सीबीआइ और ईडी निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने संबंधी अध्यादेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें केंद्र सरकार द्वारा 14 नवंबर को जारी दो अध्यादेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। केंद्र ने देश की दोनों प्रमुख जांच एजेंसियों के प्रमुखों का कार्यकाल दो साल से बढ़ाकर पांच साल करने का फैसला किया।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका दाखिल की गई, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा 14 नवंबर को जारी दो अध्यादेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इन अध्यादेशों के जरिये केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) निदेशकों के अनिवार्य दो साल के कार्यकाल के बाद उन्हें तीन साल का सेवा विस्तार दिया जा सकता है। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश और दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (संशोधन) अध्यादेश संविधान के खिलाफ हैं।
याचिका में दोनों अध्यादेशों को रद करने का अनुरोध किया गया है। वकील एमएल शर्मा द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता से दायर जनहित याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत प्रदत्त अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि अध्यादेशों का मकसद उस जनहित याचिका पर सर्वोच्च अदालत के निर्देश को दरकिनार करना है जिसमें 2018 में संजय कुमार मिश्रा की ईडी निदेशक के रूप में नियुक्ति के आदेश में बदलाव को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि दोनों अध्यादेशों से इन एजेंसियों की स्वतंत्रता और कम होने की आशंका है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने देश की दोनों प्रमुख जांच एजेंसियों के प्रमुखों का कार्यकाल दो साल से बढ़ाकर अब पांच साल करने का फैसला किया है। सरकार ने दो अलग-अलग अध्यादेशों के जरिये सीबीआइ और ईडी के निदेशकों के कार्यकाल की अधिकतम सीमा पांच साल तक कर दी है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने रविवार को कार्यकाल बढ़ाने को लेकर दोनों अध्यादेशों को मंजूरी दे दी। अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है। ऐसे में अपरिहार्य परिस्थितियों का हवाला देते हुए अध्यादेश लाया गया है। संसद के शीत सत्र में इसे लेकर हंगामा होना तय है। विपक्षी दलों ने एकजुट होकर दोनों अध्यादेशों का विरोध करने का एलान किया है।