरी पैड बनाती हैं और आठ पैड का एक पैकेट 25 रुपये में गांव की महिलाओं को बेचती हैं। इसके लिए महिलाओं की बैठकों और ग्रामसभाओं में काउंटर लगाती हैं। इस गांव के अलावा आसपास के चार गांवों की महिलाएं भी अब उनसे पैड खरीद रही हैं।
दो साल पहले शुरू किए गए इस काम की बात जब इन्होंने परिवार और गांव वालों के बीच रखी तो पुरुषों ने विरोध किया। इन्होंने पुलिस में शिकायत करने की धमकी दे दी तो विरोध खत्म हो गया महिलाएं बताती हैं कि पहले बुजुर्ग महिलाओं ने इस तरफ आना बंद कर दिया था। सब कहते थे कि ये गंदा काम कर रही हैं। कुछ तो मुंह पर कपड़ा रखकर आती थीं। पैड बनते देखना उन्हें घिन लगता था, लेकिन धीरे-धीरे सोच बद गई। सबसे पहले हमने ही कपड़ा छोड़कर हमारे ही बनाए पैड इस्तेमाल करना शुरू किया। धीरेधीरे गांव की दूसरी महिलाओं ने अपने और बहू-बेटियों के लिए भी इसे खरीदे। अब सब खुश हैं और कोई विरोध नहीं करता।
ढाई लाख की यूनिट, एक लाख का कच्चा माल : ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने स्व सहायता समूह की सदस्य हेमलता भाबोर ने सबसे पहले यह विचार अपनी साथियों के सामने रखा। इसके बाद ग्रामसभा में बात रखी। ना-नुकुर के बाद सब सहमत हो गए। हेमलता, गुड्डी पारगी और भूरी भाबोर ने मिशन के अधिकारियों से मिलकर लोन मांगा तो 3 लाख 20 हजार रुपये का लोन मिला। 2 लाख 20 हजार में सारी मशीनें आ गईं और एक लाख का कच्चा माल ले लिया। आजीविका मिशन से ही तीन दिन का प्रशिक्षण मिला और पंद्रह दिन तक अभ्यास किया। अब तक पैड बेच-बेचकर डेढ़ लाख रुपये का लोन भी चुका दिया।
कपड़े का इस्तेमाल बच्चियों को बीमारी में धकेलने जैसा : मैटरनिटी हेल्थ पर काम कर रहीं डॉ. पूर्णिमा गडरिया का कहना है कि महिलाओं में सेनेटरी पैड का उपयोग आवश्यक कर देना चाहिए। कपड़े के इस्तेमाल से हम बच्चियों को बड़े होने के पहले ही बीमारी के अंधकार में धकेल देते हैं। सभी महिलाएं अगर पैड का इस्तेमाल
करना शुरू कर देती हैं तो मैटरनिटी हेल्थ के लिए खर्च होने वाले सरकार के अरबों रुपये बच जाएंगे।
महिलाओं की खुद की लड़ाई
ग्रामीण आजीविका मिशन में झाबुआ की को-ऑर्डिनेटर रहीं पुष्पा चौहान और अभी के को- ऑर्डिनेटर अमित राठौर ने बताया कि ये महिलाओं के स्वयं के अधिकार की एक तरह से लड़ाई थी, जिसे उन्होंने लड़कर जीता है। अभी बिजली की कुछ समस्या है। ये समस्या हल होने पर इस उत्पाद को बाजार में भी लाने की योजना है।