पर्यावरण के लिए नुकसानदेह हैं ऑर्गेनिक फूड, जानें- क्या हैं भविष्य के सुपरफूड
ऑर्गेनिक फूड, मीट व डेयरी उत्पाद सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं, लेकिन ताजा अध्ययन में पर्यावरण पर इसके खतरे का पता चला है। जानें वैज्ञानिकों ने किसे बताया है भविष्य का सुपरफूड।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। तमात अध्ययनों में ऑर्गेनिक फूड को सेहत के लिए फायदेमंद माना गया है, लेकिन अब एक चौंकाने वाले अध्ययन में पता चला है कि ये पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। अध्ययन में दावा किया गया है कि ऑर्गेनिक फूड उगाने में ज्यादा भूमि की जरूरत पड़ती है। इससे 70 फीसद तक कार्बन उत्सर्जन बढ़ जाता है। ऑर्गेनिक फूड उत्पादों पर किया गया इस तरह का ये पहला अध्ययन है।
स्वीडन की चल्मर युनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि पारंपरिक रूप से खेती वाले खाद्य पदार्थों की तुलना में ऑर्गेनिक उपज पर्यावरण के लिए खराब हैं। कृषि उत्पादन में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न करना या बहुत कम इस्तेमाल करने का मतलब है कि हमें उतनी ही फसल उगाने के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ेगी। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ये भी दावा किया है कि ऑर्गेनिक मीट और डेयरी उत्पाद भी पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं।
शोधकर्ताओं ने स्वीडन में उगायी जाने वाली कुछ फसलों पर अध्ययन किया है। अध्ययन में पता चला कि स्वीडन में उगाई जाने वाली ऑर्गेनिक मटर, पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली मटर की तुलना में 50 फीसद से ज्यादा पर्यावरण को प्रभावित करती है। इसी तरह कुछ अन्य प्रकार की ऑर्गेनिक फसलें पर्यावरण को 70 फीसद तक प्रभावित करती हैं, जैसा कि सर्दियों में उगाने जाने वाले ऑर्गेनिक और पारंपरिक गेहूं पर अध्ययन से पता चला है।
शोध में ऑर्गेनिक फसल से पर्यावरण को होने वाली नुकसान की वजह भी बताई गई है। इसमें कहा गया है कि ऑर्गेनिक फसल उगाने में उर्वरकों का इस्तेमाल न होने की वजह से प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम हो जाती है। वहीं उर्वरकों का सही इस्तेमाल कर उतनी ही जमीन पर ज्यादा फसल उगाई जा सकती है। ऐसे में ऑर्गेनिक फसल के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है। ऐसे में ज्यादा ऑर्गेनिक फसल उगाने के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है, परिणाम स्वरूप जंगलों और खेतों के आसपास के हरित क्षेत्र में पेड़ों की कटाई की जाती है। इससे कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ता है।
स्वीडन की तरह ही दुनिया भर में ऑर्गेनिक फसल के उत्पादन के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ने पर हरित क्षेत्र की कटाई से पूरे संसार में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, जो हमारे पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक और चिंताजनक है। शोधरकर्ताओं के अनुसार उन्होंने ऑर्गेनिक मीट और डेयरी उत्पादों पर कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है। उनका अनुमान है कि ऑर्गेनिक खेती की तरह, ऑर्गेनिक मीट व डेयरी उत्पाद भी पर्यावरण को ज्यादा प्रभावित करते हैं।
अध्ययन का मूल तत्व ये है कि ऑर्गेनिक फसल हमारे स्वास्थ्य के लिए भले ही बेतहर हों, लेकिन इन्हें उगाने के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है। इसके लिए तेजी से वन क्षेत्रों की कटाई हो रही है। पेड़ों की संख्या कम होने से कार्बन डाई ऑक्साइट की मात्रा बढ़ रही है, जो बेहद खतरनाक है।
ये है भविष्य का शाकाहारी सुपरफूड
- शैवाल के इस्तेमाल से भविष्य के खाद्य उत्पादों में 70 फीसद तक इजाफा किया जा सकता है।
- इन्हें उगाने के लिए ताजा पानी की जरूरत होती है। धरती के 70 फीसद हिस्से में ताजा पानी उपलब्ध है।
- पृथ्वी पर अभी 37 प्रतिशत जमीन खेती के लिए प्रयोग की जाती है। इसके मुकाबले शैवाल की खेती के लिए बहुत कम जमीन की आवश्यकता होती है।
- पारंपरिक खेती के लिए उर्वरक भूमि की आवश्यकता होती है, जबकि शैवाल को बंजर या रेगिस्तानी जमीन पर भी पानी स्टोर कर उगाया जा सकता है।
- ज्यादातर पारंपरिक फसलों को साल में दो बार तक ही उगाया जा सकता है, जबकि शैवाल एक सप्ताह में तैयार हो जाती है। मतलब इसे बहुत कम समय में ज्यादा मात्रा में उगाया जा सकता है।
- शैवाल में पारंपरिक फसल के मुकाबले 40 फीसद अधिक प्रोटीन होता है।
- शैवाल के प्रयोग से पारंपरिक खाने का स्वाद नहीं बदलता है। ये बेहद स्वादिष्ट होता है और इसका शाकाहारी होना सबसे बड़ी खासियतों में से एक है।
- दुनिया के की देशों में शैवाल की खेती और बिक्री के साथ घरों में इसका इस्तेमाल भी शुरू हो चुका है।
ये भी हैं भविष्य के सुपरफूड
- वैज्ञानिकों ने खाने योग्य कीड़ों को भविष्य का सुपरफूड बताया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इनमें प्रोटीन, पोषक तत्व, पोटेशियम, मैग्नीशियम और ओमेगा-तीन की तुलना में तीन गुना अधिक फैटी एसिड होता है।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार कीड़ों में मांस और मछली के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन होता है।
- झींगुर और टिड्डे जैसे कीड़े (क्रिकेट इंसेक्ट्स) मानव आहार के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं।
- क्रिकेट इंसेक्ट्स को उन लोगों के लिए ‘गेटवे बग’ माना जाता है, जो कीड़े खाने का विकल्प चुनते हैं। मतलब कीड़े खाने की शुरूआत सबसे ज्यादा इन्हीं इंसेक्ट्स से होती है।
- परंपरागत पशुधन की तुलना में इन कीड़ों को अधिक पौष्टिक और पृथ्वी के लिए बेहतर बताया गया है। साथ ही पर्यावरण और आर्थिक रूप से भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
- वैज्ञानिकों के अनुसार 2050 तक दुनिया की आबादी लगभग नौ-दस अरब तक पहुंचने का अनुमान है। इससे पर्यावरण, पारंपरिक खाद्य स्रोतों और कृषि तकनीकों पर भारी दबाव पड़ेगा। ऐसे में कीड़े भोजन की मांग को पूरा करने में मददगार साबित हो सकते हैं।
- गैर-पश्मिची देशों में बहुत से लोग नियमित रूप से कीड़े खाते हैं। भारत में भी उत्तर-पूर्वी कुछ राज्यों में कुछ खास तरह के कीड़ों को खाने का चलन है। भारत समेत दुनिया भर की स्पेशल फोर्स में भी कीड़ों को खाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- पिछले अध्ययनों से पता चलता है कि चार क्रिकेट इंसेक्ट्स में एक गिलास दूध से ज्यादा कैल्शियम होता है। इसी तरह डंग बीटल्स (गुबरैले) में बीफ के मुकाबले ज्यादा आयरन होता है।
- ये कीड़े पारंपरिक मीट स्रोतों के मुकाबले 90 फीसद मीथेन का उत्सर्जन कम करते हैं। पारंपरिक मीट स्रोतों के मुकाबले बहुत कम पानी पीते हैं। इसलिए ये पर्यावरण के लिए लाभदायक होते हैं।