मप्र हाईकोर्ट का आदेश, गैस त्रासदी मामले में भोपाल के पूर्व कलेक्टर व एसपी पर नहीं चलेगा मुकदमा
पूर्व कलेक्टर मोती सिंह की किताब में छपी कहानी या संस्मरण को आधार बनाकर कार्रवाई की मांग की गई है।
नई दुनिया, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के समय तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराजपुरी के खिलाफ भोपाल की सेशन कोर्ट में विचाराधीन मुकदमा निरस्त करने का आदेश सुना दिया।
यह मुकदमा 33 साल पहले हुई भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित था। भोपाल की अदालत में जिस मामले की सुनवाई चल रही थी, उसका संबंध तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराजपुरी पर भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड चीफ वारेन एंडरसन को भारत से विदेश भगाने में मदद के आरोप से था। परिवादियों की मांग थी कि इन दोनों तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक धाराओं के तहत कार्रवाई की जाए।
बुधवार को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एसके पालो की एकलपीठ ने अपना आदेश सुनाया। इसमें साफ किया गया कि घटना के तीन साल के बाद मामले में संज्ञान लिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा न करते हुए 26 साल बाद संज्ञान लिया गया। लिहाजा, भोपाल में विचाराधीन परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
किताब में छपी कहानी के आधार पर कार्रवाई की मांग बेमानी
भोपाल में अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे को निरस्त कराने के लिए भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराजपुरी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे व सुरेंद्र सिंह ने पक्ष रखा। दलील दी गई कि शिकायत निराधार है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि पूर्व कलेक्टर मोती सिंह की किताब में छपी कहानी या संस्मरण को आधार बनाकर कार्रवाई की मांग की गई है। मीडिया, मैगजीन आदि के प्रकाशनों को कानूनी कार्रवाई के लिए इस्तेमाल किया गया है। भोपाल गैस त्रासदी 33 साल पहले दो दिसंबर 1984 को हुई थी। इसमें आइसो सायनाइट नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इसकी चपेट में आकर 3828 लोगों ने जान गवां दी थी, जबकि 7172 लोग स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे।